Sunday 2 April 2017

गायत्री मन्त्र सर्वाधिक शक्तिशाली प्रार्थना है ........

गायत्री मन्त्र सर्वाधिक शक्तिशाली प्रार्थना है ........
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वर्षों पूर्व एक अमेरिकी वैज्ञानिक डा.होवार्ड स्टेन्गेरिल ने विश्व के सभी मतों के मंत्र और प्रार्थनाओं को एकत्र कर के उन पर अपनी प्रयोगशाला में एक विशेष प्रयोग कर के पाया था कि ... हिन्दुओं का वैदिक गायत्री मंत्र वैज्ञानिक रूप से सर्वाधिक प्रभावशाली है| गायत्री मन्त्र के उच्चारण से 110,000 ध्वनी की तरंगें प्रति क्षण उत्पन्न हुईं| ये सर्वाधिक थीं और इसे सबसे अधिक प्रभावशाली पाया गया|
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बाद में ऐसा ही एक प्रयोग जर्मनी के हेम्बर्ग विश्वविद्यालय में किया गया था और उन्होंने भी इसे सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना पाया| जर्मनी ने गायत्री मन्त्र पर अपना कॉपी राईट भी करा लिया था| ध्वनी का मिश्रण, तरंगों की आवृतियों, और उनके मानसिक और भौतिक प्रभाव आदि पर अनेक प्रयोग कर के इसे सबसे अधिक प्रभावी पाया गया था|
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ऐसे प्रयोग भारत में भी होने चाहिएँ| यही नहीं सभी पंथों, मत-मतान्तरों की साधना पद्धतियों पर भी प्रयोग होने चाहियें कि कौन सी साधना पद्धति सर्वश्रेष्ठ है| आशा है एक ना एक ऐसा दिन अवश्य आयेगा|
मरने के बाद प्राणी की क्या गति होती है ? आदि आदि .... इस पर भी अनुसंधान होने चाहियें| क्या स्वर्ग-नर्क यानि जन्नत-दोज़ख वास्तविकता है या काल्पनिक .... इस सब पर भी खोज होनी चाहिए| वह दिन भी शीघ्र ही आयेगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

नित्य नियमित झाड़ू लगनी अति आवश्यक है ....

०१ अप्रेल २०१७.
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नित्य नियमित झाड़ू लगनी अति आवश्यक है ....
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आज अपराह्न में बहुत दूर से एक महात्मा जी का चलभाष (Mobile) आया जिन्होनें एक बहुत ही जरूरी बात याद दिला दी| महात्मा जी ने कहा कि नित्य वातावरण में इतनी घूल उड़ती है कि अपना निवास अनायास ही धूल से भर जाता है, बर्तनों को साफ़ नहीं करें तो बर्तनों पर जंग लग जाती है, किसी भी चीज की नियमित सफाई न करें तो वह स्वतः ही मैली हो जाती है|
ऐसे ही मनुष्य का मन है जिस पर नित्य नियमित ध्यान-साधना द्वारा झाड़ू लगना अति आवश्यक है, अन्यथा परमात्मा को पाने की अभीप्सा ही धीरे धीरे समाप्त हो जाती है| महात्मा जी ने याद दिलाया कि मेरे झाडू लगाने में नियमितता की कमी है जिसे मुझे दूर करना चाहिए| बिलकुल सही बात बताई उन्होंने जिसे मैनें स्वीकार कर लिया| भगवान किसी न किसी माध्यम से अपना सन्देश भेज ही देते हैं|
अब दृढ़ निश्चय कर नियमित रहना ही पडेगा, अन्य कोई विकल्प नहीं है| दीर्घ और गहन ध्यान साधना मेरे लिए अति आवश्यक है| ॐ नमो नारायण !
ॐ ॐ ॐ ||

धन्य हैं वे लोग ..... भगवान जिनकी परीक्षा लेता है .....

धन्य हैं वे लोग ..... भगवान जिनकी परीक्षा लेता है .....
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मेरे प्रिय निजात्मगण, मेरा आप से अनुरोध है कि .....
> जीवन में चाहे कितनी भी बड़ी कठिनाई और असफलता हो, कभी भी उसे स्वीकार मत करो|
> कभी भूल से भी मन में मत सोचो कि ..... 'मैं विफल हो गया हूँ|'
> सदा यही सोचो कि .... 'मैं सफल हूँ और मेरी सफलता सदा सुनिश्चित है|'
> अपनी विफलता, सफलता, अवगुण और गुण ..... ये सब भगवान को बापस सौंप दो| यह जीवन एक परीक्षा है जिसमें अनिवार्य नहीं है कि हम सफल ही हों| धन्य हैं वे लोग --- भगवान जिनकी परीक्षा लेता है|..
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> रात्रि को सोते समय यह संकल्प करके सोओ की प्रातः इस देह में साक्षात परमात्मा ही जागेंगे|
> प्रातः उठते ही यह संकल्प गहराई से दोहराओ कि साक्षात परमात्मा ही इस देह में जागृत हुए हैं|
> फिर पूरे दिन यही संकल्प स्मृति में रखो कि .....
(1) इस मोटर साईकिल (आपकी देह) पर सवार साक्षात् प्रभुजी हैं| वे ही इसे चला रहे हैं| या
(2) इस वायुयान (आपकी देह) के चालक (पायलट) साक्षात परब्रह्म परमात्मा हैं|
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परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है| न कोई आदि है, न मध्य, और और न कोई अंत| यह शरीर महाराज, मन महाराज और चेतना महारानी सब अपना अपना कार्य कर रहे हैं| हमारा अस्तित्व तो प्रभु के चरण कमल मात्र हैं| प्रभु चाहे जगन्माता हो या परमपिता ..... सब नाम रूपों से परे हैं|
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भगवान की भक्ति सब से बड़े छूत के रोग की तरह है जो लगने के पश्चात कभी नहीं छोडती| बीमार के संपर्क में आने वाले भी इस बीमारी से नहीं बच पाते| कठिन से कठिन परिस्थिति में भी भगवान की अनंत कृपा हम सब पर है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय |

सौलह दिन गणगौर के थे, तीज त्योंहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .....

