Wednesday, 16 May 2018

समर्पण और ध्यान .....

समर्पण और ध्यान .....

प्रयासपूर्वक अपनी चेतना सदा आज्ञाचक्र पर या उस से ऊपर ही रखें. आज्ञाचक्र ही हमारा वास्तविक हृदय है. प्रभु के चरण कमल सहस्त्रार हैं. ब्रह्मरंध्र से ऊपर ब्रह्मांड की अनंतता हमारा वास्तविक अस्तित्व है, यह देह भी उसी का एक भाग है. हम यह देह नहीं हैं, यह देह हमारे अस्तित्व का एक छोटा सा भाग, और उस अनंतता को पाने का एक साधन मात्र है.

अपने पूर्ण प्रेम से परमात्मा की इस परम ज्योतिर्मय विराट अनंतता पर ध्यान करें. यही पूर्णता है, यही परमशिव है, यही परब्रह्म है. अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम उन्हें समर्पित कर दें, कुछ भी बचा कर न रखें. अपना सम्पूर्ण अस्त्तित्व, अपना सब कुछ उन्हें समर्पित कर दें.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

साकार रूप में किस का ध्यान करें ? .....

साकार रूप में किस का ध्यान करें ?
इस का कोई भी एक उत्तर सभी के लिए समान नहीं हो सकता| अपने अपने स्वभाव व रूचि के अनुसार इष्ट देवी/देवता भी सबके अलग होते हैं|
वृन्दावन में स्वामी मधुसुदन सरस्वती नाम के एक बहुत बड़े आचार्य हुए थे जिन्होनें गीता की मधुसुदनी टीका लिखी थी| ये आचार्य शंकर की परंपरा के सन्यासी थे| इन्होने भगवान श्रीकृष्ण को ही परम तत्व बताया है| भगवान श्रीकृष्ण की वंदना में उनका निम्न श्लोक बहुत अधिक लोकप्रिय है ....
"वंशी विभूषित करान्नवनवनीरदाभात् ,
पीताम्बरारुण बिम्ब फलाधरोष्टात् |
पूर्णेंदु सुंदर मुखारारविन्द नेत्रात,
कृष्णात परम किमपि तत्वमहम् न जाने ||"
योग मार्ग के अधिकाँश पथिक जिनसे मेरा मिलना हुआ है साकार रूप में भगवान श्रीकृष्ण के ही उपासक हैं| निराकार रूप में वे परमशिव का ध्यान करते हैं|
अपने अपने इष्ट देव की उपासना अपनी अपनी गुरु परम्परा के अनुसार खूब मन लगाकर पूरी भक्तिभाव से करें| सभी को सप्रेम सादर नमन और शुभ कामनाएँ | सभी का कल्याण हो | ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ मई २०१८

सरकार से कुछ अपेक्षाएँ .....

सरकार से कुछ अपेक्षाएँ .....
२०१४ में हमारी कुछ अपेक्षाएँ थीं इस सरकार से जो अभी भी हैं| कांग्रेस तो इन अपेक्षाओं को कभी भी पूरी नहीं कर सकतीं क्योंकि ये विषमताएँ कांग्रेस की ही देन हैं| २०१९ के पश्चात भी ये अपेक्षाएं रहेंगी|
(1) हिन्दू मंदिरों को सरकारी अधिकार से मुक्त कराकर धर्माचार्यों की समिति द्वारा गठित ट्रस्ट को सौंपना| उनकी आय का उपयोग सिर्फ उनकी देखभाल और हिन्दू धर्म प्रचार में ही हो|
(2) तथाकथित अल्पसंख्यकों को अपनी सरकारी अनुदानित शिक्षण संस्थाओं में अपने धर्म के अध्यापन की जो अनुमति है वह हिन्दू शिक्षण संस्थाओं को भी हो| इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाए|
(3) प्रत्येक भारतीय सिर्फ भारतीय ही हो, कोई अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक नहीं| पन्थ के नाम पर कोई भेदभाव ना हो| अल्पसंख्यक आयोग को समाप्त किया जाए|
(4) भारत में पंजीकृत धार्मिक संस्थाओं के अध्यक्ष और निर्देशक सिर्फ भारतीय ही हों, विदेशी नागरिक तो बिलकुल नहीं|
(5) भारत का आधिकारिक नाम सिर्फ "भारत" ही हो, इंडिया तो बिलकुल नहीं| इंडिया शब्द सिर्फ इतिहास का विषय रह जाए|
(6) जिन टेलिविज़न समाचार चैनलों और समाचारपत्रों के मालिक विदेशी हैं उन पर प्रतिबन्ध लगाया जाए| इनका स्वामित्व सिर्फ भारतीयों के पास ही हो |
उपरोक्त परिवर्तन बड़े क्रन्तिकारी होंगे| जय जननी जय भारत |

यश का लोभ हमें भगवान से दूर करता है .....

