वर्तमान में सभी हिन्दू समाजों में एक बहुत बुरी सामाजिक बीमारी फैल रही है जो दिन प्रतिदिन बढ़ रही है --
"देरी से विवाह, और वर व बधू दोनों पक्षों की असामान्य अत्यधिक अपेक्षाएँ" ---
.
इस समय स्थिति ऐसी है कि न तो विवाह योग्य लड़के मिल रहे हैं, और न विवाह योग्य लड़कियाँ। विवाह की आयु बढ़ती जा रही है। सभी की एक ही चिंता रहती है कि जीवन में पहले settle हो जाएँ और अच्छा career बनाएँ। फिर आर्थिक सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, और अधिकाधिक पैसे देने वाली नौकरी या व्यवसाय के बारे में चिंतन करते हैं। इतने में विवाह योग्य आयु तो निकल जाती है। जिसका परिणाम होता है विवाह की संस्था से बाहर --- किसी को रखेल बनाना या बन जाना (Live-in relationship), किसी अधर्मी के साथ भाग जाना, या कुंठित जीवन व्यतीत करना।
.
वर पक्ष कहने को तो कहता है कि हमें कुछ नहीं चाहिए, लेकिन दृष्टि रहती है -- धनवान और प्रभावशाली परिवार की लड़की की ओर जो विवाह में खूब धन ला सके, व उसके घरवाले विवाह में खूब खर्च कर सकें। समाज में पाखंड इतना भयंकर है कि स्वयं की बेटी के विवाह में तो दहेज-विरोधी हो जाएँगे और बेटे के विवाह में दहेज-समर्थक।
वधू-पक्ष भी चाहे कितना भी निर्धन हो, वह भी अपनी कन्या खूब पैसे वाले के घर ही देना चाहता है। लड़कों की तरह लड़कियों की भी अपेक्षा बहुत अधिक बढ़ गई है।
.
आजकल व्यक्तियों की औसत आयु अधिकतम ७० से ७५ वर्ष की है। जो ७५ वर्ष से ऊपर की आयु के हैं, वे तो भगवान की विशेष कृपा से ही जीवित हैं।
३०-३५ वर्ष से ऊपर की लड़कियां कुआँरी बैठी है और ३५-४० वर्ष से ऊपर के लड़के जिनका विवाह नहीं हो रहा है। समाज के कर्ता-धर्ताओं की भी कुछ नहीं चल रही है।
.
२५ वर्ष की आयु के पश्चात एक लड़की के लिए ससुराल पक्ष में स्वयं को ढालना बड़ा कठिन हो जाता है। ३० वर्ष की आयु के बाद एक लड़के के लिए भी नवविवाहिता के साथ तालमेल बैठाना बड़ा कठिन होता है।
परिणाम होता है -- घर में बहस, वाद विवाद, तलाक, और सिजेरियन ऑपरेशन द्वारा बच्चों का जन्म होना। इससे भविष्य में बहुत सारी बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
.
विवाह के लिए लड़की की आयु १८ से २२ वर्ष की होनी चाहिए, और लड़के की आयु २४ से २६ वर्ष।
पहले संयुक्त परिवारों में आपस में खूब प्रेम रहता था, आजकल एकाँकी परिवार हो गए हैं जो एक-दूसरे के दुख-सुख में काम नहीं आते। लगभग ६० वर्षों पूर्व की बातें याद है जब परिवार के नाई या नेवगण (नाई की पत्नी) ही उचित वर-वधू देखकर संबंध कर जाते थे जो सभी को मान्य होता था।
.
प्रकृति के हिसाब से ३० वर्ष की आयु से अधिक तक अविवाहित रहना चिंता का विषय है। आजकल कोई मध्यस्थ भी नहीं बनना चाहता। क्योंकि मध्यस्थ को उलाहना ही उलाहना सहना पड़ता है। उसे कोई श्रेय नहीं मिलता। बिना किसी मध्यस्थ के अच्छे संबंध भी नहीं होते।
.
आजकल हर लड़की चाहती है कि उसके होने वाले पति का स्वयं का घर हो, मोटर कार हो, घूमने-फिरने का शौक हो, तगड़ी कमाई हो, और घर में बूढ़े सास-ससुर न हो। आजकल हर लड़का सोचता है कि उसकी होने वाली पत्नी खूब सुंदर हो, सामाजिक हो और खूब धनवान माँ-बाप की बेटी हो।
.
संबंध करते समय एक-दूसरे का स्वभाव (Nature) और साथ रहने की पात्रता (Compatibility) देखनी चाहिए। यह भी सामाजिक रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए कि विवाह के पश्चात भी वे अपनी पढ़ाई करते रहेंगे। अधिक आयु में विवाह करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
.
कोई गलत बात कह गया हूँ तो क्षमा करना। आप सभी में परमात्मा को नमन॥
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२३ नवंबर २०२२