सौलह दिन गणगौर के थे, तीज त्योंहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .....
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मारवाड़ ही नहीं, सारे राजस्थान की लोक-संस्कृति का सबसे बड़ा पर्व "गणगौर" है| होली के दूसरे दिन यानी धुलंडी से प्रारम्भ होकर चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तक इस उत्सव की छटा हर तरफ अपना रंग बिखेरे रखती है| होलिका दहन की राख लाकर उसे देशी गाय के गोबर में मिलाकर इसकी सौलह पिंडियाँ शिव और पार्वती के प्रतीक "इसर" और "गणगौर" को दूब , पुष्प , कुमकुम , मेहंदी , काजल , आदि अर्पण कर पूजा की जाती है|
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कुँवारी कन्याएँ मनोवांछित वर के लिए और विवाहित स्त्रियाँ अखंड सौभाग्यवती होने के लिए गणगौर की पूजा करती हैं| विवाह के पहले वर्ष में नवविवाहित बेटियाँ गणगौर पूजन के लिए अपने मायके जाती हैं और वहाँ गणगौर की स्थापना कर पूरे सौलह दिन तक पूजन करती हैं| साथ देने के लिए सखी-सहेलियां और आस पड़ोस की महिलाएँ भी उनके साथ पूजन करती हैं|
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दूब और जल लेने के लिए माली के घर जाते समय बड़े उत्साह से वे गाती हैं ......
"बाड़ी वाला बाड़ी खोल, म्हे आयाँ छ दूब न , कुण जी री बेटी छो, कुण जी री भाण छो .... "
माली से दूब लेकर गीत गाती हुई लौटती हैं ..... "गोर ए गणगौर माता खोल ए किवाड़ी, बायर उभी थाणे पूजन वाली ....."|
धुलंडी से शीतला अष्टमी तक राख की इन पिंडियों का विधिवत पूजन करने के पश्चात् शीतला अष्टमी को कुम्हार के घर से मिटटी लाकर गणगौर, इसर तथा अन्य मिटटी के प्रतीक बनाकर उनका नए वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है| सरकंडों पर गोटा लगाकर झूला सजाते हैं, और जौ के जंवारे उगाये जाते हैं|
बच्चियाँ गणगौर के जो गीत गाती हैं वे बड़े मधुर होते हैं| चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर का विसर्जन कर देते हैं| गणगौर के पश्चात अब महीनों तक कोई तीज-त्यौहार नहीं है, इसीलिए एक कहावत पड़ी है कि "तीज त्योंहारा बावड़ी ले डूबी गणगौर"|
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समस्त मातृशक्ति को शुभ कामनाएँ और नमन !
उद्भव स्थिति संहार कारिणी क्लेश हारिणी जगन्माता की जय | ॐ ॐ ॐ ||

समभाव में स्थिति ही समाधि है .......

समभाव में स्थिति ही समाधि है .......
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समाधि कोई क्रिया नहीं एक अवस्था का नाम है जिसमें साधनारत साधक समभाव में अधिष्ठित हो जाता है| यह अष्टांग योग का आठवाँ अंग है| समभाव में स्थिति ही समाधि है| जब साधक स्थूल, सूक्ष्म, कारण एवं तुरीय भूमियों पर एक ही दशा में अवस्थान करते हैं उसे समाधि कहते हैं|
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पतंजल योगदर्शन में सबीज, निर्बीज, सवितर्क, निर्वितर्क, सम्प्रज्ञात, असम्प्रज्ञात, सविकल्प और निर्विकल्प आदि समाधि की अवस्थाओं का स्पष्ट वर्णन है|
नाथ सम्प्रदाय में समाधि की अन्य अवस्थाओं के नाम भी प्रचलित हैं|
कुछ अन्य सम्प्रदायों में और भी अवस्थाओं के वर्णन हैं जैसे सहज समाधि, आनंद समाधि, चैतन्य समाधि आदि| हठ योग की कुछ विधियों से जड़ समाधि होती है| भावातिरेक में भाव समाधि हो जाती है|
समाधि अनेक नहीं हैं, ये सब समाधि की अवस्था के उत्तरोत्तर सोपान हैं| वास्तविक तत्व की प्राप्ति तो निर्विकल्प समाधि से भी परे जाकर होती है|
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सार की बात यह है कि जब .....
ध्येय, ध्याता और ध्यान, ज्ञेय, ज्ञाता और ज्ञान, दृष्टा दृश्य और दर्शन .....
इन सब का लय हो जाता है वह समाधि की अवस्था है|
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इससे आगे की अवस्था जिसका वाणी से वर्णन नहीं हो सकता यानि जो अवर्णनीय है वह अवस्था ..... "योग" है जहाँ परमात्मा से कोई भेद नहीं होता|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः :-
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में इसी समत्व को योग कहा है ....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥"
भावार्थ :- हे धनञ्जय ! तू आसक्तिको त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर, योगमें स्थित हुआ कर्तव्य कर्मोंको कर; यही समत्व योग कहलाता है|
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ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति। समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्‌॥
भावार्थ : फिर वह सच्चिदानन्दघन ब्रह्म में एकीभाव से स्थित, प्रसन्न मनवाला योगी न तो किसी के लिए शोक करता है और न किसी की आकांक्षा ही करता है। ऐसा समस्त प्राणियों में समभाव वाला योगी मेरी पराभक्ति को ( जो तत्त्व ज्ञान की पराकाष्ठा है तथा जिसको प्राप्त होकर और कुछ जानना बाकी नहीं रहता वही यहाँ पराभक्ति, ज्ञान की परानिष्ठा, परम नैष्कर्म्यसिद्धि और परमसिद्धि इत्यादि नामों से कही गई है) प्राप्त हो जाता है|