यश का लोभ हमें भगवान से दूर करता है .....
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यश की कामना और उस कामना की पूर्ती का प्रयास निश्चित रूप से हमें भगवान से दूर करता है| यश की कामना होनी ही नहीं चाहिए| यदि कहीं कोई महिमा है तो सिर्फ भगवान की है, हमारी नहीं, क्योंकि हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं जिसे हम स्वयं भूला बैठे हैं| स्वयं की इस देह रूपी नश्वर दुपहिया वाहन के नाम, रूप और अहंकार को महिमामंडित करने और इस का यश फैलाने के चक्कर में हम अनायास ही अत्यधिक अनर्थ कर बैठते हैं| अपने नाम के साथ तरह तरह की उपाधियों को जोड़ना भी एक अहंकार और यश का लोभ है| हर बात का श्रेय लेकर और आत्म-प्रशंसा कर के हम स्वयं के अहंकार को तो तृप्त कर सकते हैं पर भगवान को प्रसन्न नहीं कर सकते| इस विषय पर अपने विवेक से सोचिये और सदा सतर्क रहिये|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ मई २०१८

सत्य के प्रति पूर्ण निष्ठा ही आध्यात्मिक प्रगति का एकमात्र रहस्य है ....

सत्य के प्रति पूर्ण निष्ठा ही आध्यात्मिक प्रगति का एकमात्र रहस्य है| हम निरंतर सचेत रहें कि कहीं हम असत्य का आचरण तो नहीं कर रहे हैं| सत्य क्या है? इसकी निरंतर खोज करते रहें| यही मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा है| यही मनुष्य का धर्म है| सत्य ही परमात्मा है|

सिर्फ मनुष्य जाति को ही भगवान ने सत्य-असत्य को समझने का विवेक दिया है| उस विवेक के प्रकाश में ही हमारा हर विचार और हर कार्य हो| आँख मींच कर किसी का अन्धानुशरण न करें| सत्य की खोज ही हमें परमात्मा तक पहुंचा सकती है| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ मई २०१८

साक्षात भगवती जगन्माता ही मेरी माँ है .....

