Friday, 25 August 2017

भगवान श्रीकृष्ण मेरे प्राण हैं ......

भगवान श्रीकृष्ण मेरे प्राण हैं ......
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भगवान श्रीकृष्ण परम तत्व हैं| उनकी प्रशंसा या महिमा का बखान करने की मुझमें कोई योग्यता नहीं है| मैं तो उन्हें सदा अपने प्राणों में पाता हूँ| वे ही मेरे प्राण हैं, इससे अधिक कुछ कहने की मुझमें सामर्थ्य नहीं है|
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आचार्य मधुसुदन सरस्वती ने उनकी स्तुति इन शब्दों में की है .....
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् | पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् ||
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् | कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ||"
जिनके करकमल वंशी से विभूषित हैं, जिनकी नवीन मेघकी-सी आभा है, जिनके पीत वस्त्र हैं, अरुण बिम्बफल के समान अधरोष्ठ हैं, पूर्ण चन्द्र के सदृश्य सुन्दर मुख और कमल के से नयन हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी भी तत्व को मैं नहीं जानता ||
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भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में जितना साहित्य लिखा गया है उतना भगवान के अन्य किसी भी रूप पर नहीं लिखा गया है | वे हमारे हृदय में, हमारी चेतना में निरंतर रहें, इससे अधिक कुछ भी लिखना अभी तो असंभव है |  वे तो मेरे प्राण हैं |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ

भवसागर को गोते लगाए बिना पार करें :----

भवसागर को गोते लगाए बिना पार करें :----
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श्रुति भगवती कहती हैं .....
"प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते | अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत् ||
–मुण्डकोपनिषद्,२/२/४.
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प्रणव रूपी धनुष पर आत्मा रूपी बाण चढ़ाकर ब्रह्म रूपी लक्ष्य को बेधना है | बाण सीधा अपने लक्ष्य को बेधता है, इधर उधर कहीं भी नहीं जाता | वैसे ही अपने लक्ष्य परमात्मा की ओर ही पूर्ण तन्मयता से अग्रसर होना है, इधर-उधर कहीं भी नहीं देखना है |
See nothing, look at nothing but your goal ever shining before you.
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कठोपनिषद में भी लिखा है कि आत्मा को अधर अरणि और ओंकार को उत्तर अरणि बनाकर मंथन रूप अभ्यास करने से दिव्य ज्ञानरूप ज्योति का आविर्भाव होता है, जिसके आलोक से निगूढ़ आत्मतत्व का साक्षात्कार होता है|
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श्रीमद्भगवद्गीता में भी ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


२३ अगस्त २०१७

महाजनो येन गतः सः पन्थाः ......

महाजनो येन गतः सः पन्थाः  ......
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श्रुतिर्विभिन्ना स्मृतयो विभिन्नाः नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् |
धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः सः पन्थाः || -- महाभारत
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अर्थ - वेद और धर्मशास्त्र अनेक प्रकारके हैं । कोई एक ऐसा मुनि नहीं है जिनका वचन प्रमाण माना जाय । अर्थात श्रुतियों, स्मृतियों और मुनियोंके मत भिन्न-भिन्न हैं । धर्मका तत्त्व अत्यंत गूढ है - वह साधारण मनुष्योंकी समझसे परे है । ऐसी दशामें, महापुरूषोंने अथवा अधिकतर श्रेष्ठ लोगोंने जिस मार्गका अनुकरण किया हो, वहीं धर्मका मार्ग है, उसीको आचरणमें लाना चाहिए ।
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मैं तो मेरे गुरुपथ का अनुगामी हूँ | संसार रूपी महाभय से रक्षा करने वाले, ब्रह्मज्ञान द्वारा मोक्षप्रदाता सदगुरु महाराज आप की जय हो | आप ने हृदय में जिज्ञासा उत्पना की और मुमुक्षु बना दिया | आप ही परमशिव हैं | आप की कोई भी सेवा करने में मैं अक्षम हूँ अतः आपको प्रणाम ही कर पा रहा हूँ | आपके श्रीचरणों में बारम्बार प्रणाम है | मेरे सारे गुण-अवगुण आपको समर्पित हैं | और मेरे पास है ही क्या ? मेरी कोई सामर्थ्य नहीं है | जो कुछ भी है वह आप की परम कृपा ही है |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
२२ अगस्त २०१७

भारत की शिक्षा व्यवस्था विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था थी .....

भारत की शिक्षा व्यवस्था विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था थी .....
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अंग्रेजी राज्य एक आसुरी राक्षस राज था| कुटिल दुष्ट अंग्रेजों ने भारत की प्राचीन शिक्षा और कृषि व्यवस्था को नष्ट कर दिया| देश के हर गाँव में गुरुकुल थे जहाँ निःशुल्क शिक्षा सभी को उपलब्ध थी|

अंग्रेजों ने सन १८५८ ई.में एक क़ानून बनाकर सारे गुरुकुलों पर प्रतिबन्ध लगा दिया, ब्राह्मण आचार्यों की हत्याएँ करवा दीं, बचे खुचों का सब कुछ छीन कर उन्हें दरिद्र बनाकर भगा दिया| वे इस योग्य भी नहीं रहे कि अपनी संतानों को शिक्षित कर सकें| गुरुकुलों को जलाकर नष्ट कर दिया गया| ब्राह्मणों से उनके ग्रन्थ छीन लिए गए| ग्रंथों को प्रक्षिप्त यानि उनमें मिलावट कर दी गयी| आर्य आक्रमण का कपोल कल्पित झूठा इतिहास रचा गया| ब्राह्मणों के विरुद्ध झूठा इतिहास लिखा गया|

स्वतंत्रता के पश्चात भी अंग्रेजों के मानस पुत्रों का ही राज्य रहा| वर्त्तमान शिक्षा व्यवस्था के कारण ही हमारी अस्मिता, राष्ट्रीय चरित्र और नैतिकता समाप्तप्राय है|

ॐ  तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
२२ अगस्त २०१७

दृढ़ निश्चयपूर्वक परमात्मा को समर्पण ......