(1) कर्मफलों से मुक्त कैसे हों ? (2) हम भगवान् से प्रार्थना करते हैं पर उसके फल क्यों नहीं मिलते ? (3) हम कौन हैं ? हमारा परम धर्म क्या है ?

(1) कर्मफलों से मुक्त कैसे हों ?
(2) हम भगवान् से प्रार्थना करते हैं पर उसके फल क्यों नहीं मिलते ?
(3) हम कौन हैं ? हमारा परम धर्म क्या है ?
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(1) कर्मफलों से मुक्त कैसे हों ? यह एक ऐसा विषय है जिसे बौद्धिक धरातल पर समझना तो सबसे आसान है, पर करना सबसे अधिक कठिन कार्य है|
शरणागति द्वारा परमात्मा को पूर्ण समर्पित होकर ही हम अपने अच्छे-बुरे सब कर्मों से मुक्त हो सकते हैं| यह समर्पण अपने अहंकार, मोह, कामनाओं, लोभ, और राग-द्वेष सभी का हो| यही मुक्ति है, और यही मोक्ष है|
जब कोई भी कार्य हमारे माध्यम से परमात्मा के लिए ही, परमात्मा को समर्पित होकर ही होता है, वह किसी भी प्रकार के बंधन का कारण नहीं बनता|
जो कार्य अपने इन्द्रीय सुख के लिए, अपने अहंकार कि तृप्ति के लिए होता है, वह ही बंधन का कारण होता है| हमारी सोच, हमारे विचार और हमारे भाव भी हमारे कर्म ही हैं, जो हमारे खाते में जुड़ जाते हैं|
यही है कर्मफलों का रहस्य और मुक्ति का उपाय जो समझने में सर्वाधिक सरल है, पर करने में सर्वाधिक कठिन है|
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(2) हमारी प्रार्थनाओं के फल क्यों नहीं मिलते? यह भी समझना बहुत सरल है पर कार्य रूप में करना थोड़ा कठिन है|
हम अपने नित्य नियमित शास्त्रोक्त कर्म नहीं करते, इसीलिए न तो हमारी प्रार्थनाओं का कोई उत्तर मिलता है, और न ही किसी भी अनुष्ठान का फल मिलता है| समझने के लिए इतना ही पर्याप्त है|
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(3) हम कौन हैं ? हमारा परम धर्म क्या है ?
हम सब परमात्मा की एक अभिव्यक्ति हैं जो कुछ समयके लिए यह देह बन गए हैं| इस देह से हमारा सम्बन्ध नश्वर है| यह देह एक साधन मात्र है|
सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी सृष्ट है व उससे परे जो भी है वह सब हम स्वयं ही हैं|
जिसे हम ढूँढ रहे हैं वह भी हम स्वयं ही हैं|
हम यह देह नहीं बल्कि सम्पूर्ण चैतन्य हैं, सम्पूर्ण ब्रह्मांड हैं|
अपने आत्म-तत्व में स्थित होना ही हमारा परम धर्म है|
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सब का कल्याण हो| सब सुखी हों|
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||

आध्यात्मिक साधना में प्रथम लक्ष्य काम-वासना से मुक्त होना है .....

आध्यात्मिक साधना में प्रथम लक्ष्य काम-वासना से मुक्त होना है .....
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महाकाली की नियमित गहन साधना, सत्संग और सात्विक आचार-विचार से यह सिद्धि प्राप्त होती है|
जब तक मन में कामुकता का कण मात्र भी है तब तक किसी भी परिस्थिति में ज़रा सी भी आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो सकती|
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जहाँ राम तहँ काम नहिं, जहाँ काम नहिं राम |
तुलसी कबहूँ होत नहिं, रवि रजनी इक धाम || === संत तुलसीदास ===
यह जीवन काम (वासना) और राम (परमात्मा) के मध्य की यात्रा है| जैसे सूर्य और रात्रि एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही राम और काम एक साथ नहीं रह सकते|
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जहाँ कामवासना है, वहाँ पराभक्ति, ब्रहम चिन्तन या ध्यान साधना की कोई संभावना ही नहीं है| वहाँ वैराग्य और मोक्ष की कामना बालू मिट्टी में से तेल निकालने के प्रयास जैसी ही है|
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कामुक व्यक्ति को न तो शान्ति मिल सकती है और न सन्तोष| वह कभी दृढ़ निश्चयी नहीं हो सकता| उसकी सारी साधनाएँ व्यर्थ जाती हैं| वह कभी आत्मानुभूति या परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता|
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खजुराहो के मंदिरों में कामरत मूर्तियाँ हैं, वे मंदिर के बाहर हैं, भीतर नहीं| इसका अर्थ है कि यदि तुम्हारे मन में अभी भी काम-वासना है तो मंदिर से बाहर ही रहो, भीतर जाने की आवश्यकता नहीं है| भीतर तभी जाओ जब इस वासना से मुक्त हो जाओ|

