Sunday, 29 April 2018

भगवान खाद्य पदार्थ की तरह एक रस है .....


भगवान खाद्य पदार्थ की तरह एक रस है, उसी को खाओ, उसी को पीओ, उसी से मस्ती से रहो, और उसी में मतवाले हो जाओ| देह छोड़ने का समय आये उससे पूर्व ही उस रस को पीकर तृप्त हो जाओ .....
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आज के युग में भगवान की चर्चा मत करो अन्यथा लोग आपको पागल समझेंगे, पर जीओ उसी को| यह भगवान की चर्चा करने का युग नहीं है, उसको जीने का युग है| मैं आप सब के समक्ष भगवान की चर्चा कर रहा हूँ तो यह मेरा पागलपन और मुर्खता है| चर्चा करने की बजाय तेलधारा की तरह उसका ध्यान करो| एक बर्तन से दुसरे बर्तन में तेल डालते हैं तो धारा कभी खंडित नहीं होती वैसे ही परमात्मा का अखंड ध्यान करो|
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भगवान एक रस है, यह वेद वाक्य है ..... "रसो वै सः| रसं ह्येवायं लब्ध्वा आनन्दी भवति| - तैत्तिरीयोपनिषत् २-७-२||
भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर कहते हैं ....
सः एषः आत्मा रसः, अयं जीवः आत्मानन्दरसं लब्ध्वा एव हि आनन्दी भवति । प्रत्यक्षादिप्रमाणगोचरोऽपि आत्मा ‘नास्ति’ इति न मन्तव्यम् । इन्द्रियाणामपि प्रत्यगात्मभूतम् एतं परमात्मानम् इन्द्रियैः द्र्ष्टुं नैव शक्यते । तर्हि सः परमात्मा ‘अस्ति’ इत्यत्र प्रमाणं किम् ? अस्माकम् अनुभव एव प्रमाणम् । तत् कथम् ? इति चेत् ॥
आत्मा रसस्वरूपः । रसो नाम आनन्दः । आनन्दस्वरूप एव आत्मा । अयम् आनन्दस्वरूपः आत्मैव सर्वस्यापि जीवस्य आनंदित्वे कारणम् । सर्वः प्राणी सर्वथा जीवितुम् इच्छति खलु ? किं कारणम् ? रसस्वरूपस्य ब्रह्मणः एतेषां प्रत्यगात्मत्वात् ॥
'तपस्विनः बाह्यसुखसाधनरहिता अपि अनीहाः निरेषणाः ब्राह्मणाः बाह्यरसलाभादिव सानन्दा दृश्यन्ते विद्वांसः'
इति शाङ्करं भाष्यम् । कथं ते तपस्विनः सानन्दाः सदा ? आनन्दरसस्वरूपस्य ब्रह्मणः तेषां स्वरूपत्वात् ॥
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भगवान की चर्चा करने की बजाय उसको प्रेम करें| आपके सामने यदि मिठाई रखी हो तो बुद्धिमानी उसकी विवेचना करने में है या उसको खाने में? बुद्धिमान उसे खा कर प्रसन्न होगा और विवेचक उसकी विवेचना ही करता रह जाएगा कि इसमें कितनी चीनी है, कितना दूध है, कितना मेवा है, किस विधि से बनाया और इसके क्या हानि लाभ हैं .... आदि आदि| वैसे ही भगवान भी एक रस है| उसे चखो, उसका स्वाद लो, और उसके रस में डूब जाओ| इसी में सार्थकता और आनंद है| उसकी विवेचना मात्र से शायद ही कोई लाभ हो|
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हम कितनी देर तक प्रार्थना करते हैं या ध्यान करते हैं ? अंततः महत्व इसी का है| ध्यान और प्रार्थना के समय मन कहाँ रहता है ? यदि मन चारों दिशाओं में सर्वत्र घूमता रहता है तो ऐसी प्रार्थना किसी काम की नहीं है| हमें ध्यान की गहराई में जाना ही पड़ेगा और हर समय भगवान का स्मरण भी करना ही पड़ेगा| हम छोटी मोटी गपशप में, अखवार पढने में और मनोरंजन में घंटों तक का समय नष्ट कर देते हैं, पर भगवान का नाम पाँच मिनट भी भारी लगने लगता है| चौबीस घंटे का दसवाँ भाग यानि कम से कम लगभग अढाई तीन घंटे तो नित्य हमें भगवान का ध्यान करना ही चाहिए|
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जब हम अग्नि के समक्ष बैठते हैं तो ताप की अनुभूति होती ही है वैसे ही भगवान के समक्ष बैठने से उनका अनुग्रह भी मिलता ही है| भगवान के समक्ष हमारे सारे दोष भस्म हो जाते हैं| ध्यान साधना से सम्पूर्ण परिवर्तन आ सकता है| जब एक बार निश्चय कर लिया कि मुझे भगवान के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए तो भगवान आ ही जाते है .... यह आश्वासन शास्त्रों में भगवान ने स्वयं ही दिया है| जब ह्रदय में अहैतुकी परम प्रेम और निष्ठा होती है तब भगवान मार्गदर्शन भी स्वयं ही करते हैं| पात्रता होने पर सद्गुरु का आविर्भाव भी स्वतः ही होता है| प्रेम हो तो आगे का सारा ज्ञान स्वतः ही प्राप्त हो जाता है और आगे के सारे द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं| इस सृष्टि में निःशुल्क कुछ भी नहीं है| हर चीज की कीमत चुकानी पडती है| परमप्रेम ही वह कीमत यानि शुल्क है|
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आप सब में हृदयस्थ भगवान को नमन ! आप सब की जय हो |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
२८ अप्रेल, २०१८