दृढ़ निश्चयपूर्वक परमात्मा को समर्पण ......
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नदी का विलय जब महासागर में हो जाता है तब नदी का कोई नाम-रूप नहीं रहता, सिर्फ महासागर ही महासागर रहता है | वैसे ही जीवात्मा जब परमात्मा में समर्पित हो जाती है, तब जीवात्मा का कोई पृथक अस्तित्व नहीं रहता, सिर्फ परमात्मा ही परमात्मा रहते हैं |
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मनुष्य देह सर्वश्रेष्ठ साधन है परमात्मा को पाने का | मृत्यु देवता हमें इस देह से पृथक करें उस से पूर्व ही निश्चयपूर्वक पूरा यत्न कर के हमें परमात्मा को समर्पित हो जाना चाहिए | समय और सामर्थ्य व्यर्थ नष्ट न करें |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


२१ अगस्त २०१७

दो दृष्टिकोण :---

दो दृष्टिकोण :---
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(१) पता नहीं पिछले जन्मों में क्या बुरे कर्म किये थे जो इस असत्य, अन्धकार और अन्याय से भरे संसार में रहने को बाध्य हैं |

(२) पिछले जन्मों में निश्चित रूप से कोई अच्छे कर्म किये थे जो भगवान ने इस संसार में सदा रक्षा की है और अपने हृदय का प्रेम दिया है |
कौन सा दृष्टिकोण अच्छा है ? इसका निर्णय आप करें |
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सारे प्रश्नों के उत्तर, सारी शाश्वत जिज्ञासाओं का समाधान, पूर्ण संतुष्टि, पूर्ण आनंद और सभी समस्याओं का निवारण ...... सिर्फ और सिर्फ परमात्मा में हैं |
अपनी चेतना को सदा भ्रूमध्य में रखो और निरंतर परमात्मा का स्मरण करो | अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम उन्हें दीजिये | पूरा मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा करेंगे |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

२१ अगस्त २०१७

भक्ति और आस्था का संगम ........

भक्ति और आस्था का संगम ........
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(१) ढाई हज़ार फीट की ऊँचाई पर स्थित बाबा मालकेत की २४ कौसीय परिक्रमा पूरे राजस्थान में होने वाली सबसे बड़ी परिक्रमा है जो राजस्थान के झुंझुनूं जिले की अरावली पर्वत माला के लोहार्गल तीर्थ से संत महात्माओं के नेतृत्व में ठाकुर जी की पालकी के साथ गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्ण नवमी) के दिन आरम्भ होकर भाद्रपद अमावस्या के दिन लोहार्गल तीर्थ में ही बापस आकर समाप्त हो जाती है| इस सात दिवसीय चौबीस कौसीय परिक्रमा में हर वर्ष सात से नौ लाख श्रद्धालु पूरे भारत से आकर भाग लेते हैं| इस वर्ष लगभग आठ लाख श्रद्धालुओं ने इस पदयात्रा परिक्रमा में भाग लिया| अमावस्या के दिन लोहार्गल में हज़ारों श्रद्धालु और एकत्र हो जाते हैं| सभी श्रद्धालु अमावस्या के दिन लोहार्गल तीर्थ के सूर्य कुंड में स्नान कर अपने अपने घरों को बापस चले जाते हैं| कहते हैं महाभारत युद्ध के पश्चात् इसी दिन पांडवों ने जब यहाँ सूर्यकुंड में स्नान किया तो भीम की लोहे की गदा गल गयी थी जिससे इस तीर्थ का नाम लोहार्गल पड़ा| अरावली पर्वत माला की घाटियों में यह यात्रा अति मनोरम होती है| अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ पदयात्रियों की हर सुविधा का ध्यान रखती हैं| आज सोमवती अमावस्या के दिन इस पर्व का विशेष महत्व था|
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(२) आज भाद्रपद अमावस्या के दिन ही सभी सती मंदिरों में मुख्य आराधना होती है| झुंझुनू के विश्व प्रसिद्ध श्रीराणीसती दादीजी के मंदिर में भी मुख्य आराधना इसी दिन होती है| ये सभी सतियाँ वीरांगणाएँ थीं जिन्होंने धर्मारक्षार्थ युद्धभूमि में युद्ध किया और स्वयं प्रकट हुए अपने तेज से सती हुईं|
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(३) आज भाद्रपद अमावस्या के दिन ही मध्याह्न काल में ६९ वर्ष पूर्व इस "शरीर महाराज" का जन्म झुंझुनूं में हुआ था| इस "शरीर महाराज" ने इस कथन को चरितार्थ किया ..... "आया था किस काम को, तु सोया चादर तान"| जाग बहुत देर से हुई; हुई तो भी बहुत सारे दुःस्वप्नों के साथ| फिर क्या हुआ ? .... "बाना पहिना सिंह का, चला भेड़ की चाल", ..... ऐसे ही जीवन व्यर्थ चला गया ..... "आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास"| अब वह दुःस्वप्न बीत गया है, देरी से ही सही यह ग़ाफिल जाग चुका है| आगे प्रकाश ही प्रकाश है| कहीं कोई निराशा नहीं है| जिनका कभी जन्म ही नहीं हुआ उनका आश्रय मिला है| वहाँ कोई मृत्यु नहीं , कोई भय नहीं है|
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आप सब को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!