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महाकाली की साधना का उद्देश्य ही अवचेतन में छिपी कामुकता और अन्य सभी विकृतियों से मुक्त होना है| महाकाली उन सब का नाश कर देती है|
गीता प्रेस की दुर्गा सप्तशती की पुस्तक में दिए वैदिक देवी अथर्वर्शीर्ष का गहन अध्ययन करें| नवार्ण मन्त्र का नित्य नियमित जाप करें| फिर किसी ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य से मार्गदर्शन प्राप्त करें| मन में भक्ति और श्रद्धा होगी तो जगन्माता स्वयं मार्गदर्शन करेगी|

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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

हमारा मन एक बगीचा है ....

हमारा मन एक बगीचा है .....
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जब हम कोई बगीचा लगाते हैं तो उसमें कंकर पत्थर नहीं डालते| हमारा मन भी एक बगीचा है जिस में हमने अपने विचारों, चिंतन और भावनाओं के सुन्दर वृक्ष लगा रखे हैं| इस बगीचे में अतिथि के रूप में हम परमात्मा को आमंत्रित कर रहे हैं, अतः इसे साफ़ सुथरा रखना हमारा परम दायित्व है| प्रातः उठते ही समाचार पत्र न पढ़ें| जितना आवश्यक हो उतना ही उन्हें मध्याह्न में पढ़ें| एक-दो चैनलों को कुछ समय के लिए अपवादस्वरूप छोड़कर टीवी पर सारे समाचार चैनल विष-वमन के अलावा कुछ भी नहीं करते| उनमें दिखाए जाने वाले वाद-विवाद यानि बहसें तो बहुत ही घटिया मानसिकता की होती हैं| उनसे बचें| फेसबुक और इन्टरनेट का भी नब्ब प्रतिशत तो दुरुपयोग ही हो रहा है| कोई दस प्रतिशत लोग ही इसका सदुपयोग कर रहे हैं| इसमें छाई अश्लीलता और कामुकता से बचें|
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भारत की अधिकाँश समाचार चैनलें और अंग्रेजी के समाचार पत्र विदेशी स्वामित्व के हैं जिनका उद्देश्य ही अपने विदेशी स्वामियों के भारत विरोधी उद्देश्यों को पूरा करना है| ये हमारे दिमाग में एक धीमा जहर डालने का कार्य कर रहे हैं| हमारी सारी प्रेस विदेशियों के हाथों बिकी हुई है|
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यदि आप एक आध्यात्मिक साधक हैं और अपने मस्तिष्क को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो टीवी पर समाचार चैनलों के जहरीले व्याख्यान सुनने और अंग्रेजी के अखबार पढने तो बंद ही कर दीजिये| कुछ दिनों में आप पायेंगे कि आपको बहुत शांति मिल रही है| धन्यवाद|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

हृदय का प्रेम ही एकमात्र सहारा है, अन्य कुछ भी मेरे पास नहीं है .....

हृदय का प्रेम ही एकमात्र सहारा है, अन्य कुछ भी मेरे पास नहीं है .......
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यह प्रेम ही मेरी एकमात्र संपत्ति है, जिसके अतिरिक्त मेरे पास अन्य कुछ भी नहीं है| साधना की दृष्टि से सभी आध्यात्मिक साधकों के लिए वर्तमान समय कुछ अधिक ही कठिन है| पर साहस मत हारिये, यह काल अधिक फलदायी भी है|
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मेरा यह शरीर महाराज और उनका मनोबल अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं| चारों ओर विपरीत परिस्थितियाँ हैं| ऊर्जा, मनोबल, उत्साह और विवेक सभी निरंतर क्षीण हो रहे हैं, पर फिर भी परमात्मा की अपार कृपा है| जीवन तो शाश्वत है| किसी भी तरह का कोई सदेह या शंका नहीं है| सोच में, चिंतन में स्पष्टता है| जगन्माता हर जन्म में हर पल अपनी दृष्टी में सदा रखे, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं चाहिए|
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किसी से कुछ भी नहीं चाहिए| व्यष्टि समष्टि से स्वतंत्र नहीं है| जो समष्टि में हो रहा है वह व्यष्टि को मिलेगा ही| यह स्वाभाविक और प्रकृति के नियमानुसार ही है| जब तक यह शरीर महाराज रुपी बाइसिकल चल रही है, तब तक और उसके पश्चात भी इस जीवन में परमात्मा की कृपा बरसती ही रहेगी| आगे भी यही क्रम रहेगा| दूसरी कोई और बाइसिकल मिल जायेगी| यात्रा तो चलती ही रहेगी|
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हे परमशिव, हे जगन्माता, आप मुझे कभी नहीं भूलें| सदा मेरे कूटस्थ चैतन्य में स्थित रहें| आप ही मेरे जीवन धन हो और मेरे प्राण हो| चाहे यह सृष्टि नष्ट हो जाए, पर मैं और आप सदा एक ही रहेंगे| मैं जैसा भी हूँ और जो कुछ भी हूँ, सदा आपका ही रहूँगा| ॐ ॐ ॐ ||

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

नवरात्रों में फलाहार की दावत ......

