साक्षात भगवती जगन्माता ही मेरी माँ है .....
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पता नहीं कितने जन्म लिए व कितने और लेने पड़ेंगे| पर हर जन्म में मेरी एक ही माता थी, वह माँ जिसने इस संसार की सृष्टि की, पालन-पोषण व संहार किया| अब भी सारी सृष्टि का संचालन वह जगन्माता ही कर रही है| इस जन्म में भी जो मेरी माँ थी वह कोई सामान्य मानवी स्त्री नहीं, एक देवी के रूप में साक्षात जगन्माता ही थीं| मुझे तो उनमें जगन्माता ही दिखाई देती हैं| भौतिक रूप में वे नहीं हैं पर सभी माताओं के रूप में वे ही प्रत्यक्ष हैं|.
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अब माँ से मेरी प्रार्थना स्वयं के लिए नहीं, इस राष्ट्र और समष्टि के लिए है| हे जगन्माता, हे भगवती, मैं पूर्ण रूप से तुम्हारी कृपा पर आश्रित हूँ| धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कुछ भी मेरी क्षमता में नहीं है| मेरे में न तो कोई विवेक है और न शक्ति| अब मेरे वश में कुछ भी नहीं है| जो करना है वह तुम ही करो, मैं तुम्हारी शरणागत हूँ| सत्य-असत्य, नित्य-अनित्य आदि का मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है| अपनी सृष्टि के लिए इस देह का जो भी उपयोग करना चाहो वह तुम ही करो| मेरी कोई इच्छा नहीं है| तुम चाहो तो इस देह को इसी क्षण नष्ट कर सकती हो| पर मेरी करुण पुकार तुम्हें सुननी ही होगी|
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हे भगवती, तुम्ही एकमात्र कर्ता हो| तुम्हीं इन पैरों से चल रही हो, इन हाथों से तुम्हीं कार्य कर रही हो, इस ह्रदय में तुम्हीं धड़क रही हो, ये साँसें भी तुम्ही ले रही हो, इन विचारों से जगत की सृष्टि संरक्षण और संहार भी तुम्ही कर रही हो| हे जगन्माता, तुम ही यह 'मैं' बन गयी हो| यह पानी का बुलबुला तुम्हारे ही अनंत महासागर में तैर रहा है| इसे अपने साथ एक करो| इस बुलबुले में कोई स्वतंत्र क्षमता नहीं है|
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हे भगवती, इस जीवन में मैं जितने भी लोगों से मिला हूँ और जहाँ कहीं भी गया हूँ, तुम्हारे ही विभिन रूपों से मिला हूँ, तुम्हारे में ही विचरण करता आया हूँ, अन्य कोई है ही नहीं| यह 'मैं' का होना एक भ्रम है, इस पृथकता के बोध को समाप्त करो| हे भगवती, तुम ही यह 'मैं' बन गयी हो, अब तुम्हारा ही आश्रय है, तुम ही मेरी गति हो|
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हे माँ भगवती, अपनी परम कृपा और करुणा कर के इस राष्ट्र भारतवर्ष की अस्मिता की रक्षा करो जिस पर सैंकड़ों वर्षों से मर्मान्तक प्रहार होते आ रहे हैं| अब समय आ गया है इसकी पूरी रक्षा करने का| अपने लिए अब कुछ भी नहीं माँग रहे हैं, तुम्हारा साक्षात्कार बाद में कर लेंगे, हमें कोई शीघ्रता नहीं है, पर सर्वप्रथम भारत के भीतर और बाहर के शत्रुओं का नाश करो| अब हम तुम्हारे से तब तक और कुछ भी नहीं मांगेगे जब तक धर्म और राष्ट्र की रक्षा नहीं होती| जिस भूमि पर धर्म और ईश्वर की सर्वाधिक और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हुई है वह राष्ट्र गत दीर्घकाल से अधर्मी आतताइयों, दस्युओं, तस्करों, और ठगों से त्रस्त है|
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इस राष्ट्र के नागरिकों में धर्म, समाज और राष्ट्र की चेतना, साहस और पुरुषार्थ जागृत करो|
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जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे |
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ||१||
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे, जय पावकभूषितवक्त्रवरे |
जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्यविशोषकरे ||२||
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे, जय लोकसमस्तकपापहरे |
जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोऽवनते ||३||
जय षण्मुखसायुधईशनुते, जय सागरगामिनि शम्भुनुते |
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे ||४||
जय देवि समस्तशरीरधरे, जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे |
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे, जय वांछितदायिनि सिद्धिवरे ||५||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मई २०१८
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पता नहीं कितने जन्म लिए व कितने और लेने पड़ेंगे| पर हर जन्म में मेरी एक ही माता थी, वह माँ जिसने इस संसार की सृष्टि की, पालन-पोषण व संहार किया| अब भी सारी सृष्टि का संचालन वह जगन्माता ही कर रही है| इस जन्म में भी जो मेरी माँ थी वह कोई सामान्य मानवी स्त्री नहीं, एक देवी के रूप में साक्षात जगन्माता ही थीं| मुझे तो उनमें जगन्माता ही दिखाई देती हैं| भौतिक रूप में वे नहीं हैं पर सभी माताओं के रूप में वे ही प्रत्यक्ष हैं|.
