प्राण तत्व की स्थिरता, मन पर नियंत्रण, निःसंगत्व और शिवत्व ......
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>>> कल मुझसे किसी मनीषी ने ये प्रश्न पूछे थे जिनका मैं उस समय तो कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया था, क्योंकि वे प्रश्न ही इतने गहन थे कि एक बार तो मैं स्तब्ध हो गया था| पर अब उनका उत्तर दे सकता हूँ|
वे प्रश्न थे .....
(1) मन क्या है ? मन को कैसे परिभाषित करेंगे ? मन से मुक्त यानि मनरहित कैसे हों ?
(2) निःसंगत्व की उपलब्धी कैसे हो ? क्या हम निःसंग हो सकते हैं ?
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इन का उत्तर इस प्रकार है .....
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(1) मन पर नियंत्रण हम तभी कर सकते हैं जब हम इसके स्त्रोत को समझ सकें| जहाँ से यानि जिस बिंदु से मन का जन्म होता है उसे समझना आवश्यक है|
मैं अपनी अति अल्प और सीमित समझ से इस निर्णय पर पहुंचा हूँ कि .....
>>> मन की उत्पत्ति प्राणों से होती है| "चंचल प्राण ही मन है"| प्राण की चंचलता को स्थिर कर के ही हम मन को वश में कर सकते हैं, और मनरहित हो सकते हैं| प्राण तत्व को स्थिर करना ही योग साधना है| यही चित्त की वृत्तियों का निरोध है| इसी के लिए हम यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान करते हैं| चंचल प्राण से ही चित्त की वृत्तियों और मन का जन्म होता है|
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(2) चंचल प्राण को स्थिर करने पर हम पाते हैं कि ...... एकोsहं द्वितीयोनास्ति| प्राणों की स्थिरता ही शिवत्व में स्थिति है| जब हम सम्पूर्ण समष्टि के साथ एक हो जाते हैं, तब हम पाते हैं कि सिर्फ एक मैं ही हूँ जो जड़-चेतन में सर्वत्र व्याप्त है, मेरे सिवाय अन्य कोई भी नहीं है| यही शिवत्व है और यही निःसंगत्व है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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>>> कल मुझसे किसी मनीषी ने ये प्रश्न पूछे थे जिनका मैं उस समय तो कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया था, क्योंकि वे प्रश्न ही इतने गहन थे कि एक बार तो मैं स्तब्ध हो गया था| पर अब उनका उत्तर दे सकता हूँ|
वे प्रश्न थे .....
(1) मन क्या है ? मन को कैसे परिभाषित करेंगे ? मन से मुक्त यानि मनरहित कैसे हों ?
(2) निःसंगत्व की उपलब्धी कैसे हो ? क्या हम निःसंग हो सकते हैं ?
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इन का उत्तर इस प्रकार है .....
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(1) मन पर नियंत्रण हम तभी कर सकते हैं जब हम इसके स्त्रोत को समझ सकें| जहाँ से यानि जिस बिंदु से मन का जन्म होता है उसे समझना आवश्यक है|
मैं अपनी अति अल्प और सीमित समझ से इस निर्णय पर पहुंचा हूँ कि .....
>>> मन की उत्पत्ति प्राणों से होती है| "चंचल प्राण ही मन है"| प्राण की चंचलता को स्थिर कर के ही हम मन को वश में कर सकते हैं, और मनरहित हो सकते हैं| प्राण तत्व को स्थिर करना ही योग साधना है| यही चित्त की वृत्तियों का निरोध है| इसी के लिए हम यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान करते हैं| चंचल प्राण से ही चित्त की वृत्तियों और मन का जन्म होता है|
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(2) चंचल प्राण को स्थिर करने पर हम पाते हैं कि ...... एकोsहं द्वितीयोनास्ति| प्राणों की स्थिरता ही शिवत्व में स्थिति है| जब हम सम्पूर्ण समष्टि के साथ एक हो जाते हैं, तब हम पाते हैं कि सिर्फ एक मैं ही हूँ जो जड़-चेतन में सर्वत्र व्याप्त है, मेरे सिवाय अन्य कोई भी नहीं है| यही शिवत्व है और यही निःसंगत्व है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||