Wednesday 16 May 2018

यश का लोभ हमें भगवान से दूर करता है .....

यश का लोभ हमें भगवान से दूर करता है .....
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यश की कामना और उस कामना की पूर्ती का प्रयास निश्चित रूप से हमें भगवान से दूर करता है| यश की कामना होनी ही नहीं चाहिए| यदि कहीं कोई महिमा है तो सिर्फ भगवान की है, हमारी नहीं, क्योंकि हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं जिसे हम स्वयं भूला बैठे हैं| स्वयं की इस देह रूपी नश्वर दुपहिया वाहन के नाम, रूप और अहंकार को महिमामंडित करने और इस का यश फैलाने के चक्कर में हम अनायास ही अत्यधिक अनर्थ कर बैठते हैं| अपने नाम के साथ तरह तरह की उपाधियों को जोड़ना भी एक अहंकार और यश का लोभ है| हर बात का श्रेय लेकर और आत्म-प्रशंसा कर के हम स्वयं के अहंकार को तो तृप्त कर सकते हैं पर भगवान को प्रसन्न नहीं कर सकते| इस विषय पर अपने विवेक से सोचिये और सदा सतर्क रहिये|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ मई २०१८

3 comments:

  1. जिन के हृदय-मंदिर में भगवान बिराजते हैं, वे स्वयं ही चलते-फिरते देवता हैं. पृथ्वी उनको पाकर सनाथ है. वह कुल धन्य है जहाँ वे जन्में हैं. वह भूमि पवित्र है जहाँ उनके पैर पड़ते हैं. वे सब भी भाग्यशाली हैं जिन्हें उनके दर्शन होते हैं.

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  2. दूसरे लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इसका कोई महत्व नहीं है| यह उनकी समस्या है| पर हम स्वयं के बारे में क्या सोचते हैं, यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| क्योंकि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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  3. सारी आध्यात्मिक साधनाएँ "भगवान नहीं मिलने" के स्मृति दोष को दूर करने के लिए हैं....
    (नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा ..... गीता/१८/७३)

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