२१ अगस्त २०१७

शैतान है और हर समय हमारे पीछे पड़ा रहता है ....

शैतान है और हर समय हमारे पीछे पड़ा रहता है .....
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शैतान की परिकल्पना झूठी नहीं है | शैतान एक सत्य है जो हर समय हमारे पीछे पीछे रहता है | उससे बचना हमारा दायित्व है | शैतान एक सर्वव्यापी सचेतन आसुरी शक्ति है जो हमें सत्य से दूर रखती है |

शैतान हमें अधोमुखी और निरंतर पतन की और धकेलने वाली शक्ति है जो सर्वप्रथम काम वासना के रूप में, फिर लोभ के रूप में, फिर राग-द्वेष और अहंकार के रूप में स्वयं को व्यक्त करती है |
अब हम उसे समझें या न समझें यह हमारी स्वयं की समस्या है |

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||

हर हिन्दू परिवार प्रमुख का दायित्व .....

हर हिन्दू परिवार प्रमुख का दायित्व
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हरेक हिन्दू सनातन धर्मावलम्बी परिवार प्रमुख का यह दायित्व है कि वह अपने परिवार में एक भयमुक्त प्रेममय वातावरण का निर्माण करे | अपने बालक बालिकाओं में इतना साहस विकसित करें कि वे अपनी कोई भी समस्या या कोई भी उलझन बिना किसी भय और झिझक के अपने माता/पिता व अन्य सम्बन्धियों को बता सकें | बच्चों की समस्याओं को ध्यान से सुनें, उन्हें डांटें नहीं, उनके प्रश्नों का उसी समय तुरंत उत्तर दें | इससे generation gap की समस्या नहीं होगी | बच्चे भी माँ-बाप व बड़े-बूढों का सम्मान करेंगे | हम अपने बालकों की उपेक्षा करते हैं, उन्हें डराते-धमकाते हैं, इसीलिए बच्चे भी बड़े होकर माँ-बाप का सम्मान नहीं करते |
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परिवार के सभी सदस्य दिन में कम से कम एक बार साथ साथ बैठकर पूजा-पाठ/ ध्यान आदि करें, और कम से कम दिन में एक बार साथ साथ बैठकर प्रेम से भोजन करें | इस से परिवार में एकता बनी रहेगी |
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बच्चों में परमात्मा के प्रति प्रेम विकसित करें, उन्हें प्रचूर मात्रा में सद बाल साहित्य उपलब्ध करवाएँ और उनकी संगती पर निगाह रखें | माँ-बाप स्वयं अपना सर्वश्रेष्ठ सदाचारी आचरण का आदर्श अपने बच्चों के समक्ष रखें |
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इस से पीढ़ियों में अंतर (generation gap) की समस्या नहीं रहेगी और बच्चे बड़े होकर हमारे से दूर नहीं भागेंगे | लड़कियाँ भी घर-परिवार से भागकर लव ज़िहाद का शिकार नहीं होंगी |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

२० अगस्त २०१७

अपने समय के एक-एक क्षणका सदुपयोग करें ....

अपने समय के एक-एक क्षणका सदुपयोग करें  ....
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जिस भौतिक विश्व में हम रहते हैं, उससे भी बहुत अधिक बड़ा एक सूक्ष्म जगत हमारे चारों ओर है, जिसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की सत्ताएँ हैं| जितना हम अपनी दिव्यता की ओर बढ़ते हैं, ये नकारात्मक शक्तियां उतनी ही प्रबलता से हम पर अधिकार करने का प्रयास करती हैं| सबसे पहिले वे हमारा मनोबल क्षीण करती हैं| इनका उपकरण बनने से बचने के लिए निरंतर प्रयास करना पड़ता है| इसके लिए निरंतर हरि स्मरण, सत्संग, स्वाध्याय और कुसंग-त्याग व सात्विक भोजन ये ही उपाय हैं| अपने विचारों और भावों पर सदा ध्यान रखें और अच्छे संकल्प करें|
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अपने समय के एक-एक क्षणका सदुपयोग करें और ईश्वर प्रदत्त विवेक के प्रकाश में सारे कार्य करें| हमें अपने समय के एक एक क्षण का सदुपयोग करना होगा अन्यथा हम स्वयं को क्षमा नहीं कर पाएंगे | आग लगने पर कुआँ नहीं खोदा जा सकता, कुएँ को तो पहिले से ही खोद कर रखना पड़ता है|
भगवान सबकी रक्षा करें| हमारा समर्पण पूर्ण हो|
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ॐ गुरु ! जय गुरु !ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


२० अगस्त २०१७

बालक/बालिकाओं के माता-पिताओं से एक प्रार्थना .....

बालक/बालिकाओं के माता-पिताओं से एक प्रार्थना .....
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आजकल धर्मनिरपेक्ष सेकुलर शिक्षा पद्धति, और घरों में सात्विक वातावरण के अभाव के कारण लव जिहाद की बहुत सारी घटनाएँ घट रही हैं| माता-पिताओं को चाहिए कि वे सदाचार का पालन करें और अपने बच्चों के समक्ष अपना स्वयं का उच्चतम आदर्श प्रस्तुत करें|
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परिवार में एक भयमुक्त प्रेममय वातावरण हो| बालक/बालिकाओं में इतना साहस विकसित करें कि वे अपनी कोई भी समस्या/उलझन बिना किसी झिझक और भय के अपने माता/पिता व अन्य सम्बन्धियों को बता सकें|
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परिवार के सभी सदस्य दिन में एक बार साथ साथ बैठकर पूजा-पाठ/ ध्यान आदि करें, और कम से कम दिन में एक बार साथ साथ बैठकर भोजन करें|
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बालकों को संघ की शाखाओं में भेजो| बालिकाओं को "राष्ट्र सेवा समिति" और "दुर्गा वाहिनी" से जुड़ने की प्रेरणा दें| उनके विकास और उनकी संगती पर निगाह रखें|
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आपके बच्चे कभी नहीं बिगड़ेंगे और बालिकाएँ कभी भी लव जिहाद का शिकार नहीं होंगी|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

१९ अगस्त २०१७

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो.....

