Sunday 31 December 2017

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ......

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ......
जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ उन भगवान परमशिव का ही ध्यान करना चाहिए| जब भी उनके प्रति हृदय में परम प्रेम उमड़े उसी क्षण से उनका ध्यान करना चाहिए| कोई देश-काल, शौच-अशौच या ग्रह-नक्षत्र का बंधन नहीं है| वे अनंत असीम अगोचर हैं| उनकी अनुभूति प्रत्येक उपासक को निश्चित रूप से होती है| सारे नक्षत्र, ग्रह, उपग्रह उन्हीं की कृपा से अस्तित्व में हैं और उन्हीं के प्रकाश से प्रकाशित हैं| उनका आश्रय मिलने पर क्या तो कोई ग्रह नक्षत्र या क्या कोई यमराज किसी का कुछ बिगाड़ सकता है ?

हर हर महादेव ! ॐ ॐ ॐ !!

३१ दिसंबर २०१७ 

ग्रेगोरियन नववर्ष एक वास्तविकता है जिसे हम झुठला नहीं सकते .....

ग्रेगोरियन नववर्ष एक वास्तविकता है जिसे हम झुठला नहीं सकते| जो कुछ भी हो रहा है जिसे हम बदल नहीं सकते, उसके लिए उपाय यही है कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें और अन्यों की आलोचना, निंदा व शिकायत न करें| दूसरों के कार्यों के लिए हम उत्तरदायी नहीं हैं, अतः उनका चिंतन न कर परमात्मा का ही चिंतन करें| यह नववर्ष पूर्णरूपेण उन अनंत के स्वामी को समर्पित है जिन्होनें स्वयं को माया के आवरण में छिपा रखा है| हैं तो वे भक्त-वत्सल ही, अतः अपनी संतानों की पुकार सुनकर उन्हें आना ही पड़ेगा| अब वे और छिप नहीं सकते| हमें उनकी परम चेतना में उनके परम साक्षात्कार से कम कुछ भी नहीं चाहिए|
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ग्रेगोरियन नववर्ष का आरम्भ १ जनवरी से है| आज ३१ दिसंबर की रात्री को सभी श्रद्धालु, परमात्मा का यथासंभव अधिकाधिक ध्यान करेंगे| जो भी साधक विश्व में चाहे वे कहीं पर भी हों, जब परमात्मा का ध्यान करते हैं तो परमात्मा में वे सब एक साथ ही होते हैंं, उन की कोई पृथकता नहीं होती| हमारे चारों ओर का वातावरण सतोगुण का होगा और भीतर से हम गुणातीत होंगे|
ॐ श्रीगुरवे नमः ||
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं |
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ||
एकं नित्यं विमलंचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् |
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि ||
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम|
तस्मात कारुण्य भावेन रक्षस्व परमेश्वरः||
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥
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हे अनंत के स्वामी, तुमने हमें जहाँ भी रखा है वहीं तुम्हें आना ही पड़ेगा| अब शीघ्रातिशीघ्र अभी इसी समय चले आओ, तुम्हारे बिना अब जीना संभव नहीं है| किसी भी तरह की दार्शनिक अवधारणाएँ अब और रोक नहीं सकतीं| किसी भी तरह का ज्ञान नहीं, हमें तो प्रत्यक्ष साक्षात्कार चाहिए| तुम्हें पाने के लिए हमारे ह्रदय में जल रही प्रचण्ड अग्नि और अभीप्सा को अपनी उपस्थिति से शांत करो| अब तो तुम्हें आना ही होगा क्योंकि बहुत देर हो हो चुकी है| तुम्हीं साधक हो, तुम्हीं साधना हो और तुम्ही साध्य हो| तुम ही तुम हो, हम नहीं| हे सच्चिदानंद, तुम्हें प्रणाम ! अब देर मत करो| यह नववर्ष तुम्हें ही समर्पित है| ॐ सच्चिदानंदाय नमः ||
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हे गुरु रूप परम ब्रह्म, मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि आपका ध्यान कर सकूँ| जब आप ही इस नौका के कर्णधार हैं, तो अब मेरी कोई कामना या अपेक्षा नहीं रही है| आपका साथ जब मिल ही गया है तो और कुछ भी नहीं चाहिए| आप ही साक्षात् परमब्रह्म हो| ॐ नमः शम्भवाय च, मयोभवाय च, नमः शंकराय च, मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च||
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(1) समष्टि का कल्याण हो| (2) सम्पूर्ण भारतवर्ष में असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो| (2) सनातन धर्म की सर्वत्र पुनर्प्रतिष्ठा हो| (3) भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हों| (4) परमात्मा का साक्षात्कार .....जिस के लिए यह जन्म लिया है, वह कार्य संपन्न हो|
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ॐ स्वस्ति | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ |
कृपा शंकर
३१ दिसम्बर २०१७
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पुनश्चः : परमात्मा के ध्यान के लिए हर क्षण शुभ मुहूर्त है | कोई देश-काल या शौच-अशौच या गृह-नक्षत्रों का बंधन नहीं है| जब भी भगवान की याद आये तब उनका ध्यान करो |

रूस की बहुत पुरानी स्मृतियाँ ......