जीवन में अब तक रोजा-इफ्तार की दावतों के बारे में ही सुना था जिन्हें देना और जिनमें वेश बदल कर सम्मिलित होना सभी हिन्दू नेता अपनी शान समझते थे| कल जीवन में पहली बार सुना कि नवरात्रों में किसी हिन्दू नेता द्वारा फलाहार की दावत भी दी जा सकती है, जिसे सुन कर भारत की समाचार मीडिया बौखलाई हुई है|
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जब भी अजमेर की दरगाह में उर्स होती है, तब सर्वोच्च से लेकर नीचे तक सारे राजनेता चादर चढाने भेजते हैं| क्या इन नेताओं ने श्रावण के पवित्र माह में कभी किसी शिवालय में शिवजी पर जल का एक लोटा भी चढ़ाया है या चढ़वाया है, या किसी देवालय में जाकर पूजा-अर्चना भी की है?
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अब जाकर पता चला है कि किसी नेता द्वारा शिव जी की आराधना भी की जा सकती है, माथे पर तिलक भी लगाया जा सकता है, और देवालयों में पूजा-अर्चना भी की जा सकती है|
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निश्चित रूप से विचारों में एक सकारात्मक परिवर्तन हो रहा है| ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः :---- सारे आतंकी पकिस्तान से आते हैं| पर पकिस्तान का नाम लेने से भारतीय मीडिया क्यों डरती है? वे पकिस्तान के स्थान पर "सीमा पार" शब्दों का प्रयोग करते हैं| उनमें यह कहने का साहस क्यों नहीं है कि जब तक पाकिस्तान का अस्तित्व है, भारत में कभी शान्ति नहीं हो सकती|

देश मे सारे वही कानून अभी तक है, जो अन्ग्रेजों ने हमें लूटने के लिये बनाये थे .....

लेखक : श्री विजय कृष्ण पांडेय
April 22,2014
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स्नेही स्वजनों,स्वागत एवं सुमंगल कामना~~~~~~~~~^~~~~~~~~~
एक लेख सिर्फ सच्चे भारतीयों के लिये !!
यदि आपके पास समय नहीं है तो कृपया इस लेख को पढऩे की शुरूआत ही मत कीजिए।
यह लेख आपके अपने भारत की व्यवस्था से जुड़ा है और बहुत ही गंभीर विषय है।
यदि आपके पास समय है तो कृपया पढि़ए क्या कुछ उजागर कर रहे हैं हम ..

