Saturday 31 July 2021

भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था सर्वोत्कृष्ट थी ---

 

भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था सर्वोत्कृष्ट थी। तभी इतने सत्यनिष्ठ, चरित्रवान, महान व्यक्ति भारत में अवतरित हुये।
(१) जब बच्चे आठ वर्ष की आयु के हो जाएँ तभी से उन्हें आध्यात्मिक ध्यान साधना सिखानी चाहिये। अन्य आध्यात्मिक संस्कार भी अपने बालकों में देने चाहिए।
(२) संस्कृत भाषा हमें बचपन से ही अपने बालकों को अनिवार्य रूप से सिखानी चाहिए। हमारा सारा प्राचीन ज्ञान-विज्ञान संस्कृत भाषा में है।
(३) समाज में ब्राह्मणों की संस्था पुनर्प्रतिष्ठित की जाये। ब्राह्मणों में ब्राह्मण संस्कार पुनर्जागृत किए जाएँ। उन्हें समाज में वह सम्मान मिले जिसके वे पात्र हैं। उनके बालकों को निःशुल्क धार्मिक गुरुकुल शिक्षा प्राप्त हो। उनकी आजीविका की व्यवस्था भी हो। भविष्य में धर्म-प्रचार का कार्य वे ही करेंगे। हिन्दू मंदिरों के धन को सरकारी लूट से बचाकर, सनातन हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार पर ही खर्च किया जाना चाहिए। ब्राह्मण बचेगा तभी सनातन धर्म बचेगा। भारत को संस्कृत भाषा और ब्राह्मणों की संस्था ने जीवित रखा है। अंग्रेजों और उनके मानसपुत्रों ने उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से नष्ट कर दिया था।
१ जुलाई २०२१

(पुनर्प्रस्तुत) उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग---

(पुनर्प्रस्तुत)

उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग---
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आसमान में एक उलटा कुआँ लटक रहा है जिसका रहस्य प्रभु कृपा से ध्यान योग साधक जानते हैं| उस कुएँ में एक चिराग यानि दीपक सदा प्रज्ज्वलित रहता है| उस दीपक में न तो कोई ईंधन है, और ना ही कोई बत्ती है फिर भी वह दीपक दिन रात छओं ऋतु और बारह मासों जलता रहता है|
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उस दीपक की अखंड ज्योति में से एक अखंड ध्वनि निरंतर निकलती है जिसे सुनते रहने से साधक समाधिस्थ हो जाता है|
संत पलटूदास जी कहते हैं कि उस ध्वनी को सुनने वाला बड़ा भाग्यशाली है| पर उस ज्योति के दर्शन और उस नाद का श्रवण सद्गुरु के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं करा सकता|
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उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग ......
तिसमें जरै चिराग, बिना रोगन बिन बाती |
छह ऋतु बारह मास, रहत जरतें दिन राती ||
सतगुरु मिला जो होय, ताहि की नजर में आवै |
बिन सतगुरु कोउ होर, नहीं वाको दर्शावै ||
निकसै एक आवाज, चिराग की जोतिन्हि माँही |
जाय समाधी सुनै, और कोउ सुनता नांही ||
पलटू जो कोई सुनै, ताके पूरे भाग |
उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग ||
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पानी का कुआँ तो सीधा होता है पर यह उलटा कुआँ मनुष्य कि खोपड़ी है जिसका मुँह नीचे की ओर खुलता है| उस कुएँ में हमारी आत्मा यानि हमारी चैतन्यता का नित्य निवास है| उसमें दिखाई देने वाली अखंड ज्योति ..... ज्योतिर्मय ब्रह्म है, उसमें से निकलने वाली ध्वनि ..... अनाहत नादब्रह्म है| यही राम नाम की ध्वनी है|
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'कूटस्थ' में इनके साथ एकाकार होकर और फिर इनसे भी परे जाकर जीवात्मा परमात्मा को प्राप्त होती है| इसका रहस्य समझाने के लिए परमात्मा श्रोत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सदगुरुओं के रूप में अवतरित होते हैं| यह चैतन्य का दीपक ही हमें जीवित रखता है, इसके बुझ जाने पर देह मृत हो जाती है|
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बाहर हम जो दीपक जलाते हैं वे इसी कूटस्थ ज्योति के प्रतीक मात्र हैं| बाहर के घंटा, घड़ियाल, टाली और शंख आदि की ध्वनी उसी कूटस्थ अनाहत नाद की ही प्रतीक हैं|
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ह्रदय में गहन भक्ति और अभीप्सा ही हमें राम से मिलाती हैं|
ब्रह्म के दो स्वरुप हैं| पहला है "शब्द ब्रह्म" और दूसरा है "ज्योतिर्मय ब्रह्म"| दोनों एक दूसरे के पूरक हैं| आज्ञा चक्र में नियमित रूप से ध्यान लगाने से ही ज्योतिर्मय और शब्द ब्रह्म की अनुभूति होती है|
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प्रिय निजात्मगण, आप सब की भावनाओं को नमन और मेरे लेख पढने के लिए आप सब का अत्यंत आभार| आप सब सदा सुखी एवं सम्पन्न रहें| आप की कीर्ति सदा अमर रहे|
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ॐ तत्सत् | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||
३० जून २०१६

