Friday 25 August 2017

महाजनो येन गतः सः पन्थाः ......

महाजनो येन गतः सः पन्थाः  ......
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श्रुतिर्विभिन्ना स्मृतयो विभिन्नाः नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् |
धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः सः पन्थाः || -- महाभारत
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अर्थ - वेद और धर्मशास्त्र अनेक प्रकारके हैं । कोई एक ऐसा मुनि नहीं है जिनका वचन प्रमाण माना जाय । अर्थात श्रुतियों, स्मृतियों और मुनियोंके मत भिन्न-भिन्न हैं । धर्मका तत्त्व अत्यंत गूढ है - वह साधारण मनुष्योंकी समझसे परे है । ऐसी दशामें, महापुरूषोंने अथवा अधिकतर श्रेष्ठ लोगोंने जिस मार्गका अनुकरण किया हो, वहीं धर्मका मार्ग है, उसीको आचरणमें लाना चाहिए ।
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मैं तो मेरे गुरुपथ का अनुगामी हूँ | संसार रूपी महाभय से रक्षा करने वाले, ब्रह्मज्ञान द्वारा मोक्षप्रदाता सदगुरु महाराज आप की जय हो | आप ने हृदय में जिज्ञासा उत्पना की और मुमुक्षु बना दिया | आप ही परमशिव हैं | आप की कोई भी सेवा करने में मैं अक्षम हूँ अतः आपको प्रणाम ही कर पा रहा हूँ | आपके श्रीचरणों में बारम्बार प्रणाम है | मेरे सारे गुण-अवगुण आपको समर्पित हैं | और मेरे पास है ही क्या ? मेरी कोई सामर्थ्य नहीं है | जो कुछ भी है वह आप की परम कृपा ही है |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
२२ अगस्त २०१७

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