एक निवेदन :---

एक निवेदन :---

मैंने विगत में कभी भी किसी की शिकायत, निंदा या नकारात्मक आलोचना भूल कर भी की हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ| जिस मार्ग पर मैं चल रहा हूँ, वहाँ किसी भी प्रकार की नकारात्मकता का कोई स्थान नहीं है| एक ओर तो मैं समष्टि की सकारात्मक समग्रता का यानि पूर्णता का ध्यान करता हूँ जहाँ मेरे सिवा कोई अन्य नहीं है, वहीं यदि कोई कमी दिखाई देती है तो वह मेरी स्वयं की ही कमी है, क्योंकि अन्य तो कोई है ही नहीं|

यह सृष्टि प्रकाश और अन्धकार से बनी है, मेरा वर्त्तमान कार्य सिर्फ प्रकाश की ही वृद्धि करना है, उसके लिए स्वयं आलोकमय बनने का अभ्यास कर रहा हूँ|

कोई यदि (मेरे) इस शरीर की बुराई करता है तो वह संभवतः ठीक ही करता होगा क्योंकि यह शरीर (जो मैं नहीं हूँ) हो सकता है इसी योग्य हो| पर कोई आत्मा की बुराई करता है (जो मैं वास्तव में हूँ) तो वह स्वयं की ही बुराई कर रहा है|

हे प्रभु, आपने जहाँ भी मुझे रखा है वहाँ सब कुछ मंगलमय हो, वहाँ कुछ भी अप्रिय न हो|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ अप्रेल २०१८

जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ हम क्या कर सकते हैं यह स्वयं के हृदय से पूछें और अपना सर्वश्रेष्ठ भारत माँ को और परमात्मा को समर्पित करें ....

जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ हम क्या कर सकते हैं यह स्वयं के हृदय से पूछें और अपना सर्वश्रेष्ठ भारत माँ को और परमात्मा को समर्पित करें .....
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चारों ओर चाहे कितना भी गहन अन्धकार हो, अनेक महान आत्माएँ किसी भी तरह के यश और कीर्ति की कामनाओं से दूर दिन-रात एक कर के भारत के सकारात्मक उत्थान में लगी हुई हैं| अनेक सनातन धर्म-प्रचारक पूरे विश्व में सनातन धर्म और आध्यात्म के प्रचार-प्रसार में निःस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं| संघ के हज़ारों अज्ञात प्रचारक शांत भाव से अपने निज जीवन की आहुति देकर माँ भारती की सेवा में राष्ट्र साधना कर रहे हैं| अनेक वास्तविक साधू-संत अपनी साधना से राष्ट्र को एक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं| अनेक पूरी तरह से निष्ठावान व ईमानदार अधिकारी और कर्मचारी अपनी सेवाएँ राष्ट्र को प्रदान कर रहे हैं| सभी बुरे नहीं हैं, कुछ कुछ अच्छे लोग भी हैं जो किसी भी तरह के प्रचार से दूर हैं| ये आशादीप हैं जो तिल तिल जलते हुए सतत अंधकार से संघर्ष कर रहे हैं और देवभूमि, पुण्यभूमि, माँ भारती के गौरव को पुनः विश्व में स्थापित करने में लगे हैं| इन आशा दीपों की जय हो|
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जो दबा हुआ है वह ही अंकुरित और पल्लवित होगा| कौवों की काँव काँव और कुत्तों के भोंकने से हमें विचलित नहीं होना चाहिए| वे अपना धर्म निभा रहे हैं| हमें अपना धर्म निभाना चाहिए|
आप सब परमात्मा के साकार रूप हैं| स्वयं में अव्यक्त परम ब्रह्म को व्यक्त करें| जीवन में इसी क्षण से अपना सर्वश्रेष्ठ करें| भगवान हमारे साथ है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०१८

'नायमात्माबलहीनेनलभ्यः' (बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती) ........

