Sunday 29 April 2018

मेरी दृष्टि में पाप और पुण्य क्या हैं ? .....

मेरी दृष्टि में पाप और पुण्य क्या हैं ? .....
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हमारी आत्मा, परमात्मा का अंश होने के कारण परमात्मा के साथ एक है| पुण्य और पाप पर हमारे शास्त्रों में बहुत अधिक लिखा गया है| हम अपनी सुविधानुसार कुछ भी समझ लेते हैं| पर पाप और पूण्य को जो मैं समझ पाया हूँ, उसे व्यक्त कर रहा हूँ| मेरी मान्यता, हो सकता है अनेक पाठकों को सही नहीं लगे| पर मैं अपने निष्कर्षों पर अडिग हूँ| मुझे सुधारने का प्रयास न कीजिएगा| मैं पहिले से ही सुधरा हुआ हूँ|
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(१) पुण्य क्या है ? ..... जो कर्म मुझे आत्म-तत्व का बोध करायें, वे मेरे लिए पुण्य हैं|
(२) पाप क्या है ? ..... जो कर्म मुझे आत्म-तत्व को विस्मृत करायें, वे मेरे लिए पाप हैं|
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किसी भी घटना विशेष के कारण हमारी क्या प्रतिक्रिया होती है, वह बता देती है कि हम कितने पानी में हैं| अतः हर समय सतर्क रहें| यह एक विवाद का विषय हो सकता है, अतः इस पर और अधिक नहीं लिखूँगा| साधना करते करते कर्ता भाव से मुक्त हो जाएँ, फिर यह विषय और स्पष्ट रूप से समझ में आ जाएगा| कोई ऐसा कार्य न करें जिस से बंधन हों|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८

1 comment:

  1. एक क्षण के लिए भी परमात्मा की विस्मृति एक पाप है. परमात्मा की कामना ही मेरी कामना है, जो उन्हें प्रिय है वही मुझे प्रिय है.
    ॐ ॐ ॐ

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