Saturday 26 November 2016

आवश्यकता चेतना के स्तर को ऊंचा उठाने में है .....

उत्तमो ब्रह्मसद्भावो ध्यानभावस्तु मध्यमः |
स्तुतिर्जपाऽधमो भावो बहिः पूजाऽधमाधमा ||
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उपरोक्त श्लोक ज्ञान संकलिनी तंत्र से है| शिव संहिता में भी इससे मिलता एक मन्त्र है| जिस प्रकार शिक्षा में क्रम हैं वैसे ही साधना में भी क्रम हैं| एक बालक चौथी कक्षा में है, एक दसवीं में, एक कॉलेज में, एक डॉक्टरेट कर रहा है, सब की पढाई अलग अलग होती है| वैसे ही अपने अपने चैतन्य की स्थिति और विकास के क्रम के अनुसार ही हमारी साधना भी अलग अलग होती है| एक साधक के लिए जो साधना अनुकूल है, यह आवश्यक नहीं है कि दूसरे साधक के भी अनुकूल होगी| एक उत्तम उपासक सर्वथा परमेश्वर में अपनी सारी इच्छाओं को लीन कर देता है| उसकी कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं होती|
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वेदान्त के दृष्टिकोण से जो ध्यान भाव को भी तज कर केवल ध्येय स्वरूप में सर्वथा स्थित रहते हैं वे सबसे उत्तम उपासक हैं| यह एक बहुत गहन रहस्य की बात है जिसे परमात्मा की कृपा से ही समझा जा सकता है|

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आवश्यकता चेतना के स्तर को ऊंचा उठाने में है| समस्त ज्ञान, समस्त उपलब्धियाँ, पूर्णता कहीं बाहर नहीं है, ये सब हमारी चेतना में ही हैं| चेतना के स्तर को ऊंचा उठाओ, सारी उपलब्धियाँ स्वयं को अनावृत कर हमारे साथ एकाकार हो जायेंगी|
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ॐ तत्सत् | 
ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||

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