'नायमात्माबलहीनेनलभ्यः' (बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती) ........
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जितेन्द्रिय व्यक्ति ही महावीर होते हैं, वे ही परमात्मा को प्राप्त करते हैं| परमात्मा के प्रति परम प्रेम और गहन अभीप्सा के पश्चात इन्द्रियों पर विजय पाना आध्यात्म की दिशा में अगला क़दम है| बिना इन्द्रियों पर विजय पाए कोई एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता| इन्द्रियों पर विजय न पाने पर आगे सिर्फ पतन ही पतन है| मैं जो लिख रहा हूँ अपने अनुभव से लिख रहा हूँ| मैं बहुत सारे बहुत ही अच्छे अच्छे और निष्ठावान सज्जन लोगों को जानता हूँ जिनकी आध्यात्मिक प्रगति इसीलिए रुकी हुई है कि वे इन्द्रियों पर नियंत्रण करने में असफल रहे है|
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मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अत्यधिक कठिन और कठोरतम परिस्थितियों से निकल कर सीखा है| अतः इस विषय पर मेरा भी निजी अनुभव है| कुछ लोग अपनी असफलता को छिपाने के लिए बहाने बनाते हैं और कहते हैं कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'| पर वे नहीं समझते कि बिना इन्द्रियों पर नियंत्रण पाये मन पर नियन्त्रण असम्भव है| इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण का न होना आध्यात्म मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है| इन्द्रिय सुखों को विष के सामान त्यागना ही होगा| चाहे वह शराब पीने का या नशे का शौक हो, या अच्छे स्वादिष्ट खाने का, या नाटक सिनेमा देखने का, या यौन सुख पाने का| इन सब शौकों के साथ आप एक अच्छे सफल सांसारिक व्यक्ति तो बन सकते हो पर आध्यात्मिक नहीं| जितेन्द्रिय व्यक्ति ही महावीर होते हैं, वे ही भगवान को उपलब्ध होते हैं| यदि आपको महावीर बनना है तो जितेन्द्रिय होना ही होगा|
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इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण एक परम तप है| इससे बड़ा तप दूसरा कोई नहीं है| इसके लिए तपस्या करनी होगी| दो बातों का निरंतर ध्यान रखना होगा .....

(1) सारे कार्य स्वविवेक के प्रकाश में करो, ना कि इन्द्रियों की माँग पर .....
भगवान ने आपको विवेक दिया है उसका प्रयोग करो| इन्द्रियों की माँग मत मानो| इन्द्रियाँ जब जो मांगती हैं वह उन्हें दृढ़ निश्चय पूर्वक मत दो| उन्हें उनकी माँग से वंचित करो| यह सबसे बड़ी तपस्या है| इन्द्रियों का निरोध करना ही होगा|
(2) दृढ़ निश्चय कर के निरंतर प्रयास से मन को परमेश्वर के चिंतन में लगाओ|
विषय-वासनाओं से मन को हटाकर भगवान के ध्यान में लगाओ| जब भी विषय वासनाओं के विचार आयें, अपने इष्ट देवता/देवी से प्रार्थना करें, गायत्री मन्त्र का जाप करें आदि आदि|
सात्विक भोजन लें, कुसंग का त्याग करें, सत्संग करें और सात्विक वातावरण में रहें| निश्चित रूप से आप महावीर बनेंगे|
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श्रुति भगवती कहती है .... 'नायमात्माबलहीनेनलभ्यः'| अर्थात बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती| और यह बल उसी को प्राप्त होता है जो जितेन्द्रिय है और जिसने अपनी इन्द्रियों के साथ साथ मन पर भी नियंत्रण पाया है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०१६
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पुनश्चः :---
हमारे तो परम आदर्श श्री हनुमान जी हैं| वे ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं, परम भक्त हैं, और अतुलित बलशाली हैं| वे हमें शक्ति दें और हमारा मार्गदर्शन करें|
सार की बात यह है कि जब तक बुद्धि को परमात्मा में नहीं लगायेंगे तब तक न तो कामनाएँ समाप्त होंगी और न ही इन्द्रियों और मन पर विजय प्राप्त कर सकेंगे| सबसे महत्वपूर्ण है .... अपनी बुद्धि को परमात्मा को समर्पित कर देना|

"बलात्कार" शब्द को परिभाषित किया जाए .....