रूस की बहुत पुरानी स्मृतियाँ ......

बहुत पुरानी स्मृतियाँ हैं रूस की| पचास वर्ष पूर्व सन १९६७ में मैं रूस में एक विशेष प्रशिक्षण ले रहा था| रूसी भाषा का अच्छा ज्ञान था| उन दिनों बोल्शेविक क्रांति की पचासवीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी| वहाँ की भव्य परेड और कुछ दिनों बाद उन की विराट सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भी देखा| सर्दी के मौसम में चारों ओर बर्फ ही बर्फ जमी रहती थी| वहाँ रहकर बर्फ में स्केटिंग करना भी सीख लिया था| लगभग दो वर्षों तक वहाँ रहा| बड़े अच्छे अच्छे मित्र मिले वहाँ जिन की स्मृतियाँ वर्षों तक रही|

रूस के बारे में मेरा यह मत है कि साहित्य और कला का वहाँ खूब विकास हुआ| उन्नीसवी शताब्दी में तो वहाँ विश्व के तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ साहित्य, संगीत व नृत्य की रचना हुई थी| साहित्यकारों व कलाकारों को वहाँ खूब सम्मान मिलता था, ऐसा सम्मान मैनें अन्यत्र कहीं भी नहीं देखा| भारतीय फ़िल्में वहाँ बहुत अधिक लोकप्रिय थीं, और राजकपूर लोकप्रिय फ़िल्मी नायक था| भारत के बारे में अधिकाधिक जानने की इच्छा वहाँ के लोगों में रहती थी| बैले नृत्य नाटिकाएँ बहुत लोकप्रिय हुआ करती थीं, जहाँ हर अच्छी प्रस्तुति के बाद मिनटों तक तालियाँ बजती रहती थीं| अंत में कलाकारों को बापस मंच पर आकर दर्शकों का आभार व्यक्त करना पड़ता था| शकुन्तला और रामायण पर आधारित नृत्य नाटिकाएँ भी लोकप्रिय थीं| सैनिक सेवा वहाँ अनिवार्य थी| १८ वर्ष का होते ही हर नवयुवक को दो वर्ष तक सेना में नौकरी करना अनिवार्य था|

भयानक ठण्ड और संघर्षमय अभावपूर्ण जीवन के कारण कुल मिलाकर रूस एक कष्टभूमि ही था| पर वहाँ के लोगों के जीवन में जो जिजीविषा थी वह बड़ी प्रशंसनीय थी| उस समय के कितने ही कष्टों और अभावों के बावजूद भी लोगों का जीवन के प्रति बड़ा उत्साह था| अब तो स्थिति बहुत बदल गयी है| रूसी साम्यवाद उस समय चरम शिखर पर था| उन दिनों वहाँ घरों में स्नानघर नहीं होते थे| सार्वजनिक स्नानघर होते थे पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग अलग जो एक हॉल की तरह होते थे, जहाँ लोग सप्ताह में एक दिन नग्न होकर स्नान करते थे| साईबेरिया में तो लोग महीने में एक दिन ही स्नान करते थे| लोगों को सार्वजनिक रूप से राजनीतिक चर्चा करने की अनुमति नहीं थी| लोग राजनीति पर वही बात करते जैसा उन्हें करने का निर्देश मिलता था, बाकी हर विषय पर खूब बातें करते| लोग खूब मिलनसार थे|

इस प्रवास के २०-२१ वर्षों बाद संयोग से युक्रेन के प्रवास में सोवियत संघ के बिखराव का आरम्भ भी देखा| 
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आज से ९५ वर्ष पूर्व आज ही के दिन ३० दिसंबर १९२२ को सोवियत संघ की स्थापना हुई थी जो ७० वर्षों तक विश्व की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति रही| शायद पहली भी रही हो, कुछ कह नहीं सकते|

समय के साथ सब कुछ बदल जाता है| जीवन परिवर्तनशील है| सब कुछ भगवान की माया है| भगवान भी क्या क्या दृश्य दिखलाते हैं ! हे प्रभु, तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो|
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ॐ तत्सत् | ॐ शांति शांति शांति | ॐ ॐ ॐ !!
३० दिसम्बर २०१७