व्यवस्था परिवर्तन क्यो जरूरी है ?
आजादी के 67 साल बाद भी देश मे सारे वही कानून अभी तक है, जो अन्ग्रेजों ने हमें
लूटने कि लिये बनाये थे ।
(01) 1857 में एक क्रांति हुई जिसमे इस देश में मौजूद 99 % अंग्रेजों को भारत के
लोगों ने चुन चुन के मार डाला था और 1% इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने अपने
को बचाने के लिए अपने शरीर को काला रंग लिया था |
लोग इतने गुस्से में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां
पहुँच के वो उन्हें काट डालते थे | |
(02) हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस 1857 की क्रांति को सिपाही विद्रोह
के नाम से पढाया जाता है |
जो बिलकुल गलत है |
Mutiny और Revolution में अंतर होता है लेकिन इस क्रांति को विद्रोह के नाम से
ही पढाया गया हमारे इतिहास में |
(03) अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर
(जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो
नवजात हो या मरणासन्न |1857 की गर्मी में मेरठ से शुरू हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों
ने शुरू किया था,लेकिन एक आम आदमी का आन्दोलन बन गया और इसकी आग
पुरे देश में फैली और 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया था |
भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था |
लेकिन नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया
और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर तरह से योगदान दिया |
धन बल, सैनिक बल,खुफिया जानकारी,जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और
उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया |
और आप इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि वो रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में
सक्रिय हैं |
(04) 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाये जो एक सरकार के
शासन करने के लिए जरूरी होता है |
आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर
1946 तक के हैं |
(05) तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून बनाया Central Excise Duty Act और
टैक्स तय किया गया 350% मतलब 100 रूपये का उत्पादन होगा तो 350 रुपया
Excise Duty देना होगा | फिर अंग्रेजों ने समान के बेचने पर Sales Tax लगाया
और वो तय किया गया 120% मतलब 100 रुपया का माल बेचो तो 120 रुपया CST दो |
(06) 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर अंग्रेजों ने जो भारत को लुटा उसके
सारे रिकार्ड बताते हैं कि करीब 300 लाख करोड़ रुपया लुटा अंग्रेजों ने इस देश से |
(07) आपने पढ़ा होगा कि हमारे देश में उस समय कई अकाल पड़े, ये अकाल
प्राकृतिक नहीं था बल्कि अंग्रेजों के ख़राब कानून से पैदा हुए अकाल थे,
(08) हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए,
(09) 1858 में Indian Education Act बनाया गया |
इसकी ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी |
लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था,
उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी |
अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने
अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था |
1823 के आसपास की बात है ये | Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था,
उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे
किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में
इतनी साक्षरता है |
इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया,जब गुरुकुल गैरकानूनी
हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी
हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया,और इस देश के गुरुकुलों को घूम
घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमे पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा-पीटा,
जेल में डाला |
1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश
में गाँव थे 7 लाख 50 हजार, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो
गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते
थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था,और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे
न कि राजा,महाराजा,और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी |
इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी
घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया,उस समय इसे
फ्री स्कूल कहा जाता था,इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी,
बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी,मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के
ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं |
(10) मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम
बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त
करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस
देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे |
(11) मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी वो, उसमे वो लिखता है कि
"इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन
दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा,
इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा,
इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा,
इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे,
जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत
नहीं जाएगी "
और उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है |
और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है,अंग्रेजी
में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा,अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा
बोलने में शर्म आ रही है,दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा |
(12) लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है,
दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है,
फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है |
(13) 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया |
1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी|
लेकिन 1857 में जो विद्रोह हुआ उससे डरकर उन्होंने ये कानून बनाया ताकि ऐसे किसी
विद्रोह/क्रांति को दबाया जा सके |
अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए |
उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया |
पुलिस को एक डंडा थमा दिया गया और ये अधिकार दे दिया गया कि अगर कहीं 5 से
ज्यादा लोग हों तो वो डंडा चला सकता है यानि लाठी चार्ज कर सकता है और वो भी
बिना पूछे और बिना बताये और पुलिस को तो Right to Offence है लेकिन आम
आदमी को Right to Defense नहीं है |
आपने अपने बचाव के लिए उसके डंडे को पकड़ा तो भी आपको सजा हो सकती है क्योंकि
आपने उसके ड्यूटी को पूरा करने में व्यवधान पहुँचाया है और आप उसका कुछ नहीं
कर सकते | इसी कानून का फायदा उठाकर लाला लाजपत राय पर लाठियां चलायी
गयी थी और लाला जी की मृत्यु हो गयी थी और लाठी चलाने वाले सांडर्स का क्या
हुआ था ?
कुछ नहीं, क्योंकि वो अपनी ड्यूटी कर रहा था और जब सांडर्स को कोई सजा नहीं हुई तो
लालाजी के मौत का बदला भगत सिंह ने सांडर्स को गोली मारकर लिया था |
और वही दमन और अत्याचार वाला कानून "इंडियन पुलिस एक्ट" आज भी इस देश
में बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले चल रहा है |
