(1) कर्मफलों से मुक्त कैसे हों ?
(3) हम कौन हैं ? हमारा परम धर्म क्या है ?
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(1) कर्मफलों से मुक्त कैसे हों ? यह एक ऐसा विषय है जिसे बौद्धिक धरातल पर समझना तो सबसे आसान है, पर करना सबसे अधिक कठिन कार्य है|
शरणागति द्वारा परमात्मा को पूर्ण समर्पित होकर ही हम अपने अच्छे-बुरे सब कर्मों से मुक्त हो सकते हैं| यह समर्पण अपने अहंकार, मोह, कामनाओं, लोभ, और राग-द्वेष सभी का हो| यही मुक्ति है, और यही मोक्ष है|
जब कोई भी कार्य हमारे माध्यम से परमात्मा के लिए ही, परमात्मा को समर्पित होकर ही होता है, वह किसी भी प्रकार के बंधन का कारण नहीं बनता|
जो कार्य अपने इन्द्रीय सुख के लिए, अपने अहंकार कि तृप्ति के लिए होता है, वह ही बंधन का कारण होता है| हमारी सोच, हमारे विचार और हमारे भाव भी हमारे कर्म ही हैं, जो हमारे खाते में जुड़ जाते हैं|
यही है कर्मफलों का रहस्य और मुक्ति का उपाय जो समझने में सर्वाधिक सरल है, पर करने में सर्वाधिक कठिन है|
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(2) हमारी प्रार्थनाओं के फल क्यों नहीं मिलते? यह भी समझना बहुत सरल है पर कार्य रूप में करना थोड़ा कठिन है|
हम अपने नित्य नियमित शास्त्रोक्त कर्म नहीं करते, इसीलिए न तो हमारी प्रार्थनाओं का कोई उत्तर मिलता है, और न ही किसी भी अनुष्ठान का फल मिलता है| समझने के लिए इतना ही पर्याप्त है|
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(3) हम कौन हैं ? हमारा परम धर्म क्या है ?
हम सब परमात्मा की एक अभिव्यक्ति हैं जो कुछ समयके लिए यह देह बन गए हैं| इस देह से हमारा सम्बन्ध नश्वर है| यह देह एक साधन मात्र है|
सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी सृष्ट है व उससे परे जो भी है वह सब हम स्वयं ही हैं|
जिसे हम ढूँढ रहे हैं वह भी हम स्वयं ही हैं|
हम यह देह नहीं बल्कि सम्पूर्ण चैतन्य हैं, सम्पूर्ण ब्रह्मांड हैं|
अपने आत्म-तत्व में स्थित होना ही हमारा परम धर्म है|
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सब का कल्याण हो| सब सुखी हों|
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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