Saturday 26 November 2016

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा ....

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ?
जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा ....
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महाराजा रणजीतसिंह जी ने जब अटक के किले पर आक्रमण किया था तब उस समय मार्ग की एक बरसाती नदी में बाढ़ आई हुई थी| किले का किलेदार और सभी पठान सिपाही निश्चिन्त होकर सो रहे थे कि रात के अँधेरे में रणजीतसिंह की फौज नदी को पार नहीं कर पायेगी| अगले दिन किले के पठानों को आसपास से और भी सहायता मिलने वाली थी|
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आधी रात का समय था और रणजीतसिंह जी के सामने नदी पार करने के अतिरिक्तं कोई अन्य विकल्प नहीं था| उन्हें पता था कि दिन उगते ही पठान सेना सजग हो जायेगी और आसपास से उन्हें और भी सहायता मिल जायेगी| तब अटक को जीतना असम्भव होगा| रणजीतसिंह जी एक वीर योद्धा ही नहीं अपितु एक भक्त और योगी भी थे|
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उन्होंने नदी का वह सबसे चौड़ा पाट ढूँढा जहाँ पानी सबसे कम गहरा था, और अपने सिपाहियों से यह कह कर कि .....
"सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ?
जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा "....
अपना घोड़ा नदी में उतार दिया और नदी के उस पार पहुँच गए| पीछे पीछे सारी सिख फौज ने भी नदी पार कर ली|
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भोर होने से पूर्व ही उनकी सिख सेना ने अटक के किले को घेर लिया| रणजीत सिंह जी को देखकर किले का किलेदार और उसकी सारी फौज भाग खड़ी हुई| अटक पर अधिकार कर के ही रणजीतसिंह जी नहीं रुके, उन्होंने पूरे अफगानिस्तान को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया| उनके राज्य की सीमाओं में सिंध, अफगानिस्तान, पंजाब, कश्मीर और पूरा लद्दाख भी था| हिन्दू जाति के सबसे वीर योद्धाओं में उनका नाम भी सम्मिलित है| वे एक ऐसे महान योद्धा थे जिन्होनें कभी असफलता नहीं देखी| इसका कारण उनका दृढ़ मनोबल और दूरदर्शिता थी|
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जो भी व्यक्ति मन लगाकर किसी भी असंभव कार्य को संपन्न करने के लिए प्रयत्नशील होने लगता हे तो वह निश्चित रूप से उसे संभव कर ही लेता है|
रहीमदास जी ने कहा है ....
रहिमन मनहिं लगाइके, देखि लेहुँ किन कोय |
नर को बस कर वो कहाँ, नारायण वश होय ||
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सभी को सादर नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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