Thursday, 9 September 2021

असत्य और अन्धकार के बादलों से सत्य ढँक जाता है पर कभी नष्ट नहीँ होता ---

 

भारतवर्ष में जो असत्य का अंधकार छाया हुआ है, वह अस्थाई है, उसका नाश निश्चित है| असत्य और अन्धकार के बादलों से सत्य ढँक जाता है पर कभी नष्ट नहीँ होता| जब हम अपने अंतःकरण में परमात्मा को व्यक्त करेंगे तो बाहर के असत्य और अज्ञान का अंधकार भी निश्चित रूप से दूर होगा| सनातन धर्म अमर है|
सत्यं वद (सत्य बोलो) |
धर्मं चर (धर्म मेँ विचरण करो) |
स्वाध्याय प्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यं (वेदाध्ययन और उसके प्रवचन प्रसार में प्रमाद मत करो) |
नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः (बलहीन को कभी परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती) |
अश्माभव:परशुर्भवःहिरण्यमस्तृतांभवः (उस चट्टान की तरह बनो जो समुद्र की प्रचंड लहरों के आघात से भी विचलित नहीं होती, उस परशु की तरह बनो जिस पर कोई गिरे वह नष्ट हो, और जिस पर परशु गिरे वह भी नष्ट हो जाये | तुम्हारे में हिरण्य यानि स्वर्ण की सी पवित्रता हो |
तद्विष्णो: परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरय: (उस विष्णु के परम पद के दर्शन सदा सूरवीर ही करते हैं) |
परमात्मा से प्रेम करना तथा उसे प्रसन्न करने के लिये ही जीवन के हर कार्य को करना, चाहे वह छोटे से छोटा हो या बड़े से बड़ा ..... बस यही महत्व रखता है| जब प्रेम की पराकाष्ठा होगी तब ईश्वर ही कर्ता हो जायेंगे और हमारा नहीं सिर्फ उन्हीं का अस्तित्व होगा|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
९ सितंबर २०२०

शिवसेना कोई हिन्दू-हितैषी दल नहीं है, अपितु एक अवसरवादी क्षेत्रीय दल है ---

 

शिवसेना कोई हिन्दू-हितैषी दल नहीं है, अपितु एक अवसरवादी क्षेत्रीय दल है| अपनी धूर्तता को छिपाने के लिए यह छत्रपति शिवाजी महाराज और राणा प्रताप का नाम लेती है, और हिंदुत्वनिष्ठ होने का नाटक करती है| अपने विरोधियो का समूल नाश करने में यह बिलकुल भी समय नहीं लगाती| इसीलिए भयभीत होकर ही लोग इसका समर्थन करते हैं|
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आगे बढ़ने से पहिले यह बता देना चाहता हूँ कि छत्रपति शिवाजीराव भोंसले, मेवाड़ से निकले हुए एक सिसोदिया राजपूत परिवार के वंशज थे| ६ जून १६७४ को उनका राज्याभिषेक वाराणसी से आए पंडित गंगाभट्ट नाम के एक विद्वान शास्त्रज्ञ ब्राह्मण ने कराया था| पंडित गंगाभट्ट ने राज्याभिषेक से पूर्व यह शर्त रखी थी कि शिवाजी अपने क्षत्रीय होने का प्रमाण दें| तब उनकी पूरी वंशावली पढ़ी गई जिसमें बताया गया कि उनके पूर्वज मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत थे जो महाराष्ट्र में आकर बस गए थे| उनके क्षत्रीय होने के प्रमाणों से पूरी तरह संतुष्ट होकर ही पंडित गंगाभट्ट ने उनका राज्याभिषेक किया था|
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बाला साहब ठाकरे मूल रूप से एक कार्टूनिस्ट थे जो राजनीतिक विषयों पर तीखे कटाक्ष करते थे| उस समय मुंबई में पूरे भारत के लोग छाए हुए थे| महाराष्ट्र के स्थानीय लोगों का वर्चस्व नहीं के बराबर था| अतः महाराष्ट्रीय लोगों का वर्चस्व स्थापित करने के उद्देश्य से उन्होने १९ जून १९६६ को शिवसेना नाम की एक क्षेत्रीय पार्टी की नींव रखी| जानकार लोग कहते हैं कि इसके पीछे प्रेरणा भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी की ही थी जिन्होने १९ जनवरी १९६६ को प्रधानमंत्री का पद संभाला था| ट्रेड यूनियन चलाने वाले कम्युनिष्टों की काट के लिए उन्हें बाला साहब ठाकरे एक सही आदमी लगे|
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उस समय सरकारी व निजी कार्यालयों में लगभग सारे बाबू दक्षिण भारतीय थे, हिसाब-किताब का काम करने वाले सारे गुजराती थे, उद्योगपति सब मारवाड़ी थे, किराने की लगभग सारी दुकानें कच्छी जैनियों की थी, और अधिकांश मजदूर यूपी बिहार के थे| फिल्म उद्योग में पंजाबी लोग छाए हुए थे| मुंबई में कई मिलें थीं, और मुंबई एक बहुत बड़ा औद्योगिक नगर था| ट्रेड यूनियन के नेता लोग कम्युनिष्ट थे जो आए दिन हड़ताल करवाते रहते थे| दो नंबर का काम करने वाले एक विशिष्ट वर्ग के लोग थे|
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बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना बनाते ही सबसे पहिले दक्षिण भारतीय हिंदुओं को मार-पीट और आतंकित कर के मुंबई से भगाना शुरू किया| महाराष्ट्र के स्थानीय लोगों ने खुल कर उनका साथ दिया| बाद में यूपी बिहार के लोगों को मारना-पीटना और प्रताड़ित करना शुरू कर दिया| बाद में स्थिति ऐसी हो गई कि मुंबई में वही व्यक्ति सम्मान के साथ रह सकता था जो शिवसेना को चन्दा यानि हफ्ता देता था| यह हफ्ता बसूलने वाले लोगों का ही एक दल बन कर रह गया| इनका कोई विरोध करता है तो उसे मारने-पीटने में ये लोग थोड़ा सा भी संकोच नहीं करते| अभी भी मुंबई में सबसे अधिक प्रताड़ित यूपी बिहार वालों को ही किया जाता है|
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यदि ये लोग हिंदुत्वनिष्ठ होते तो दक्षिण भारतीय हिंदुओं ने इन का क्या बिगाड़ा था? और अब यूपी बिहार के हिन्दू इन का क्या बिगाड़ रहे हैं? कंगना राणावत वाले प्रकरण ने सिद्ध कर दिया है कि शिवसेना वाले भले लोग नहीं हैं| कंगना को केंद्र सरकार से यदि Y+ सुरक्षा नहीं होती और इतना जन-समर्थन नहीं मिलता तो उसकी गति भी साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित वाली होती|
९ सितंबर 2020