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अब माँ से मेरी प्रार्थना स्वयं के लिए नहीं, इस राष्ट्र और समष्टि के लिए है| हे जगन्माता, हे भगवती, मैं पूर्ण रूप से तुम्हारी कृपा पर आश्रित हूँ| धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कुछ भी मेरी क्षमता में नहीं है| मेरे में न तो कोई विवेक है और न शक्ति| अब मेरे वश में कुछ भी नहीं है| जो करना है वह तुम ही करो, मैं तुम्हारी शरणागत हूँ| सत्य-असत्य, नित्य-अनित्य आदि का मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है| अपनी सृष्टि के लिए इस देह का जो भी उपयोग करना चाहो वह तुम ही करो| मेरी कोई इच्छा नहीं है| तुम चाहो तो इस देह को इसी क्षण नष्ट कर सकती हो| पर मेरी करुण पुकार तुम्हें सुननी ही होगी|
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हे भगवती, तुम्ही एकमात्र कर्ता हो| तुम्हीं इन पैरों से चल रही हो, इन हाथों से तुम्हीं कार्य कर रही हो, इस ह्रदय में तुम्हीं धड़क रही हो, ये साँसें भी तुम्ही ले रही हो, इन विचारों से जगत की सृष्टि संरक्षण और संहार भी तुम्ही कर रही हो| हे जगन्माता, तुम ही यह 'मैं' बन गयी हो| यह पानी का बुलबुला तुम्हारे ही अनंत महासागर में तैर रहा है| इसे अपने साथ एक करो| इस बुलबुले में कोई स्वतंत्र क्षमता नहीं है|
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हे भगवती, इस जीवन में मैं जितने भी लोगों से मिला हूँ और जहाँ कहीं भी गया हूँ, तुम्हारे ही विभिन रूपों से मिला हूँ, तुम्हारे में ही विचरण करता आया हूँ, अन्य कोई है ही नहीं| यह 'मैं' का होना एक भ्रम है, इस पृथकता के बोध को समाप्त करो| हे भगवती, तुम ही यह 'मैं' बन गयी हो, अब तुम्हारा ही आश्रय है, तुम ही मेरी गति हो|
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हे माँ भगवती, अपनी परम कृपा और करुणा कर के इस राष्ट्र भारतवर्ष की अस्मिता की रक्षा करो जिस पर सैंकड़ों वर्षों से मर्मान्तक प्रहार होते आ रहे हैं| अब समय आ गया है इसकी पूरी रक्षा करने का| अपने लिए अब कुछ भी नहीं माँग रहे हैं, तुम्हारा साक्षात्कार बाद में कर लेंगे, हमें कोई शीघ्रता नहीं है, पर सर्वप्रथम भारत के भीतर और बाहर के शत्रुओं का नाश करो| अब हम तुम्हारे से तब तक और कुछ भी नहीं मांगेगे जब तक धर्म और राष्ट्र की रक्षा नहीं होती| जिस भूमि पर धर्म और ईश्वर की सर्वाधिक और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हुई है वह राष्ट्र गत दीर्घकाल से अधर्मी आतताइयों, दस्युओं, तस्करों, और ठगों से त्रस्त है|
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इस राष्ट्र के नागरिकों में धर्म, समाज और राष्ट्र की चेतना, साहस और पुरुषार्थ जागृत करो|
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जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे |
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ||१||
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे, जय पावकभूषितवक्त्रवरे |
जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्यविशोषकरे ||२||
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे, जय लोकसमस्तकपापहरे |
जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोऽवनते ||३||
जय षण्मुखसायुधईशनुते, जय सागरगामिनि शम्भुनुते |
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे ||४||
जय देवि समस्तशरीरधरे, जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे |
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे, जय वांछितदायिनि सिद्धिवरे ||५||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मई २०१८
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