साक्षात भगवती जगन्माता ही मेरी माँ है .....
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पता नहीं कितने जन्म लिए व कितने और लेने पड़ेंगे| पर हर जन्म में मेरी एक ही माता थी, वह माँ जिसने इस संसार की सृष्टि की, पालन-पोषण व संहार किया| अब भी सारी सृष्टि का संचालन वह जगन्माता ही कर रही है| इस जन्म में भी जो मेरी माँ थी वह कोई सामान्य मानवी स्त्री नहीं, एक देवी के रूप में साक्षात जगन्माता ही थीं| मुझे तो उनमें जगन्माता ही दिखाई देती हैं| भौतिक रूप में वे नहीं हैं पर सभी माताओं के रूप में वे ही प्रत्यक्ष हैं|.
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अब माँ से मेरी प्रार्थना स्वयं के लिए नहीं, इस राष्ट्र और समष्टि के लिए है| हे जगन्माता, हे भगवती, मैं पूर्ण रूप से तुम्हारी कृपा पर आश्रित हूँ| धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कुछ भी मेरी क्षमता में नहीं है| मेरे में न तो कोई विवेक है और न शक्ति| अब मेरे वश में कुछ भी नहीं है| जो करना है वह तुम ही करो, मैं तुम्हारी शरणागत हूँ| सत्य-असत्य, नित्य-अनित्य आदि का मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है| अपनी सृष्टि के लिए इस देह का जो भी उपयोग करना चाहो वह तुम ही करो| मेरी कोई इच्छा नहीं है| तुम चाहो तो इस देह को इसी क्षण नष्ट कर सकती हो| पर मेरी करुण पुकार तुम्हें सुननी ही होगी|
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हे भगवती, तुम्ही एकमात्र कर्ता हो| तुम्हीं इन पैरों से चल रही हो, इन हाथों से तुम्हीं कार्य कर रही हो, इस ह्रदय में तुम्हीं धड़क रही हो, ये साँसें भी तुम्ही ले रही हो, इन विचारों से जगत की सृष्टि संरक्षण और संहार भी तुम्ही कर रही हो| हे जगन्माता, तुम ही यह 'मैं' बन गयी हो| यह पानी का बुलबुला तुम्हारे ही अनंत महासागर में तैर रहा है| इसे अपने साथ एक करो| इस बुलबुले में कोई स्वतंत्र क्षमता नहीं है|
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हे भगवती, इस जीवन में मैं जितने भी लोगों से मिला हूँ और जहाँ कहीं भी गया हूँ, तुम्हारे ही विभिन रूपों से मिला हूँ, तुम्हारे में ही विचरण करता आया हूँ, अन्य कोई है ही नहीं| यह 'मैं' का होना एक भ्रम है, इस पृथकता के बोध को समाप्त करो| हे भगवती, तुम ही यह 'मैं' बन गयी हो, अब तुम्हारा ही आश्रय है, तुम ही मेरी गति हो|
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हे माँ भगवती, अपनी परम कृपा और करुणा कर के इस राष्ट्र भारतवर्ष की अस्मिता की रक्षा करो जिस पर सैंकड़ों वर्षों से मर्मान्तक प्रहार होते आ रहे हैं| अब समय आ गया है इसकी पूरी रक्षा करने का| अपने लिए अब कुछ भी नहीं माँग रहे हैं, तुम्हारा साक्षात्कार बाद में कर लेंगे, हमें कोई शीघ्रता नहीं है, पर सर्वप्रथम भारत के भीतर और बाहर के शत्रुओं का नाश करो| अब हम तुम्हारे से तब तक और कुछ भी नहीं मांगेगे जब तक धर्म और राष्ट्र की रक्षा नहीं होती| जिस भूमि पर धर्म और ईश्वर की सर्वाधिक और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हुई है वह राष्ट्र गत दीर्घकाल से अधर्मी आतताइयों, दस्युओं, तस्करों, और ठगों से त्रस्त है|
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इस राष्ट्र के नागरिकों में धर्म, समाज और राष्ट्र की चेतना, साहस और पुरुषार्थ जागृत करो|
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जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे |
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ||१||
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे, जय पावकभूषितवक्त्रवरे |
जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्यविशोषकरे ||२||
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे, जय लोकसमस्तकपापहरे |
जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोऽवनते ||३||
जय षण्मुखसायुधईशनुते, जय सागरगामिनि शम्भुनुते |
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे ||४||
जय देवि समस्तशरीरधरे, जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे |
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे, जय वांछितदायिनि सिद्धिवरे ||५||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मई २०१८

भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मांगना उनका अपमान है .....

भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मांगना उनका अपमान है .....

जब हम भगवान के प्रेममय रूप का ध्यान करते हैं तब जिस आनंद की अनुभूति होती है वह आनंद अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकता| वह आनंद अनुपम और अतुल्य है| यह बात करने का नहीं, अनुभव का विषय है|

अपने सम्पूर्ण हृदय से प्रभु को प्रेम करो, और उनसे उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मत चाहो| जो आनंद, संतुष्टि और तृप्ति उनको प्रेम करने और उनकी उपस्थिति के आभास से मिलती है, वह इस सृष्टि में अन्य कहीं भी नहीं मिल सकती| उसके आगे अन्य सब कुछ गौण है| जब उनका प्रेम मिल गया तो सब कुछ मिल गया| अन्य कोई अपेक्षा मत रखिये|

हम सब के ह्रदय में वह प्रेम जागृत हो, सभी को शुभ मंगल कामनाएँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१३ मई २०१८

हम कब तक सोते रहेंगे ? ....

हम कब तक सोते रहेंगे ?

अनंत काल से अब तक सो ही तो रहे हैं, और किया भी क्या है? क्या अब भी सोते ही रहेंगे? अब तो जागने में ही सार है| बहुत बुरी आदत पड़ गयी है सदा सोने की|

बाहर चारों ओर अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश हो रहा है, और ज्ञान रूपी प्रकाश फ़ैलने लगा है| जिन्हें यह प्रकाश दिखाई नहीं दे रहा है वे अभी भी नींद में हैं| उनकी चिंता छोड़ो| सामने साक्षात् परमात्मा हैं| उनके इस विराट प्रेमसिन्धु में तुरंत छलांग लगा लो| आनंद ही आनंद है, कहीं कोई अभाव नहीं है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ मई २०१८