मनुष्य जाति का भविष्य :---

 

मनुष्य जाति का भविष्य :---
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मैं जो लिख रहा हूँ, यह कोई भविष्यवाणी नहीं, निश्चित रूप से होने वाली एक घटना है, जिस का पूर्वाभास मुझे हुआ है| इस बार होने वाले तृतीय विश्व-युद्ध में विश्व के अधिकांश मनुष्यों की जनसंख्या नष्ट हो जाएगी| हो सकता है बहुत कम मनुष्य ही बचें| पृथ्वी पर से अधर्म का तो नाश होगा ही, दुष्ट प्रकृति के मनुष्यों का भार भी कम हो जाएगा| अधिकांश मनुष्य इस पृथ्वी पर भार ही हैं| पृथ्वी पर यदि मनुष्य बचे भी तो वे ही बचेंगे जिन पर परमात्मा की विशेष कृपा होगी| वे उस सत्य-सनातन धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे जो सृष्टि के आदि काल से है|
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यह भी आवश्यक नहीं है कि मनुष्य जाति ही बचे, पूरी मनुष्य जाति भी नष्ट हो सकती है| जिस तरह पृथ्वी पर कभी डायनासोर थे, और अब उनके अवशेष ही कभी-कभी कहीं-कहीं यहाँ-वहाँ मिल जाते हैं, वैसे ही मनुष्यों के भी अवशेष ही मिलेंगे| मनुष्य जाति अपने उद्देश्य में विफल रही है| मनुष्यों के स्थान पर किसी अन्य लोक से अवतरित दूसरे प्राणी ही इस पृथ्वी पर राज्य करेंगे, जो मनुष्यों से अधिक विकसित, उन्नत व अधिक शक्तिशाली होंगे| भविष्य के इतिहास में यही लिखा होगा कि इस पृथ्वी पर कभी मनुष्य नाम के प्राणी रहते थे, जो आपस में लड़कर समाप्त हो गए|
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यह कोई डराने वाली बात नहीं है, निश्चित रूप से घटित होने वाला एक सत्य है| तृतीय विश्व युद्ध की भूमिका बन चुकी है, और यह टलने वाला नहीं है| जिस तरह के दुष्ट प्रकृति के मनुष्य इस पृथ्वी पर हैं, उनके साथ रहने की अब कोई इच्छा नहीं है| यह संसार नष्ट होकर नए सिरे से बसेगा जिस पर विज्ञानमय लोक से अवतरित एक नई जाति के प्राणी ही राज्य करेंगे| मनुष्य जाति महत्वहीन हो जाएगी, डायनासोर की तरह उनके अवशेष ही मिलेंगे| आने वाला तृतीय विश्व युद्ध महाप्रलय होगा| अनंत काल में कुछ लाख वर्ष तक मनुष्य इस पृथ्वी पर रहे| अनंत काल में कुछ लाख वर्षों का कोई अधिक महत्व नहीं है| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ जुलाई २०२०

हमारा कार्य सिर्फ प्रकाश में वृद्धि करना है. बाकी का कार्य परमात्मा पूर्ण करेंगे ---

 

हमारा कार्य सिर्फ प्रकाश में वृद्धि करना है. बाकी का कार्य परमात्मा पूर्ण करेंगे ---
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जैसे-जैसे सतोगुण में वृद्धि होगी, तमोगुण का प्रभाव कम होगा| आज स्वतः ही कुछ घनीभूत पीड़ाएँ व्यक्त हो गईं| मध्याह्न में विश्राम करते करते अचानक समाधिस्थ हो गया| शरीर का बोध ही नहीं रहा, पता नहीं शरीर था भी या नहीं| चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश! कहीं कोई अंधकार नहीं! कई तरह के मिले-जुले रंगों का प्रकाश सामने आया जो पहले कभी दिखाई नहीं दिया था| पहले सुनहरे, नीले व श्वेत रंग तो दिखाई देते थे पर आज पहली बार इनके साथ पीतांबरी रंग भी दिखाई दिया जो बड़ा ही दिव्य था| प्रकाश ही प्रकाश, और आनंद ही आनंद! समझते देर नहीं लगी कि गुरु महाराज स्वयं ही करुणावश कृपा कर के पधारे हैं| उन्हें कौन तो आसन देता, और कौन उन्हें प्रणाम करता? मैं तो था ही नहीं| दो-तीन गोपनीय बातें जो वे बताना चाहते थे, वे संप्रेषित हो गईं और पूरी तरह से समझ में आ गईं| इसके काफी देर बाद धीरे धीरे देह की चेतना बापस लौटी| इतनी गहन तृप्ति और संतोष का बोध पहले कभी नहीं हुआ था| आध्यात्मिक धरातल पर अब कोई पीड़ा नहीं है|
कृपा शंकर
३१ जुलाई २०२०
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ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः, ॐ श्रीपरमगुरुभ्यो नमः, ॐ श्रीपरात्परगुरुभ्योनमः, ॐ श्रीपरमेष्टीगुरुभ्योनमः || अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम | तस्मात कारुण्य भावेन, रक्षस्व परमेश्वर ||
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वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ गुरु ॐ !! जय गुरु !!
३१ जुलाई २०२०