और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24 घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही तनख्वाह में|
तनख्वाह मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की |
(14) और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था
ताकि वो जल्दी मरे,वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी हैं
हमारे जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है |
(15) 1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया |
ये जो Collector हैं वो इसी कानून की देन हैं |
भारत के Civil Servant जो हैं उन्हें Constitutional Protection है,क्योंकि जब ये
कानून बना था उस समय सारे ICS अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के
लिए ऐसा कानून बनाया था,ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है,और वो कानून चुकी
आज भी लागू है इसलिए भारत के IAS अधिकारी सबसे निरंकुश हैं |
अभी आपने CVC थोमस का मामला देखा होगा |
इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |
और इन अधिकारियों का हर तीन साल पर तबादला हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये
डर था कि अगर ज्यादा दिन तक कोई अधिकारी एक जगह रह गया तो उसके स्थानीय
लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा
या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा |
और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे
यहाँ के कलक्टरों की जिंदगी इसी में कट जाती है |
ये जो Collector होते थे उनका काम था Revenue, Tax,लगान और लुट के माल
को Collect करना इसीलिए ये Collector कहलाये |
अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया है, 67 सालों में बस इतना ही बदलाव हुआ है |
(16) *Indian Income Tax Act -* तो ध्यान दीजिये कि इस देश में टैक्स का
कानून क्यों लाया जा रहा है ?
क्योंकि इस देश के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को,उत्पादकों को,उद्योगपतियों को,
काम करने वालों को या तो बेईमान बनाया जाये या फिर बर्बाद कर दिया जाये,
ईमानदारी से काम करें तो ख़त्म हो जाएँ और अगर बेईमानी करें तो हमेशा ब्रिटिश
सरकार के अधीन रहें |
अंग्रेजों ने इनकम टैक्स की दर रखी थी 97% और इस व्यवस्था को 1947 में
ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आपको जान के ये आश्चर्य
होगा कि 1970-71 तक इस देश में इनकम टैक्स की दर 97% ही हुआ करती थी |
(17) अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लुटने के लिए,
अब तो इस देश में VAT को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं |
(18) 1865 में Indian Forest Act बनाया गया और ये लागू हुआ 1872 में |
इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की सम्पति माने जाते थे|
(19) इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी या दूसरा कोई
भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता |
लेकिन दूसरी तरफ जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गयी जो
आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ़ कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता |
ये इंडियन फोरेस्ट एक्ट ऐसा है जिसमे सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट
सकते हैं लेकिन आप और हम चूल्हा जलाने के लिए,रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं
ले सकते और उससे भी ज्यादा ख़राब स्थिति अब हो गयी है,आप अपने जमीन पर के
पेड़ भी नहीं काट सकते |
(20 ) *Indian Penal Code *- अंग्रेजों ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था
जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC ) |
ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा
था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना
दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा |
इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही
नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे
ज्यादा तकलीफ देगी |
(21) ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है |
और आजादी के 64 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4
करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं,उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं |
10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने
की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है,कारण क्या है ?
कारण यही IPC है | IPC का आधार ही ऐसा है |
(22) *Land Acquisition Act -* एक अंग्रेज आया इस देश में उसका नाम था डलहौजी | डलहौजी ने इस "जमीन को हड़पने के कानून" को भारत में लागू करवाया, इस कानून को
लागू कर के किसानों से जमीने छिनी गयी |
गाँव गाँव जाता था और अदालतें लगवाता था और लोगों से जमीन के कागज मांगता था" |
और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय जमीन के कागज नहीं होते थे|
एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गयी |
डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वो जमीने
अंग्रेजी सरकार की हो गयीं |
1947 की आजादी के बाद ये कानून ख़त्म होना चाहिए था लेकिन नहीं,इस देश में ये कानून
आज भी चल रहा है |
आज भी इस देश में किसानों की जमीन छिनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले
जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वो काम आज भारत सरकार करती है |
पहले जमीन छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वो जमीनें भेंट करते थे,
अब भारत सरकार वो जमीनें छिनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कर रही है |
1894 का ये अंग्रेजों का कानून बिना किसी परेशानी के इस देश में आज भी चल रहा है |
इसी देश में नंदीग्राम होते हैं, इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है |
जहाँ लोग नहीं चाहते कि हम हमारी जमीन छोड़े,वहां लाठियां चलती हैं,गोलियां चलती है |
(23) अंग्रेजों ने एक कानून लाया था Indian Citizenship Act, कानून में ऐसा प्रावधान
है कि कोई व्यक्ति (पुरुष या महिला) एक खास अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत
की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंगलादेशी शरणार्थी) |
दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देश को छोड़ के हर देश में ये कानून है कि आप
जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते,
लेकिन भारत में ऐसा नहीं है|
ये अंग्रेजों के समय का कानून है,हम उसी को चला रहे हैं,उसी को ढो रहे हैं आज भी,
आजादी के 67 साल बाद भी |
(24) *Indian Advocates Act - हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून
के आधार पर है,काला कोट,उजला शर्ट और बो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड |
इंग्लैंड में चूँकि साल में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया|
हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से
अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या
फायदा जो शरीर को कष्ट दे,|
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमेशा मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे
और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना|
(25 ) *Indian Motor Vehicle Act -* उस ज़माने में कार/मोटर जो था वो सिर्फ अंग्रेजों, रजवाड़ों और पैसे वालों के पास होता था तो इस कानून में प्रावधान डाला गया कि अगर
किसी को मोटर से धक्का लगे या धक्के से मौत हो जाये तो सजा नहीं होनी चाहिए या हो
भी तो कम से कम |