"बलात्कार" शब्द को परिभाषित किया जाए .....
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हर तरह का दुराचार तभी रुकेगा जब देश में चरित्रवान नागरिक जन्म लेंगे| इसके लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, और ईश्वर-प्रणिधान की शिक्षा देनी होगी|
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असली विकास आत्मा का विकास है, बाहरी नहीं| बाहरी भी हो पर साथ साथ आत्मा का भी हो| आत्मा का विकास होगा तो बाहरी विकास निश्चित है| संतान अच्छी और चरित्रवान हो इसके लिए भारत में सौलह संस्कार भी होते थे, जिन्हें हमने अपनी धर्म-निरपेक्षता के चक्कर में भुला दिया है|
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बाहरी उपक्रम कितने भी करो, कितनी भी अच्छी सड़कें और मकान बनाओ, या कितने भी पुरुषों को फांसी पर लटकाओ, उससे देश में लोग चरित्रवान नहीं बनेंगे| बच्चों को बाल्यकाल से ही ध्यान करना और परमात्मा से प्रेम करना सिखाना होगा, तभी वे चरित्रवान बनेंगे|
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आप नशा कर के, अश्लीलता का चिंतन कर के, और अभक्ष्य भक्षण कर के संतान पैदा करोगे तो वे बलात्कारी, घूसखोर और नर-पिशाच ही होंगे| समस्या की जड़ पर प्रहार करो, न कि उसके फलों पर| सिर्फ सजा से बलात्कार और दुराचार नहीं रुकने वाले, इस पर चिंतन करो कि देश में सज्जन पुरुष कैसे पैदा हों|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ अप्रेल २०१८

ग्रह-नक्षत्रों के जाल से कैसे बच सकते हैं ? .....

ग्रह-नक्षत्रों के जाल से कैसे बच सकते हैं ? .....
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यह कर्मफलों का सिद्धांत और ग्रहों के संयोग का चक्कर बड़ा विचित्र है| प्रकृति के नियम भी बड़े जटिल हैं जो आसानी से समझ में नहीं आते| कई बार जीवन में मैनें देखा है कि जाने-अनजाने में कई मनुष्य बड़ी बड़ी भूलें और बड़े बड़े अपराध कर देते हैं, पर वे किसी की दृष्टि में नहीं आते, और वे दोषी होकर भी बच जाते हैं, उनका कुछ नहीं बिगड़ता| ऐसा संभवतः उसके ग्रह-नक्षत्रों की अनुकूलता के कारण होता है|
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कई बार व्यक्ति कोई व्यक्ति अनजाने में ही कोई छोटी-मोटी भूल कर बैठता है पर बड़े गंभीर मामलों में फँस जाता है जिस के बहुत बुरे परिणाम उसे भुगतने पड़ते हैं| कई बार किसी सरकारी संगठन में बड़े अधिकारी अपनी कमी या अपनी भूल छिपाने के लिए किसी कनिष्ठ कर्मचारी पर सारा दोष डाल कर उसे ऐसा फँसा देते हैं कि निरपराध होते हुए भी उसे सजा भुगतनी पड़ती है| कई बार पुलिस वाले भी मार मार कर निर्दोष को दोषी बना देते हैं| कई बार चलते चलते बिना किसी गलती के हम दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं| कई बार हम अचानक बीमार पड़ जाते हैं| लगता है यह सब भी ग्रह-नक्षत्रों की प्रतिकूलता के कारण होता है|
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इन सब परिस्थितियों से कैसे बच सकते हैं? मेरे विचार से कोई उपाय नहीं है| सिर्फ भगवान ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| निरंतर शिव शिव या अपने अपने इष्टदेव का नाम जपते रहें| भगवान का निरंतर स्मरण निश्चित ही हमारी रक्षा करेगा|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ अप्रेल २०१८

(संशोधित व पुनर्प्रस्तुत). खेचरी मुद्रा .....