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो
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जब भी भगवान की याद आये वह क्षण सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है|
जिस समय दोनों नासिकाओं से साँस चल रही हो वह ध्यान करने का सर्वश्रेष्ठ समय है|

कोई कुछ भी कहे, कितना भी बुरा-भला कहे, चाहे कितने भी अच्छे-बुरे सुझाव दे, उस पर ध्यान मत दो | ध्यान दो सिर्फ अपने हृदयस्थ परमात्मा से मिल रही प्रेरणा पर | संसार क्या सोचता है, क्या कहता है, इसका कोई महत्त्व नहीं है | महत्त्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं |

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो और इधर-उधर किधर भी ध्यान मत दो |


ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||



१८ अगस्त २०१७

जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए ......

जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए ......
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जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए , प्रयत्न पूर्वक साधना करते रहना चाहिए | मन लगे या न लगे अपना साधन नहीं छोड़ना चाहिए | अगर दिन में तीन घंटे नाम जप या ध्यान करना है तो करना ही है | उसे छोड़ने का कोई बहाना नहीं होना चाहिए | मन नहीं लगे तो भी बैठे रहो, पर साधन छूटना नहीं चाहिए | मार्ग में बाधाएँ तो बहुत आती हैं, असुर ही नहीं, देवता भी नहीं चाहते कि किसी साधक की साधना सफल हो, वे भी मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न करते रहते हैं | इस मार्ग में सिर्फ सद् गुरु की कृपा ही काम आती है | गुरु चूंकि परमात्मा के साथ एक हैं, और उनसे बड़ा हितकारी अन्य कोई नहीं है, अतः उन्हीं की कृपा साधक की रक्षा करती है |
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पुण्य से उत्तम गति प्राप्त होती है पर जन्म-मरण से छुटकारा नहीं मिलता | जन्म-मरण का कारण कामनाएँ हैं जिनसे मुक्ति गहन ध्यान साधना से ही मिलती है | मेरी दृष्टी में अन्य कोई उपाय नहीं है | गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है .....

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिः |
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ||
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सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा पाप नष्ट होते हैं | इनकी विधि सिद्ध गुरु ही शिष्य को बता सकता है | ये सूक्ष्म प्राणायाम ही प्रत्याहार कहलाते हैं | सदगुरु की कृपा से कहीं कोई अन्धकार नहीं रहता | गुरु सेवा का अर्थ है गुरु प्रदत्त साधना का अनवरत नियमित अभ्यास | जिन परमात्मा का ध्यान करना है, उनका आभास भी गुरु कृपा से ही होता है |
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
१८ अगस्त २०१७

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र हैं .....

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र हैं .....

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र है जिसकी उपयोगिता सिर्फ इतनी सी ही है कि वह अपनी पूजा-पाठ स्तुति आदि करवा कर, करने वाले को रुपया-पैसा, धन-संपत्ति, सुख-शांति प्रदान कर उसकी मनोकामनाओं की पूर्ती कर सकता है ? .....
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वर्त्तमान सभ्यता में जितने अधिक सभ्य हम होते जा रहे हैं, उस सभ्यता में सबसे अधिक सभ्य और सबसे अधिक सफल होने का एकमात्र मापदंड है ..... कितना रुपया-पैसा हमने बनाया है, और कितनी धन-संपत्ति हमने जोड़ी है| अगर हमने धन -संपत्ति नहीं जोड़ी है तो हम जीवन में अपने समाज द्वारा एक विफल व्यक्ति ही माने जाएँगे| समाज में हमारा कोई सम्मान नहीं होगा|
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समाज में यही देखता हूँ कि लोग अपने बूढ़े माँ-बाप की सेवा नहीं करते, उन्हें अपमानित और उपेक्षित करते हैं क्योंकि बूढ़े माँ-बाप के पास जो धन था वह वे अपनी संतानों को दे चुके हैं और अब वे अशक्त, निरीह और असहाय हैं|

