Monday, 30 January 2017

गाँधी जी की पुण्य तिथि .....

मोहनदास करमचंद गाँधी जी (जिन्हें लोग महात्मा गाँधी कहते हैं) की आज पुण्य तिथि है| गाँधी जी का मैं पूर्ण सम्मान करता हूँ| इस तरह के युग पुरुष पृथ्वी पर बहुत कम जन्म लेते हैं|
उनके प्रति पूर्ण सम्मान के साथ इतने वर्षों के बाद कुछ प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं....
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(१) क्या अंग्रेजों को पता था कि गाँधी की ह्त्या होने वाली है?
१५ अगस्त १९४७ के बाद भी अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों का ही राज था| गाँधी की सुरक्षा व्यवस्था क्यों हटा ली गयी थी? क्या इसीलिए कि वे उस समय अंग्रेजों के लिए किसी काम के नहीं रह गए थे?
जिस पिस्तौल से गाँधी की ह्त्या हुई वह किसकी थी और गोडसे को किसने दी?
क्या उसी पिस्तौल से चली गोली से ह्त्या हुई थी या किसी अन्य से?
अनेक प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि गाँधी की ह्त्या गोडसे ने नहीं की| गोडसे को तो मात्र मोहरा बनाया गया था, असली हत्यारा कोई और था| हिन्दुओं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा को बदनाम करने और इन्हें आपस में लड़ाने हेतु गाँधी के विरुद्ध गोडसे जैसे कुछ युवकों को भड़काया गया और उनके हाथ में पिस्तौल दे दी गयी| उनसे गोली नहीं चली अतः किसी अंग्रेज पुलिस ऑफिसर ने ही वह गोली चलाई थी जिससे गांधीजी मरे थे| यह उच्चतम स्तर पर किया गया एक बहुत बड़ा षड्यंत्र था|
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(२) गाँधी की ह्त्या के तुरंत बाद पुणे में हज़ारों ब्राह्मणों की ह्त्या क्यों की गयी? क्या इसीलिए कि नाथूराम गोडसे एक ब्राह्मण था? उस जमाने में न तो मोबाइल फोन थे और न बढ़िया टेलीफोन व्यवस्था| गाँधी वध ३० जनवरी को हुआ और ३१ जनवरी की रात को ही पुणे की गलियों में चारपाई डालकर सो रहे ब्राह्मणों पर किरोसिन तेल डालकर उन्हें जीवित जला दिया गया| ३१ जनवरी की रात को ही पुणे में ब्रहामणों को घरों से निकाल निकाल कर सड़कों पर घसीट कर उनकी सामूहिक हत्याएं की गयी जिसमें लगभग छः हज़ार निर्दोष ब्राह्मण मारे गए|
उस घटना की कोई जाँच नहीं हुई और घटना को दबा दिया गया| ऐसा इतने संगठित रूप से कैसे किसने व क्यों किया?
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(३) गाँधी की नीतियों व विचारों से महर्षि श्रीअरविन्द बिलकुल भी सहमत नहीं थे| उन्होंने गाँधी के बारे में लिखा था कि गाँधी की नीतियाँ एक बहुत बड़े भ्रम और विनाश को जन्म देंगी, जो सत्य सिद्ध हुआ| महर्षि श्रीअरविद के वे लेख नेट पर उपलब्ध हैं| कृपया उन्हें पढ़ें|

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(४) गाँधी द्वारा आरम्भ खिलाफत आन्दोलन जो तुर्की के खलीफा को बापस गद्दीनशीन करने के लिए था, का क्या औचित्य था? क्या यह तुष्टिकरण की पराकाष्ठा नहीं थी? क्या इससे पकिस्तान की नींव नहीं पडी?
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(५) राजनितिक व सामाजिक रूप से गांधीजी का पुनर्मूल्यांकन क्या आवश्यक नहीं है?
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(६) श्रद्धांजली |

वन्दे मातरं | भारत माता की जय |