(संशोधित व पुनर्प्रस्तुत). खेचरी मुद्रा .....
(यह एक परिचयात्मक लेख ही है| पूरी विधि किसी अधिकृत योग-गुरु से ही सीखें| मैं यह विधि सिखाने के लिए अधिकृत नहीं हूँ| जो क्रियायोग की साधना करते हैं, उनके लिए यह विधि बहुत अधिक सहायक है| सन्यासियों के कुछ अखाड़ों में इसका अभ्यास अनिवार्य है|)
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खेचरी मुद्रा .... यह सदा एक गोपनीय विषय रहा है जिसकी चर्चा सिर्फ निष्ठावान एवम् गंभीर रूप से समर्पित साधकों में ही की जाती रही है| पर रूचि जागृत करने हेतु इसकी सार्वजनिक चर्चा भी आवश्यक है| ध्यानस्थ होकर योगी महात्मागण अति दीर्घ काल तक बिना कुछ खाए-पीये कैसे जीवित रहते हैं? इसका रहस्य है ....'खेचरी मुद्रा'|
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ध्यान साधना में तीब्र गति लाने के लिए भी खेचरी मुद्रा बहुत महत्वपूर्ण है| 'खेचरी' का अर्थ है ..... ख = आकाश, चर = विचरण| अर्थात आकाश तत्व यानि ज्योतिर्मय ब्रह्म में विचरण| जो बह्म में विचरण करता है वही साधक खेचरी सिद्ध है| परमात्मा के प्रति परम प्रेम और शरणागति हो तो साधक परमात्मा को स्वतः उपलब्ध हो जाता है पर प्रगाढ़ ध्यानावस्था में देखा गया है कि साधक की जीभ स्वतः उलट जाती है और खेचरी व शाम्भवी मुद्रा अनायास ही लग जाती है|
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वेदों में 'खेचरी शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है| वैदिक ऋषियों ने इस प्रक्रिया का नाम दिया -- 'विश्वमित्'| "दत्तात्रेय संहिता" और "शिव संहिता" में खेचरी मुद्रा का विस्तृत वर्णन मिलता है|
शिव संहिता में खेचरी की महिमा इस प्रकार है .....
"करोति रसनां योगी प्रविष्टाम् विपरीतगाम् | लम्बिकोरर्ध्वेषु गर्तेषु धृत्वा ध्यानं भयापहम् ||"
एक योगी अपनी जिव्हा को विपरीतगामी करता है, अर्थात जीभ को तालुका में बैठाकर ध्यान करने बैठता है, उसके हर प्रकार के कर्म बंधनों का भय दूर हो जाता है|
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जब योगी को खेचरी मुद्रा सिद्ध हो जाती है तब उसकी गहन ध्यानावस्था में सहस्त्रार से एक रस का क्षरण होने लगता है| सहस्त्रार से टपकते उस रस को जिव्हा के अग्र भाग से पान करने से योगी दीर्घ काल तक समाधी में रह सकता है, उस काल में उसे किसी आहार की आवश्यकता नहीं पड़ती, स्वास्थ्य अच्छा रहता है और अतीन्द्रीय ज्ञान प्राप्त होने लगता है|
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आध्यात्मिक रूप से खेचरी सिद्ध वही है जो आकाश अर्थात ज्योतिर्मय ब्रह्म में विचरण करता है| साधना की आरंभिक अवस्था में साधक प्रणव ध्वनी का श्रवण और ब्रह्मज्योति का आभास तो पा लेता है पर वह अस्थायी होता है| उसमें स्थिति के लिए दीर्घ अभ्यास, भक्ति और समर्पण की आवश्यकता होती है|
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योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय ध्यान करते समय खेचरी मुद्रा पर बल देते थे| जो इसे नहीं कर सकते थे उन्हें भी वे ध्यान करते समय जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालू से सटा कर बिना तनाव के जितना पीछे ले जा सकते हैं उतना पीछे ले जा कर रखने पर बल देते थे| वे खेचरी मुद्रा के लिए कुछ योगियों के सम्प्रदायों में प्रचलित छेदन, दोहन आदि पद्धतियों के सम्पूर्ण विरुद्ध थे| वे एक दूसरी ही पद्धति पर जोर देते थे जिसे 'तालब्य क्रिया' कहते हैं| इसमें मुंह बंद कर जीभ को ऊपर के दांतों व तालू से सटाते हुए जितना पीछे ले जा सकते हैं उतना पीछे ले जाते हैं| फिर मुंह खोलकर झटके के साथ जीभ को जितना बाहर फेंक सकते हैं उतना फेंक कर बाहर ही उसको जितना लंबा कर सकते हैं उतना करते हैं| इस क्रिया को नियमित रूप से दिन में कई बार करने से कुछ महीनों में जिह्वा स्वतः लम्बी होने लगती है और गुरुकृपा से खेचरी मुद्रा स्वतः सिद्ध हो जाती है| योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी जी मजाक में इसे ठोकर क्रिया भी कहते थे| तालब्य क्रिया एक साधना है और खेचरी सिद्ध होना गुरु का प्रसाद है|
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हमारे महान पूर्वज स्थूल भौतिक सूर्य की नहीं बल्कि स्थूल सूर्य की ओट में जो सूक्ष्म भर्गःज्योति: है उसकी उपासना करते थे| उसी ज्योति के दर्शन ध्यान में कूटस्थ (आज्ञाचक्र और सहस्रार के मध्य) में ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में, और साथ साथ श्रवण यानि अनाहत नाद (प्रणव) के रूप में सर्वदा होते हैं|
ध्यान साधना में सफलता के लिए हमें इन का होना आवश्यक है:-----
(1) भक्ति यानि परम प्रेम|
(2) परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा|
(3) दुष्वृत्तियों का त्याग|
(4) शरणागति और समर्पण|
(5) आसन, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान|
(6) दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन|
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खेचरी मुद्रा की साधना की एक और वैदिक विधि के बारे में पढ़ा है पर मुझे उसका अभी तक ज्ञान नहीं है| सिद्ध गुरु से दीक्षा लेकर, पद्मासन में बैठ कर ऋग्वेद के एक विशिष्ट मन्त्र का उच्चारण सटीक छंद के अनुसार करना पड़ता है| उस मन्त्र में वर्ण-विन्यास कुछ ऐसा होता है कि उसके सही उच्चारण से जो कम्पन होता है उस उच्चारण और कम्पन के नियमित अभ्यास से खेचरी मुद्रा स्वतः सिद्ध हो जाती है|
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भगवान दत्तात्रेय के अनुसार साधक यदि शिवनेत्र होकर यानि दोनों आँखों की पुतलियों को नासिका मूल (भ्रूमध्य) के समीप लाकर, भ्रूमध्य में प्रणव यानि ॐ से लिपटी दिव्य ज्योतिर्मय सर्वव्यापी आत्मा का चिंतन करता है, तो उसके ध्यान में विद्युत् की आभा के समान देदीप्यमान ब्रह्मज्योति प्रकट होती है| अगर ब्रह्मज्योति को ही प्रत्यक्ष कर लिया तो फिर साधना के लिए और क्या बाकी बचा रह जाता है|
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जो योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की गुरु परम्परा में क्रियायोग साधना में दीक्षित हैं उनके लिए खेचरी मुद्रा का अभ्यास अनिवार्य है| क्रिया योग की साधना खेचरी मुद्रा में होती है| जो खेचरी मुद्रा नहीं कर सकते उनको जीभ ऊपर को ओर मोड़कर तालू से सटाकर रखनी पडती है| खेचरी मुद्रा में क्रिया योग साधना अत्यंत सूक्ष्म हो जाती है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ अप्रेल २०१३