बहुएँ सास की सेवा नहीं करतीं, बुढापे में उनका इलाज़ तक नहीं करवातीं क्योंकि सास अब रुग्ण रहती हैं और हाथ पैर नहीं चलने से किसी काम की नहीं रही हैं| बच्चों के पास माँ-बाप के लिए समय नहीं रहता है| जो देश जितने अधिक उन्नत हैं उनमें यह सभ्यता कुछ अधिक ही है|
जिन सज्जनों के बच्चे विदेशों में रहते हैं, वे सज्जन बुढ़ापे में बहुत दुःखी होकर यह पछताते पछताते मरते हैं कि हमने अपने बच्चों को इतना सभ्य और सफल बनाने के लिए अपने से दूर विदेश क्यों भेजा?
जो सज्जन अपने बच्चों के साथ विदेशों में रहते हैं उन्हें बुढ़ापे में यह पछतावा होता है कि हम यहाँ विदेश में किस से बातचीत करें, किसी को हमारे से बात करने की फुर्सत ही नहीं है| बूढ़े बूढ़े लोग अवकाश के समय बगीचों में एक -दूसरे से मिल लेते हैं और अपना दुःख-सुख बाँट लेते हैं| कई तो मृत्यु की प्रतीक्षा में बापस भारत आ जाते हैं|
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वर्त्तमान सभ्यता में उपयोगी चीज वही है जो धन को आकर्षित कर सके, कमा सके या उत्पन्न कर सके| यह भाव सभी व्यवसायों, धर्म, राजनीति, चिकित्सा, शिक्षा आदि सभी स्थानों में आ चुका है| रुपया, रुपया रुपया और अधिक से अधिक रुपया, बस रुपये के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए, चाहे कितना भी अधर्म और बेईमानी करनी पड़े|
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व्यक्तिगत जीवन में फेसबुक को छोड़कर मैं कहीं भी परमात्मा की बात नहीं करता| कुछ सत्संगी इसके अपवाद हैं| अन्यत्र परमात्मा की बात करते ही लोग कहते हैं कि इससे कुछ फ़ायदा हो तो बात करो अन्यथा नहीं| तथाकथित धार्मिकों की दृष्टी दूसरों के धन पर ही रहती है| वर्त्तमान सभ्यता में भगवान की अहैतुकी अनन्य भक्ति समय की बर्बादी है| लोग सोचते हैं कि जब हाथ-पैर नहीं चलेंगे तभी बुढ़ापे में भक्ति करेंगे|
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समाज में वे लोग misfit हैं जो भक्ति, योग वा ज्ञान आदि की साधना करते हैं| समाज में उनका रहना एक मजबूरी है| भगवान भी अब इस सभ्यता में उपयोगिता की एक वास्तु मात्र होकर रह गए हैं|
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आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप हैं | आप सब को नमन !

ॐ तत्सत् |ॐ ॐ ॐ ||

१६ अगस्त २०१६

आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है .....

आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है .....
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हम बाहरी जीवन में पूर्णता खोज रहे हैं, इसके लिए विकास की बातें करते हैं| वह विकास भी आवश्यक है, पर बाहरी भौतिक जीवन में हम चाहे जितना विकास कर लें, जीवन में एक शून्यता ही रहेगी व संतुष्टि और तृप्ति तो कभी भी नहीं मिलेगी|
आत्मा की पूर्णता के द्वारा ही बाह्य परिवेश को पूर्ण बनाया जा सकता है| पूर्णता कहीं बाहर नहीं,भीतर ही है|
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पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूंजीवाद, साम्यवाद (मार्क्सवाद), और समाजवाद जैसे सिद्धांत बनाए, पर इनसे मानव जाति का कुछ भी हित नहीं हुआ, उल्टा भयानक विनाश ही विनाश हुआ है|

अपने अहं की तुष्टि केलिए मनुष्य बड़ी बड़ी कोठियाँ बनाता है, बड़ी बड़ी शानदार कारें और विलासिता का खूब सामान खरीदता है, बड़ी बड़ी क्लबों का सदस्य बनता है, पर अंततः कुंठित और असंतुष्ट होकर ही मरता है|
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जिनको हम अति विकसित देश कहते हैं, उनमें से अधिकाँश देशों में जाने का मुझे खूब अवसर मिला है| समाज के समृद्ध वर्ग के लोगों के साथ ही अधिकतः रहा हूँ| पर मैनें संतुष्टि और तृप्ति तो कहीं नहीं देखी| इसका कारण है कि समाज के अधिकाँश लोग अपने से बाहर ही पूर्णता ढूंढ रहे हैं, कोई आत्मा की पूर्णता के बारे में नहीं सोचता| आत्मा की पूर्णता में ही आनंद है|
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मैं यह सब अपनी स्वयं की प्रसन्नता और संतुष्टि के लिए ही लिख रहा हूँ| ऐसी बातों को कोई नहीं पढ़ेगा| कोई पढ़े या न पढ़ें, स्वयं के विचारों को व्यक्त करने में कोई बुराई नहीं है| इसीलिये यह सब लिखा जा रहा है|
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हर हर महादेव ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

१५ अगस्त २०१७

सर्वप्रथम हम सच्चे भारतीय बनें .....

सर्वप्रथम हम सच्चे भारतीय बनें .....

सच्चा भारतीय वही है जो परमात्मा के लिए अपना जीवन जी रहा है | भारत का अस्तित्व सदा सिर्फ परमात्मा के लिए ही रहा है |

पिछले दो सहस्त्र वर्षों में जन्में कलियुगी पंथों ने भारत का अधिकतम अहित किया है | जितना वे कर सकते थे उतना कर चुके हैं | उन्होंने भारत को दरिद्र बनाया, भारत का झूठा इतिहास लिखा, भारत के धर्मग्रंथों को प्रक्षिप्त किया, भारत के धर्मग्रन्थों की और धर्म की अधिकतम निंदा की और बदनाम किया, झूठा इतिहास पढ़ाया, भारत की शिक्षा व्यवस्था और कृषि व्यवस्था को नष्ट किया व अत्यधिक धर्मांतरण किया |

पर भारत अब भी जीवित है और अपना विस्तार करेगा | भारत के जीवित रहने का एकमात्र उद्देश्य है परमात्मा के प्रति परम प्रेम का विस्तार | भारत सदा परमात्मा के लिए जीया है और परमात्मा के लिए ही जीएगा | भारत की अस्मिता पर जितना प्रहार हुआ है उसका दस लाखवाँ हिस्सा भी किसी अन्य संस्कृति पर होता तो वह पूर्णरूपेण नष्ट हो जाती |

भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है | भारत एक ऐसे लोगों का समूह है जो जीवन में श्रेष्ठतम और उच्चतम है को पाने का प्रयास करते है, अपनी चेतना को विस्तृत कर समष्टि से जुड़ना चाहते हैं, और नर में नारायण को साकार करते हैं |

अतः सच्चे भारतीय बनें और निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करें |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

१५ अगस्त २०१७.

