Friday 25 August 2017

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र हैं .....

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र हैं .....

क्या परमात्मा उपयोगिता की एक वस्तु मात्र है जिसकी उपयोगिता सिर्फ इतनी सी ही है कि वह अपनी पूजा-पाठ स्तुति आदि करवा कर, करने वाले को रुपया-पैसा, धन-संपत्ति, सुख-शांति प्रदान कर उसकी मनोकामनाओं की पूर्ती कर सकता है ? .....
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वर्त्तमान सभ्यता में जितने अधिक सभ्य हम होते जा रहे हैं, उस सभ्यता में सबसे अधिक सभ्य और सबसे अधिक सफल होने का एकमात्र मापदंड है ..... कितना रुपया-पैसा हमने बनाया है, और कितनी धन-संपत्ति हमने जोड़ी है| अगर हमने धन -संपत्ति नहीं जोड़ी है तो हम जीवन में अपने समाज द्वारा एक विफल व्यक्ति ही माने जाएँगे| समाज में हमारा कोई सम्मान नहीं होगा|
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समाज में यही देखता हूँ कि लोग अपने बूढ़े माँ-बाप की सेवा नहीं करते, उन्हें अपमानित और उपेक्षित करते हैं क्योंकि बूढ़े माँ-बाप के पास जो धन था वह वे अपनी संतानों को दे चुके हैं और अब वे अशक्त, निरीह और असहाय हैं|

बहुएँ सास की सेवा नहीं करतीं, बुढापे में उनका इलाज़ तक नहीं करवातीं क्योंकि सास अब रुग्ण रहती हैं और हाथ पैर नहीं चलने से किसी काम की नहीं रही हैं| बच्चों के पास माँ-बाप के लिए समय नहीं रहता है| जो देश जितने अधिक उन्नत हैं उनमें यह सभ्यता कुछ अधिक ही है|
जिन सज्जनों के बच्चे विदेशों में रहते हैं, वे सज्जन बुढ़ापे में बहुत दुःखी होकर यह पछताते पछताते मरते हैं कि हमने अपने बच्चों को इतना सभ्य और सफल बनाने के लिए अपने से दूर विदेश क्यों भेजा?
जो सज्जन अपने बच्चों के साथ विदेशों में रहते हैं उन्हें बुढ़ापे में यह पछतावा होता है कि हम यहाँ विदेश में किस से बातचीत करें, किसी को हमारे से बात करने की फुर्सत ही नहीं है| बूढ़े बूढ़े लोग अवकाश के समय बगीचों में एक -दूसरे से मिल लेते हैं और अपना दुःख-सुख बाँट लेते हैं| कई तो मृत्यु की प्रतीक्षा में बापस भारत आ जाते हैं|
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वर्त्तमान सभ्यता में उपयोगी चीज वही है जो धन को आकर्षित कर सके, कमा सके या उत्पन्न कर सके| यह भाव सभी व्यवसायों, धर्म, राजनीति, चिकित्सा, शिक्षा आदि सभी स्थानों में आ चुका है| रुपया, रुपया रुपया और अधिक से अधिक रुपया, बस रुपये के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए, चाहे कितना भी अधर्म और बेईमानी करनी पड़े|
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व्यक्तिगत जीवन में फेसबुक को छोड़कर मैं कहीं भी परमात्मा की बात नहीं करता| कुछ सत्संगी इसके अपवाद हैं| अन्यत्र परमात्मा की बात करते ही लोग कहते हैं कि इससे कुछ फ़ायदा हो तो बात करो अन्यथा नहीं| तथाकथित धार्मिकों की दृष्टी दूसरों के धन पर ही रहती है| वर्त्तमान सभ्यता में भगवान की अहैतुकी अनन्य भक्ति समय की बर्बादी है| लोग सोचते हैं कि जब हाथ-पैर नहीं चलेंगे तभी बुढ़ापे में भक्ति करेंगे|
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समाज में वे लोग misfit हैं जो भक्ति, योग वा ज्ञान आदि की साधना करते हैं| समाज में उनका रहना एक मजबूरी है| भगवान भी अब इस सभ्यता में उपयोगिता की एक वास्तु मात्र होकर रह गए हैं|
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आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप हैं | आप सब को नमन !

ॐ तत्सत् |ॐ ॐ ॐ ||

१६ अगस्त २०१६

2 comments:

  1. क्या परमात्मा भी उपयोगितावाद की कोई उपयोगी वस्तु मात्र ही होकर रह गए हैं ? .....
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    "उपयोगितावाद" नाम की महामारी से पूरी मानवता पिछले कुछ सौ वर्षों से ग्रस्त है | इस विषय पर एक लेख लिखने की प्रेरणा हो रही है, पर सही शब्द नहीं मिल रहे हैं | इसी बीमारी से ग्रस्त होकर हम अपने धर्म, समाज और राष्ट्र की चेतना से दूर हो गए हैं | परमात्मा भी एक उपयोगी वस्तु मात्र होकर ही रह गए हैं |
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    उपयोगी किसको, किस के लिए और किस लिए ???

    लेख को कैसे आरम्भ करूँ ? कुछ समझ में नहीं आ रहा है | भविष्य में देखेंगे कभी सही शब्द स्मृति में आये और दुबारा प्रेरणा मिलेगी तो अवश्य लिखेंगे |
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    ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
    १५ अगस्त २०१७

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  2. आस्तिक का अर्थ है ..... जिसकी वेदों में आस्था है |
    नास्तिक का अर्थ है ...... जिसकी वेदों में आस्था नहीं है |
    अंग्रेजी के Atheist का अर्थ है ..... देव विरोधी |

    भारत के पतन का कारण था .... धर्म का पतन | जब धर्म की पुनर्स्थापना होगी तब भारत का पुनश्चः उत्थान होगा |

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