विवाह की संस्था धीरे धीरे समाप्त हो रही है .....

विवाह की संस्था धीरे धीरे समाप्त हो रही है| अगले कुछ वर्षों में यह एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बनने वाली है| कानून के जानकार कृपया बताएँ कि ....

(१) कोई महिला किसी निर्दोष व्यक्ति पर छेड़छाड़ का, परेशान करने या बलात्कार का झूठा आरोप लगाए तो झूठी सिद्ध होने पर उस महिला के लिए क्या किसी सजा का प्रावधान है ? क्या पुलिस या कोई जाँच एजेंसी इस तरह के मामलों की जाँच करती है, या आरोपित व्यक्ति को ही स्वयं को निर्दोष सिद्ध करना पड़ता है?

(२) कई लोग अपने विपक्षी को फँसाने, परेशान व बदनाम करने के लिए अपनी नाबालिग/बालिग़ पुत्री या अपनी पत्नि या किसी सम्बन्धी महिला द्वारा झूठे आरोप लगवा तो देते ही हैं, साथ साथ समाचार पत्रों में समाचार भी दे देते हैं| क्या ऐसे फर्जी केस दायर करने वालों के लिए भी कोई सजा होती है?

(३) दहेज उत्पीड़न के झूठे केस करने वाली महिलाओं के लिए भी क्या कोई सजा है?

(४) वैवाहिक बलात्कार मे पत्नी के गलत होने पर क्या कोई सजा है? वैवाहिक बलात्कार हुआ या नहीं, और किसने किया ? इसकी जाँच कौन सा न्यायालय करेगा?

विवाह की संस्था धीरे धीरे समाप्त हो रही है| हर वर्ष हजारों पुरुष आत्महत्या कर के मर रहे हैं| यह एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बनने वाली है|

कुछ पाने की कामना माया का सबसे बड़ा अस्त्र है .....

कुछ पाने की कामना माया का सबसे बड़ा अस्त्र है .....
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आध्यात्म में कुछ पाने की कामना माया का सबसे बड़ा अस्त्र है| इससे मुक्त हुए बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते| जब तक कुछ पाने की कामना है, हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होता| कुछ पाने की कामना एक मृगतृष्णा है, किसी को कुछ नहीं मिलता| सब कुछ परमात्मा का है और सब कुछ "वह" ही है| हमें स्वयं को ही समर्पित होना पड़ता है| जो परमात्मा को समर्पित हो गया उसको सब कुछ मिल गया| बाकि अन्य सब को निराशा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलता|
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सब कुछ तो मिला हुआ ही है| पाने योग्य कुछ है तो "वह" ही है जिसे पाने के बाद कुछ भी प्राप्य नहीं है| "वह" मिलता नहीं है, उसमें स्वयं को समर्पित होना पड़ता है| कुछ करने से "वह" नहीं मिलता, कुछ होना पड़ता है| "वह" होने पर "वह" स्वयं ही सब कुछ है| परमात्मा एक प्रवाह है, उसे स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दो| कोई अवरोध मत खड़ा करो| फिर पाएँगे कि वह प्रवाह हम स्वयं हैं| बातों से कुछ नहीं होगा, यह एक यज्ञ है जिस में स्वयं के अहंकार की आहुति देनी पड़ती है| हमें चाहिए बस सिर्फ एक प्रबल सतत अभीप्सा और परम प्रेम, अन्य कुछ भी नहीं| सारा मार्गदर्शन स्वतः ही स्वयं परमात्मा करते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ अप्रेल २०१८

मेरी दृष्टि में पाप और पुण्य क्या हैं ? .....