अखंड भारत दिवस : 14 अगस्त |

अखंड भारत दिवस : 14 अगस्त |
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श्रीअरविन्द के शब्दों में भारतवर्ष एक भूमि का टुकड़ा, मिटटी, पहाड़, और नदी नाले नहीं है| न ही इस देश के वासियों का सामूहिक नाम भारत है| भारतवर्ष एक जीवंत सत्ता है| भारतवर्ष हमारे लिए साक्षात माता है जो मानव रूप में भी प्रकट हो सकती है| 

भारतवर्ष का अखंड होना उसकी नियति है|
वर्तमान में भारतवर्ष के अनेक टुकड़े हो गए हैं जिनमें से सबसे बड़ा टुकड़ा India है, फिर बाकि अनेक|
पर भारत की आत्मा एक है अतः भारत का अखंड होना निश्चित है|
भारतवर्ष दो विपरीत ध्रुवों के समन्वय का देश है| भारतीय मानस आध्यात्मिक, नीतिपरक, बौद्धिक और कलात्मक है|

भारत का पतन इसलिए हुआ कि लोगों का जीवन अधार्मिक, अहंकारी, स्वार्थपरक और भौतिक हो गया| एक ओर अत्यधिक बाह्याचार, कर्मकांड, यंत्रवत भक्तिभावरहित पूजापाठ में हम लोग भटक गए, दूसरी ओर अत्यधिक पलायनवादी वैराग्य वृत्ति में उलझ गये, जिसने समाज की सर्वोत्तम प्रतिभाओं को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया| जो लोग आध्यात्मिक समाज के अवलम्ब और ज्योतिर्मय जीवनदाता बन सकते थे वे समाज के लिए मृत हो गए| फिर हमें कोई सही मार्गदर्शक नहीं मिले|

श्रीमद् भगवद्गीता हमारी राष्ट्रीय धरोहर है अतः इससे प्रेरणा लेकर हमें शक्ति की साधना और देशभक्ति की भावना बढानी चाहिए|

केवल भारत की आत्मा ही इस देश को एक कर सकती है| भारत की आत्मा को व्यक्त करने और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने के लिए --------- हमें राष्ट्रभाषा के रूप में संस्कृत को अपनाना होगा और वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बनाना होगा|

आओ हम सब दृढ़ निश्चय कर यह संकल्प करें कि भारत माँ अपने परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बैठ रही है और अपने भीतर और बाहर के शत्रुओं का विनाश कर रही है|

भारतवर्ष अखंड होगा, होगा, और होगा| धर्म की पुनर्स्थापना होगी और अन्धकार, असत्य व अज्ञान की शक्तियों का नाश होगा|

वन्दे मातरम| भारत माता की जय|
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।

 अगस्त १४, २०१३

चीन ने तिब्बत पर बलात् अधिकार क्यों किया ? भारत-चीन के मध्य तनाव का असली कारण क्या है ?

कल मैंने एक पोस्ट में दो प्रश्न पूछे थे .....
चीन ने तिब्बत पर बलात् अधिकार क्यों किया ?
भारत-चीन के मध्य तनाव का असली कारण क्या है ?
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चीन ने तिब्बत पर अधिकार किया इसका असली कारण वहाँ की अथाह जल राशि, और भूगर्भीय संपदा है, जिसका अभी तक दोहन नहीं हुआ है| तिब्बत में कई ग्लेशियर हैं और कई विशाल झीलें हैं| भारत की तीन विशाल नदियाँ ..... ब्रह्मपुत्र, सतलज, और सिन्धु ..... तिब्बत से आती हैं| गंगा में आकर मिलने वाली कई छोटी नदियाँ भी तिब्बत से आती हैं| चीन इस विशाल जल संपदा पर अपना अधिकार रखना चाहता है इसलिए उसने तिब्बत पर अधिकार कर लिया| हो सकता है भविष्य में वह इस जल धारा का प्रवाह चीन की ओर मोड़ दे| इस से भारत में तो हाहाकार मच जाएगा पर चीन का एक बहुत बड़ा क्षेत्र हरा भरा हो जाएगा|
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चीन का सीमा विवाद उन्हीं पड़ोसियों से रहा है जहाँ सीमा पर कोई नदी है, अन्यथा नहीं| रूस से उसका सीमा विवाद उसूरी और आमूर नदियों के जल पर था| ये नदियाँ अपना मार्ग बदलती रहती हैं, कभी चीन में कभी रूस में| उन पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों की सेनाओं में एक बार झड़प भी हुई थी| अब तो दोनों में समझौता हो गया है और कोई विवाद नहीं है|
वियतनाम में चीन से युआन नदी आती है जिस पर हुए विवाद के कारण चीन और वियतनाम में सैनिक युद्ध भी हुआ था| उसके बाद समझौता हो गया|
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चीन को पता था कि भारत से एक न एक दिन उसका युद्ध अवश्य होगा अतः उसने भारत को घेरना शुरू कर दिया| बंगाल की खाड़ी में कोको द्वीप इसी लिए उसने म्यांमार से लीज पर लिया|
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भारत को तिब्बत पर अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहिए था| अंग्रेजों का वहाँ अप्रत्यक्ष अधिकार था| आजादी के बाद भारत ने भारत-तिब्बत सीमा पर कभी भौगोलिक सर्वे का काम भी नहीं किया जो बहुत पहिले कर लेना चाहिए था| सन १९६२ में बिना तैयारी के चीन से युद्ध भी नहीं करना चाहिए था| जब युद्ध ही किया तो वायु सेना का प्रयोग क्यों नहीं किया? चीन की तो कोई वायुसेना तिब्बत में थी ही नहीं| १९६२ के युद्ध के बारे बहुत सारी सच्ची बातें जनता से छिपाकर अति गोपनीय रखी गयी हैं ताकि लोग भड़क न जाएँ|
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भारत-चीन में सदा तनाव बना रहे इस लिए अमेरिका की CIA ने भारत में दलाई लामा को घुसा दिया| वर्त्तमान में तनाव तो दलाई लामा को लेकर ही है| दलाई लामा चीन की दुखती रग है|
दलाई लामा आदतन बछड़े का मांस खाते हैं| सारे तिब्बती गाय का और सूअर का मांस खाते हैं| सनातन हिन्दू धर्म से उनका कोई लेना देना नहीं है|
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चीन भारत से लड़ाई इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि भारत से व्यापार में उसे बहुत अधिक लाभ हो रहा है| वह भारत से व्यापार बंद नहीं करना चाहता| भारत भी अपनी आवश्यकता के बहुत सारे सामानों के लिए चीन पर निर्भर है|
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भारत-चीन के बीच असली लड़ाई तो पानी की लड़ाई है| पीने के पानी की दुनिया में दिन प्रतिदिन कमी होती जा रही है| भारत और चीन में युद्ध होगा तो वह पानी के लिए ही होगा|
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दक्षिणी चीन सागर में उसका अन्य देशों से विवाद भूगर्भीय तेल संपदा के कारण है जो वहाँ प्रचुर मात्रा में है| अन्य कोई कारण नहीं है|
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धन्यवाद ! ॐ ॐ ॐ ||