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश में हर साल डेढ़ लाख लोग गाड़ियों के धक्के से या
उसके नीचे आ के मरते हैं लेकिन आज तक किसी को फाँसी या आजीवन कारावास
नहीं हुआ |
(26) *Indian Agricultural Price Commission Act -* ये भी अंग्रेजों के ज़माने का
कानून है |
पहले ये होता था कि किसान,जो फसल उगाते थे तो उनको ले के मंडियों में बेचने जाते
थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे |
आप हर साल समाचारों में सुनते होंगे कि "सरकार ने गेंहू का,धान का,खरीफ का,रबी का
समर्थन मूल्य तय किया" |
उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है |
और आज दिल्ली के AC Room में बैठ कर वो लोग किसानों के फसलों का दाम तय
करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं,
वो अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते |
(27) *Indian Patent Act - * अंग्रेजों ने एक कानून लाया Patent Act , और वो
बना था 1911 .
ये जा के 1970 में ख़त्म हुआ श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रयासों से लेकिन इसे अब फिर
से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बदल दिया गया है |
मतलब इस देश के लोगों के हित से ज्यादा जरूरी है बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हित |
आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर 1946
तक के हैं |
1840 तक का भारत जो था उसका विश्व व्यापार में हिस्सा 33% था, दुनिया के
कुल उत्पादन का 43% भारत में पैदा होता था और दुनिया के कुल कमाई में भारत का
हिस्सा 27% था |
ये अंग्रेजों को बहुत खटकती थी,इसलिए आधिकारिक तौर पर भारत को लुटने के लिए
अंग्रेजों ने कुछ कानून बनाये थे और वो कानून अंग्रेजों के संसद में बहस के बाद तैयार
हुई थी,उस बहस में ये तय हुआ कि "भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगा दिया
जाये क्योंकि सारी दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादन यहीं होता है और ऐसा हम करते हैं
तो हमें टैक्स के रूप में बहुत पैसा मिलेगा" |
ये हैं भारत के विचित्र कानून, सब पर लिखना संभव नहीं है और ज्यादा बोझिल न हो
जाये इसलिए यहीं विराम देता हूँ |
इन कानूनों के किताब बाज़ार में उपलब्ध हैं लेकिन मैंने इनके इतिहास को वर्तमान के
साथ जोड़ के आपके सामने प्रस्तुत किया है, और इन कानूनों का इतिहास,उन पर हुई चर्चा
को ब्रिटेन के संसद House of Commons की library से लिया गया हैं |
अब कुछ छोटे-छोटे कानूनों की चर्चा करता हूँ |
- अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि गाय को,बैल को,भैंस को डंडे से मारोगे तो जेल
होगी लेकिन उसे गर्दन से काट कर उसका माँस निकलकर बेचोगे तो गोल्ड मेडल मिलेगा क्यों
कि आप Export Income बढ़ा रहे हैं |
ये कानून अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए लाया था |
लेकिन आज भी भारत में हजारों कत्लखाने गायों को काटने के लिए चल रहे हैं |
- 1935 में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था उसका नाम था Government of India Act,
ये अंग्रेजों ने भारत को 1000 साल गुलाम बनाने के लिए बनाया था और यही कानून हमारे संविधान का आधार बना |
- 1939 में राशन कार्ड का कानून बनाया गया क्योंकि उसी साल द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू
हुआ और अंग्रेजों को धन के साथ-साथ भोजन की भी आवश्यकता थी तो उन्होंने भारत से
धन भी लिया और अनाज भी लिया और इसी समय राशन कार्ड की शुरुआत की गयी |
और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें सस्ते दाम पर अनाज मिलता था और जिनके
पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार था |
अंग्रेजों ने उस द्वितीय विश्वयुद्ध में 1732 करोड़ स्टर्लिंग पोंड का कर्ज लिया था भारत
से जो आज भी उन्होंने नहीं चुकाया है और ना ही किसी भारतीय सरकार ने उनसे ये मांगने
की हिम्मत की पिछले 64 सालों में |
- अंग्रेजों को यहाँ से चीनी की आपूर्ति होती थी |
और भारत के लोग चीनी के बजाय गुड,खांड (Jaggary) बनाना पसंद करते थे और गन्ना
चीनी मीलों को नहीं देते थे |
तो अंग्रेजों ने गन्ना उत्पादक इलाकों में गुड बनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया और गुड
बनाना गैरकानूनी घोषित कर दिया था और वो कानून आज भी इस देश में चल रहा है |
- पहले गाँव का विकास गाँव के लोगों के जिम्मे होता था और वही लोग इसकी योजना बनाते थे |
किसी गाँव की क्या आवश्यकता है, ये उस गाँव के रहने वालों से बेहतर कौन जान सकता है लेकिन गाँव के उस व्यवस्था को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने PWD की स्थापना की |
वो PWD आज भी है |
NGO भी इसीलिए लाया गया था, ये भी अंग्रेजों ने ही शुरू किया था |
- हमारे देश में सीमेंट नहीं होता था बल्कि चुना,सुर्खी और दूध को मिलाकर जो लेप तैयार
होता था उसी से ईंटों को जोड़ा जाता था |
अंग्रेजों ने अपने देश का सीमेंट बेचने के लिए 1850 में इस कला को प्रतिबंधित कर दिया
और सीमेंट को भारत के बाजार में उतारा |
हमारे देश के किलों (Forts) को आप देखते होंगे सब के सब इसी भारतीय विधि से खड़े
हुए थे और आज भी कई सौ सालों से खड़े हैं |
और सीमेंट से बने घरों की अधिकतम उम्र होती है 100 साल और चुने से बने घरों की
न्यूनतम उम्र होती है 500 साल |
- आप दक्षिण भारत में भव्य मंदिरों की एक परमपरा देखते होंगे, इन मंदिरों को पेरियार
जाति के लोग बनाते थे आज की भाषा में वो सबके सब सिविल इंजिनियर थे, बहुत
अद्भुत मंदिरों का निर्माण किया उन्होंने |
एक अंग्रेज अधिकारी था A.O.Hume, इसी ने 1885 में कांग्रेस की स्थापना की थी,
जब ये 1890 में मद्रास प्रेसिडेंसी में अधिकारी बन के गया तो इसने वहां पेरियार जाति को
मंदिरों के निर्माण करने से प्रतिबंधित कर दिया, गैरकानूनी घोषित कर दिया |
नतीजा क्या हुआ कि वो भव्य मंदिरों की परंपरा तो ख़त्म हुई ही साथ ही साथ वो सभी
बेरोजगार हो गए और हमारी एक भवन निर्माण कला समाप्त हो गयी |
वो कानून आज भी है |
- उड़ीसा में नहर के माध्यम से खेतों में पानी तब छोड़ा जाता था जब उसकी जरूरत नहीं
होती थी और जब जरूरत होती थी यानि गर्मियों में तो उस समय नहरों में पानी नहीं दिया
जाता था |
आप भारत के पूर्वी इलाकों को देखते होंगे,जिसमे शामिल हैं पश्चिम बंगाल, बिहार,
झारखण्ड और उड़ीसा, ये इलाके पिछड़े हुए हैं |
विलियम बेंटिक और मैकोले के बीच हुई बातचीत में स्पष्ट है कि कैसे वो कलकत्ता और
लन्दन की तुलना कर रहे हैं, और 1835 के आस पास हुई बातचीत के आधार पर ये जाहिर
होता है कि लन्दन निहायती घटिया शहर है और कलकत्ता उस समय सबसे समृद्ध |
- एक कानून के हिसाब से बच्चे को पेट में मारोगे तो Abhortion और पैदा होने पर मारोगे
तो हत्या |
Abhortion हुआ तो कुछ नहीं लेकिन उसे पैदा होने के बाद मारा तो हत्या का मामला बनेगा |
- अंग्रेजों ने सेना के लिए कानून बनाया था |
इसके सैनिकों को मूंछ (mustache) रखने पर अतिरिक्त भत्ता मिलता था |
सेना में आज भी मूंछ रखने पर उसके देख रेख और maintainance के लिए भत्ता
मिलता है |
- आपमें से बहुतों ने क़ुतुब मीनार के पास एक लोहे का स्तम्भ देखा होगा जो सैकड़ों साल से
खुले में है लेकिन आज तक उसमे जंग (Rust) नहीं लगा है |
---प्रत्यंचा सनातन संस्कृति
========
हम लोगों ने 67 वर्षों तक इन काले अंग्रेजों के अत्याचार को सहन किया,,
''बस और नहीं बस और नहीं,,गम के प्याले और नहीं''
''तख़्त बदल दो ताज बदल दो,,बेईमानों का राज बदल दो''
''अभी नहीं तो कभी नहीं''
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,जयति पुण्य भूमि भारत,,
सेकुलर मुक्त भारत,,सशक्त भारत,,समृद्ध भारत,,संस्कारित भारत,,,
सदा सुमंगल,,वंदेमातरम,,,
जय श्री राम
.
 साभार :  श्री विजय कृष्ण पाण्डेय