मेरी दृष्टि में पाप और पुण्य क्या हैं ? .....
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हमारी आत्मा, परमात्मा का अंश होने के कारण परमात्मा के साथ एक है| पुण्य और पाप पर हमारे शास्त्रों में बहुत अधिक लिखा गया है| हम अपनी सुविधानुसार कुछ भी समझ लेते हैं| पर पाप और पूण्य को जो मैं समझ पाया हूँ, उसे व्यक्त कर रहा हूँ| मेरी मान्यता, हो सकता है अनेक पाठकों को सही नहीं लगे| पर मैं अपने निष्कर्षों पर अडिग हूँ| मुझे सुधारने का प्रयास न कीजिएगा| मैं पहिले से ही सुधरा हुआ हूँ|
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(१) पुण्य क्या है ? ..... जो कर्म मुझे आत्म-तत्व का बोध करायें, वे मेरे लिए पुण्य हैं|
(२) पाप क्या है ? ..... जो कर्म मुझे आत्म-तत्व को विस्मृत करायें, वे मेरे लिए पाप हैं|
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किसी भी घटना विशेष के कारण हमारी क्या प्रतिक्रिया होती है, वह बता देती है कि हम कितने पानी में हैं| अतः हर समय सतर्क रहें| यह एक विवाद का विषय हो सकता है, अतः इस पर और अधिक नहीं लिखूँगा| साधना करते करते कर्ता भाव से मुक्त हो जाएँ, फिर यह विषय और स्पष्ट रूप से समझ में आ जाएगा| कोई ऐसा कार्य न करें जिस से बंधन हों|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८

मैं जातिगत एकता के पक्ष में नहीं हूँ .....

जो लोग जातिगत एकता की बातें करते हैं, मैं आध्यात्मिक रूप से उनका समर्थन नहीं करता हूँ| पर सामाजिक रूप से कभी कभी जातिगत एकता की बातें करना मेरी विवशता यानि मज़बूरी है क्योंकि भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में अनारक्षित जातियों के विरुद्ध राजनीतिक अन्याय बहुत अधिक है|
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पर सत्य तो यह है कि चाहे किसी भी जाति की बात हो, जातिगत एकता की बात ही वेदविरुद्ध है| जो वेदविरुद्ध है वह हमें कभी भी स्वीकार नहीं होना चाहिए| श्रुति भगवती ब्रह्म से एकत्व सिखाती है, वहाँ कोई जाति की बात नहीं है| एकस्तथा सर्व भूतान्तरात्मा, अर्थात सब प्राणियों में एक ही आत्मा छिपा हुआ है| प्रत्यगात्मा और ब्रह्म में एकत्व है| जातिगत एकता की बात करने वाले अज्ञान और माया के वशीभूत हैं|
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मध्यकाल के संत दरिया साहिब ने भी कहा है .....
"जाति हमारी ब्रह्म है, माता पिता हैं राम| गृह हमारा शुन्य है, अनहद में विश्राम||"
हमारी जाति "अच्युत" है| अर्थात् जो भगवान की जाति है, वह ही हमारी जाति है| ब्रह्म ही सत्य है और संसार मिथ्या है| अतः ब्रह्म से एकत्व ही सच्चा एकत्व है, इन सांसारिक जातियों से नहीं|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८

आत्म-तत्व अर्थात परमात्मा की अनंतता से जुड़कर ही हम महान हैं .....

आत्म-तत्व अर्थात परमात्मा की अनंतता से जुड़कर ही हम महान हैं .....
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'आचरण' क्या है? 'आ' अर्थात अनंत, उसकी ओर अग्रसर जो चरण हों, वे ही हमारा आचरण हैं| आत्मा यानि अनंतता से जुड़कर ही मनुष्य महान बनता है| पानी का एक बुलबुला सागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है| उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है? पर वही बुलबुला जब सागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट व प्रचंड रूप या सौम्यतम रूप भी धारण कर लेता है| वैसे ही मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है, उतना ही महान है| जितना वह परमात्मा से दूर है, उतना ही छोटा है| सत्य का अनुसंधान सब के लिए संभव नहीं है, पर जो उसके लिए प्राणों की बाज़ी लगा कर सब कुछ परमात्मा को अर्पित कर देते हैं, वे सब बाधाओं को पार करते हुए उस पार प्रभुकृपा से पहुँच ही जाते हैं|
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मेरे लिए तो सुषुम्ना का मार्ग ही स्वर्ग का मार्ग है, और कूटस्थ चैतन्य ही स्वर्ग का द्वार है| यह एक गुरुमुखी ज्ञान है जो सिद्ध सदगुरु और भगवान परमशिव की कृपा से ही समझ में आ सकता है| गुरु प्रदत्त विधि से हमें परमात्मा की अनंतता पर अजपा-जप और प्रणव ध्वनि यानि अनाहत नाद को निरंतर सुनते हुए कूटस्थ में सूक्ष्म भर्गज्योति: का ध्यान करते रहना चाहिए| ध्यान में सफलता के लिए भक्ति और अभीप्सा हो, फिर आसन मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान हो, जो सदगुरु ही प्रदान कर सकते हैं| साथ साथ दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन भी चाहिए|
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बाहर का विश्व हमारा ही प्रतिबिम्ब है| हमारा स्वरुप सुन्दर होगा तो प्रतिबिम्ब भी सुन्दर होगा| शृंगार हम स्वयं का करें, न कि दर्पण का| आत्मा हम स्वयं हैं, और यह संसार एक तरह के दर्पण में दिखाई देने वाला हमारा ही प्रतिबिम्ब है| दर्पण को कितना भी सजा लें, यदि हमारी आत्मा कलुषित है तो प्रतिबिंब भी कलुषित ही होगा | उज्जवल ही करना है तो बिम्ब को करें, फिर उसका प्रतिबिंब यह संसार भी अति सुन्दर होगा|
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तत्व रूप में शिव और विष्णु एक हैं| उनमें भेद हमारी अज्ञानता है| इस समय याद नहीं आ रहा है कि कहाँ पर तो मैनें पढ़ा है .....
"ॐ नमः शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे| शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:||"
भगवान परमशिव ही आध्यात्मिक सूर्य हैं, यह मैं यहाँ अपने निज अनुभव से लिख रहा हूँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८