१४ अगस्त २०१४

अखंड भारत संकल्प दिवस :--

अखंड भारत संकल्प दिवस :--
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आज १४ अगस्त को अखंड भारत संकल्प दिवस है | हम भारत को अखंड बनाने का संकल्प लें | हमारा संकल्प दृढ़ होगा तो भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ पुनश्चः अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी, असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश होगा व धर्म की पुनर्स्थापना होगी | "भारतभूमि .... आसेतु हिमालय पर्यन्त एक 'सिद्ध कन्या' ही नहीं साक्षात माता है|" इसे कोई भूमि का टुकड़ा ही न समझें |
मूलाधार चक्र कन्याकुमारी' है, जहाँ का त्रिकोण शक्ति का स्त्रोत है|
इसी मूलाधार से इड़ा पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियाँ प्रस्फुटित होती हैं| कैलाश पर्वत सहस्त्रार है|
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भारत अखंड होगा तो सैनिक शक्ति के बल पर नहीं अपितु एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के बल पर होगा | वह आध्यात्मिक शक्ति हमें स्वयं को अपनी साधना द्वारा जागृत करनी होगी | हमारे निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो | इस दिशा में चिंतन करें |
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!! ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !! मेरी देह भारतवर्ष है | मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| ॐ ॐ ॐ ||
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"मैं भारतवर्ष, समस्त भारतवर्ष हूँ, भारत-भूमि मेरा अपना शरीर है। कन्याकुमारी मेरा पाँव है, हिमालय मेरा सिर है, मेरे बालों में श्रीगंगा जी बहती हैं, मेरे सिर से सिन्धु और ब्रह्मपुत्र निकलती हैं, विन्ध्याचल मेरा कमरबन्द है, कुरुमण्डल मेरी दाहिनी और मालाबार मेरी बाईं जंघाएँ है। मैं समस्त भारतवर्ष हूँ, इसकी पूर्व और पश्चिम दिशाएँ मेरी भुजाएँ हैं, और मनुष्य जाति को आलिंगन करने के लिए मैं उन भुजाओं को सीधा फैलाता हूँ। आहा ! मेरे शरीर का ऐसा ढाँचा है ! यह सीधा खड़ा है और अनन्त आकाश की ओर दृष्टि दौड़ा रहा है। परन्तु मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है। जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ कि सारा भारतवर्ष चल रहा है। जब मैं बोलता हूँ तो मैं भान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है। जब मैं श्वास लेता हूँ, तो अनुभव करता हूँ कि भारतवर्ष श्वास ले रहा है। मैं भारतवर्ष हूँ, मैं शंकर हूँ, मैं शिव हूँ और मैं सत्य हूँ|" --- स्वामी रामतीर्थ ---
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भारतवर्ष स्वयं में है| इसे स्वयं में पहचानो|
ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !! मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है|
ॐ ॐ ॐ ||
शुभ कामनाएँ | जय जननी जय भारत | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


१४ अगस्त २०१७

स्वतंत्र भारत में सबसे पहिले तिरंगा कहाँ, कब और किस के द्वारा फहराया गया था ?

