"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते | अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद व्रतं ममः ||
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रक्षा करो हे प्रभु मैं आपकी शरण में हूँ | रक्षा करो, रक्षा करो |
अपनी माया से रक्षा करो जो निरंतर विक्षेप उत्पन्न कर रही है और अज्ञान के आवरण को और भी दृढ़ बना रही है |
आप मेरे से अच्छा जानते हैं कि मेरी समस्या और उसका निदान क्या है |
मेरा और कोई नहीं है | मैं सिर्फ आपका हूँ और आप मेरे हैं |
आप को छोड़कर मेरा कोई ठिकाना नहीं है |
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आप सदा मेरे समक्ष हैं और मेरी रक्षा कर रहे हैं | मेरे विचारों के केंद्र बिदु आप ही हैं | मेरे विचार अब इसी समय से इधर उधर न भटकें, सिर्फ आप पर ही केन्द्रित रहें |
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जीवन के अंधेरे मार्गों पर आप ही मेरे मार्गदर्शक हैं | इस अज्ञानांधकार की निशा में आप ही मेरे चन्द्रमा हैं | आप ही मेरे ज्ञानरूपी दिवस के सूर्य हैं | इस अंधकारमय भवसागर में भी आप ही मेरे ध्रुव तारे हैं | मेरे भटकते बिखरे हुए विचारों के ध्रुव आप ही रहें | इस घनीभूत पीड़ा और वेदना से मेरी रक्षा करो |
त्राहिमाम् त्राहिमाम् ||
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रक्षा करो हे प्रभु मैं आपकी शरण में हूँ | रक्षा करो, रक्षा करो |
अपनी माया से रक्षा करो जो निरंतर विक्षेप उत्पन्न कर रही है और अज्ञान के आवरण को और भी दृढ़ बना रही है |
आप मेरे से अच्छा जानते हैं कि मेरी समस्या और उसका निदान क्या है |
मेरा और कोई नहीं है | मैं सिर्फ आपका हूँ और आप मेरे हैं |
आप को छोड़कर मेरा कोई ठिकाना नहीं है |
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आप सदा मेरे समक्ष हैं और मेरी रक्षा कर रहे हैं | मेरे विचारों के केंद्र बिदु आप ही हैं | मेरे विचार अब इसी समय से इधर उधर न भटकें, सिर्फ आप पर ही केन्द्रित रहें |
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जीवन के अंधेरे मार्गों पर आप ही मेरे मार्गदर्शक हैं | इस अज्ञानांधकार की निशा में आप ही मेरे चन्द्रमा हैं | आप ही मेरे ज्ञानरूपी दिवस के सूर्य हैं | इस अंधकारमय भवसागर में भी आप ही मेरे ध्रुव तारे हैं | मेरे भटकते बिखरे हुए विचारों के ध्रुव आप ही रहें | इस घनीभूत पीड़ा और वेदना से मेरी रक्षा करो |
त्राहिमाम् त्राहिमाम् ||
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||