भाजपा और २०१९ के आम चुनाव ......

भाजपा को २०१९ से पूर्व निम्न प्रश्नों का उत्तर तो देना ही होगा. हमें granted या अंधभक्त न समझा जाए....
(१) समान नागरिक संहिता के लिए कितना समय और लगेगा ? देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलने चाहियें, सभी के लिए एक ही क़ानून हो|
(२) धारा ३७० व ३५-ऐ की समाप्ति के लिए कितना समय और लगेगा ? "भाजपा" के पूर्व नाम "भारतीय जनसंघ" की स्थापना ही कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के लिए डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा हुई थी, जिनको आपने पूरी तरह भुला दिया है| डॉ.मुखर्जी के नाम पर देश में कोई स्मारक या संस्था नहीं है|
(३) राममंदिर के निर्माण के लिए कितना समय और लगेगा ?
(४) रोहिन्गिया घुसपैठियों की बापसी कब होगी ?
(५) सुप्रीम कोर्ट के SC/ST वाले निर्णय में क्या गलत था ? बिना कोई अपराध सिद्ध हुए सिर्फ आरोपों पर किसी को बंदी बनाना क्या न्यायोचित है ?
(६) जम्मू-कश्मीर पर आप की नीति कुछ समझ में नहीं आ रही है. कब तक जवानों के मरने का क्रम चलता रहेगा ?
(७) विष वमन करती समाचार मिडिया पर अंकुश कब लगेगा?
(८) गौ-ह्त्या कब बंद होगी?
(९) जनता ने सुशासन और भ्रष्टाचार मिटाने के वायदे पर स्पष्ट बहुमत दिया था। भ्रष्टाचार को आपने अभयदान क्यों दिया हुआ है?
(१०) कश्मीर से भगाए गए हिन्दुओं को न्याय कब मिलेगा ?
(११) क्या जम्मू के हिन्दू भारतीय नहीं हैं? उनके साथ अब अत्याचार क्यों हो रहे हैं?
(१२) नेपाल, श्रीलंका, म्यानमार, व मालदीव जैसे देश चीन की गोद में क्यों चले गए? क्या आप की पड़ोसियों के प्रति विदेश नीति सफल रही है?
(१३) देश के कई राज्यों में व्याप्त अराजकता की स्थिति कब तक समाप्त होगी ?
(१४) तुष्टिकरण की नीति पर आप क्यों चल पड़े हैं? बसपा, सपा और कोंग्रेस का वोट बैंक आप कभी नहीं तोड़ सकते, फिर उनके वोट बैंक का भद्दा तुष्टिकरण कर अपने स्वयं के मतदाताओं का विश्वास खो रहे हो|
(१५) क्या आप राहुल गांधी की आक्रामकता से डर गए हैं? क्या आपका स्वयं के लोगों से विश्वास उठ गया है?
(१६) स्वयं की पार्टी की घोषित नीतियों से आप दूर क्यों हो गए हो?
(१७) हिन्दू मंदिरों की सरकारी लूट कब बंद होगी ? तथाकथित अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेद कब समाप्त होगा ?
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२०१९ अधिक दूर नहीं है| आप एकसौ करोड़ लोगों द्वारा चुने गए हैं, किसी एक नेता विशेष भीम बाबा से नहीं| आप अपनी जड़ों से कट कर स्वयं को नहीं बचा सकते| आपके कारण तिल तिल कर जल मरने की बजाय लोग कोंग्रेस को वोट देकर एक साथ आत्मह्त्या करना अधिक पसंद करेंगे|