फेसबुक पर सभी भारतीय मित्रों से मेरा एक प्रश्न है :--
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..... स्वतंत्र भारत में सबसे पहिले तिरंगा कहाँ, कब और किस के द्वारा फहराया गया था ?
..... यदि आप का उत्तर नई दिल्ली, १५ अगस्त १९४७ और जवाहरलाल नेहरु है तो आप गलत हैं |
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भारत के इतिहास का एक गौरवशाली सत्य है जिसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से व्यक्तिगत द्वेष और घृणा के कारण छिपा दिया गया था| नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना की सहायता से ३० दिसंबर १९४३ को भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को अंग्रेजों के अधिकार से मुक्त करा लिया था| उसी दिन यानि ३० दिसंबर १९४३ को ही पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में नेताजी सुभाष बोस ने सर्वप्रथम तिरंगा फहराया था| नेताजी ने अंडमान व निकोबार का नाम बदल कर शहीद और स्वराज रख दिया था| स्वतंत्र भारत की घोषणा कर के स्वतंत्र भारत की सरकार भी नेता जी ने बना दी थी|
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उसके पश्चात वहाँ पूरे एक वर्ष से अधिक समय तक आजाद हिन्द फौज का शासन रहा| नेताजी की संदेहास्पद तथाकथित मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों ने आजाद हिन्द फौज से वहाँ का शासन बापस छीन लिया|
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पर भारत के एक महत्वपूर्ण बड़े भाग को अंग्रेजों से मुक्त कराने और सबसे पहिले तिरंगा फहराने का श्रेय नेताजी सुभाष बोस को ही जाता है| यह सभी भारतीयों के साथ एक अन्याय है कि दुर्भावनावश इस सत्य को इतिहास की पुस्तकों से छिपा दिया गया|
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यह हमारा दुर्भाग्य है कि जिन्होंने लाखो भारतीयों की ह्त्या की उन अँगरेज़ जनरलों नील और हेवलॉक के सम्मान में रखे गए द्वीपों के नाम Neil Island और Havelock Island अभी तक वैसे के वैसे ही हैं| और भी वहां ऐसे कई टापू हैं जिनके नाम अत्याचारी अँगरेज़ सेनानायकों के सम्मान में रखे गये थे| उनके नाम बदलने चाहिएँ|
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भारत का सबसे दक्षिणी भाग इंदिरा पॉइंट है जो ग्रेट निकोबार के दक्षिण में है| पहले इसका नाम पिग्मेलियन पॉइंट था| यहाँ का लाइट हाउस बड़ा महत्वपूर्ण है| मुझे वहाँ दो बार वहाँ घूमने जाने का अवसर मिला है| अंडमान निकोबार के कई द्वीपों में गया हूँ और खूब घूमा हूँ|

भारत माता की जय | वन्दे मातरं | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ

१२ अगस्त २०१७

१५ अगस्त की प्रतीक्षा है .....

१५ अगस्त की प्रतीक्षा है .....
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१५ अगस्त की प्रतीक्षा है | १५ अगस्त को श्रीअरविन्द का जन्मदिवस है | इस दिन श्रीअरविन्दाश्रम झुंझुनू के बच्चों द्वारा प्रातः आठ बजे से मनाए जाने वाले उत्सव में अवश्य जाता हूँ | बच्चे बड़े सुन्दर भजन सुनाते हैं | यहाँ के बच्चों को संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी इन तीनों भाषाओँ का गहन अध्ययन कराया जाता है | श्रीअरविन्द और श्रीमाँ के साहित्य और सनातन धर्म का अध्ययन भी कराया जाता है |
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इस दिन श्रीअरविन्द द्वारा दिया हुआ उत्तरपाड़ा का भाषण अवश्य पढ़ें | यह मूल अंग्रेजी सहित हिंदी अनुवाद के साथ अंतरजाल (Internet) पर उपलब्ध है |
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इस वर्ष इस दिन श्रीकृष्णजन्माष्टमी भी है | वेदान्त के जो परमब्रह्म हैं, साकार रूप में वे ही भगवान श्रीकृष्ण हैं |
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पचास-साठ वर्षों पूर्व की बात है | जब हम बच्चे थे तब प्रायः सभी विद्यालयों में १५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन सभी बच्चों से नारे लगवाए जाते थे ..... "महात्मा गाँधी की जय", "पंडित जवाहरलाल नेहरु की जय" | नारे लगाते लगाते जुलुस के रूप में एक मैदान में जाते जहाँ पुलिस की परेड होती थी|
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अब तो एक क्षोभ सा होता है इस दिन | क्या हम सचमुच स्वतंत्र हुए थे या यह सत्ता का एक हस्तांतरण मात्र था ? भारत माँ को यदि स्वतन्त्रता मिली भी तो किस मूल्य पर मिली ? भारत माँ के दोनों हाथ कन्धों सहित काट डाले गए, और आधा सिर काट दिया गया | तीस-पैंतीस लाख हिन्दुओं की हत्याएँ हुईं, लाखों हिन्दू महिलाओं ओर बच्चियों की दुर्गति हुई | हज़ारों बच्चे अनाथ हुए | करोड़ों लोग विस्थापित होने को बाध्य हुए | एक ओर दिल्ली में उत्सव मनाया जा रहा था, दूसरी ओर लाखों परिवार अपना सब कुछ गँवा कर शरणार्थी के रूप में भारत आ रहे थे | (ना)पाकिस्तान से हिन्दुओं की लाशों से भरी हुईं रेलगाड़ियाँ भारत भेजी जा रही थीं | कितने बुरे दिन थे !!!
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अब मन में एक प्रश्न उठता है कि क्या हम सचमुच स्वतंत्र हैं ? धन्य हैं वे लोग जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया पर अपना धर्म नहीं छोड़ा और खंडित भारत में शरण लेना स्वीकार किया |
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अब इन सब को भुलाकर परमात्मा पर ध्यान ही अच्छा लगता है | वास्तविक स्वतंत्रता परमात्मा में है | फिर भी विश्वास है कि वह दिन शीघ्र आयेगा जब भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान होगी | असत्य और अन्धकार का नाश होगा और धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा होगी |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


१२ अगस्त २०१७