Monday, 30 December 2024

गांधी को महात्मा किसने बनाया ? ---

गांधी को महात्मा किसने बनाया ? ---
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अब उजागर हुए एक ब्रिटिश दस्तावेज के अनुसार मोहनदास करमचंद गांधी को "महात्मा" की उपाधि ब्रिटिश सरकार द्वारा २ सितंबर १९३८ को दी गई थी। ब्रिटिश सरकार के आदेशानुसार २ सितंबर १९३८ से "गांधी" को "महात्मा गांधी" कहना अनिवार्य था। यह झूठ है कि महात्मा की उपाधि उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस, या रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की सेवा का वचन देने के कारण श्री मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा कहलवाया गया। यह तथ्य जानने के बाद उन्हें "महात्मा गांधी" कहना अंग्रेजों की गुलामी है।



Birthday of Mahatma Gandhi should be observed on 2nd September. As Mohandas Gandhi, he was born on 2nd October, 1861. But as 'Mahatma', he was born on 2nd September, 1938 by order of Secretary to Government, GA Department, Government of CP & Brar.

जब से भगवान से प्रेम करके देखा है, तब से और कुछ भी देखने की इच्छा नहीं है ---

 जब से भगवान से प्रेम करके देखा है, तब से और कुछ भी देखने की इच्छा नहीं है

आज बेलगांव (कर्नाटक) से एक भक्त महिला का फोन आया, जो पूछ रही थीं कि मैं क्या साधना करता हूँ। मैंने कहा कि मैं कुछ भी साधना नहीं करता, जो भी करना है वह मेरे प्रभु ही करते हैं। मैंने तो अपनी अंगुली उनके हाथ में पकड़ा रखी है, और कुछ भी नहीं करता। जो करना है वह मेरे प्रभु ही करते हैं।

भगवान कभी नहीं बदलते। लेकिन समय के साथ उनकी सृष्टि में सब कुछ बदल जाता है। संसार परिवर्तनशील है। सारा दृश्य भगवान की माया है। भगवान भी क्या क्या दृश्य दिखलाते हैं ! इस संसार में बहुत कुछ अनुभव किया है, लोगों के कष्ट भी बहुत देखे हैं, और उनकी कष्ट सहने की शक्ति भी। झूठ, लोभ, अहंकार, छल, कपट, व विश्वासघात भी बहुत अधिक देखा है; और सत्यनिष्ठा भी।
लेकिन जब से भगवान से प्रेम करके देखा है, तब से और कुछ भी देखने की इच्छा नहीं है। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० दिसंबर २०२४ . पुनश्च: --- अपने परम ज्योतिर्मय रूप में स्वयं भगवान वासुदेव यहाँ बिराजमान हैं। दाएँ-बाएँ और ऊपर मृत्यु है, लेकिन उनकी कृपा से मार्ग प्रशस्त है। मुझे अपना एक उपकरण यानि निमित्त मात्र बनाकर वे स्वयं ही अपनी ओर चल रहे हैं।

आनंद हमारा स्वभाव है। हम हर समय आनंद में रहें ---

 आनंद हमारा स्वभाव है। हम हर समय आनंद में रहें ---

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आनंद का स्त्रोत भगवत्-प्रेम है। जिस भी क्षण भगवान से प्रेम होता है, हम आनंद से भर जाते हैं। कृष्ण यजुर्वेद शाखा के तैतिरीयोपनिषद में ब्रह्मानन्दवल्ली नामक एक खंड है जिसमें आनंद की मीमांसा प्रस्तुत की गई है जो पठनीय है। ब्रह्मानन्दवल्ली में बताया गया है कि ईश्वर हृदय में विराजमान है। हमारे सूक्ष्म देह में स्थित -- 'अन्नमय,' 'प्राणमय,' 'मनोमय,' 'विज्ञानमय' और 'आनन्दमय' कोशों का महत्त्व दर्शाया गया है। आनन्द की मीमांसा लौकिक आनन्द से लेकर ब्रह्मानन्द तक की की गयी है। यह भी बताया गया है कि सच्चिदानन्द-स्वरूप परब्रह्म का सान्निध्य कौन साधक प्राप्त कर सकते हैं।
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आनंद तो शाश्वत, अनंत और नित्य-निरंतर है। इसे किसी दिन-विशेष या किसी परिप्रेक्ष्य से जोड़ कर न देखें। मेरा निज-स्वरूप तो स्वयं सच्चिदानंद भगवान वासुदेव हैं, जिनसे खंडित होना एक अक्षम्य अपराध होगा। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० दिसंबर २०२३

क्या असत्य और अन्धकार की शक्तियों का वर्चस्व -- हमारी आलोचना और निंदा से ही दूर हो जायेगा?

 (प्रश्न) क्या असत्य और अन्धकार की शक्तियों का वर्चस्व -- हमारी आलोचना और निंदा से ही दूर हो जायेगा?

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(उत्तर) मेरे विचार से नहीं। उनका परावर्तन आध्यात्मिक साधना द्वारा ही किया जा सकता है। सत्य ही परमात्मा है। सत्य से साक्षात्कार के पश्चात ही कुछ रचनात्मक कार्य हो सकते हैं, क्योंकि हम -- सृष्टि का भाग नहीं, सृष्टि -- हमारा भाग है।
हमें निज जीवन में शिवत्व को प्रकट करना पड़ेगा। शिव ही एकमात्र सत्य हैं। पृथकता का बोध ही माया का आवरण और विक्षेप है। .
वास्तविकता में यह सम्पूर्ण विश्व मेरा ही विस्तार, और मेरा ही संकल्प है। जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, और जो कुछ भी दृष्टि से परे है, वह सब मैं हूँ। मैं सम्पूर्ण अस्तित्व और उसकी पूर्णता हूँ। मैं परमशिव हूँ। शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि॥ ॐ ॐ ॐ !!
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मनो बुद्धि अहंकार चित्तानि नाहं, न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |
न च व्योम भूमि न तेजो न वायु: चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम ||१||
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः, न वा सप्तधातु: न वा पञ्चकोशः |
वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायु, चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||२||
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ, मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः, चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||३|
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः |
अहम् भोजनं नैव भोज्यम न भोक्ता, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||४||
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:, पिता नैव मे नैव माता न जन्म |
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||५||
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो, विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||६||
(इति श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम सम्पूर्णं)
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"ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या" "शिवोहम् शिवोहम् अहम् ब्रह्मास्मि"॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० दिसंबर २०२२

भारत में नागरिकता कानून और जनसंख्या नियंत्रण का विरोध गलत और दुर्भावनापूर्ण है ---

भारत में नागरिकता कानून और जनसंख्या नियंत्रण का विरोध गलत और दुर्भावनापूर्ण है| देश की अनावश्यक जनसंख्या जिस तरह से बढ़ रही है उस अनुपात में रोजगारों/नौकरियों का सृजन नहीं किया जा सकता है| रोजगारों/नौकरियों का सृजन कैसे व कहाँ करेंगे, यह समझ से परे है| एकमात्र उपाय बड़ी कठोरता से बलात् जनसंख्या नियंत्रण है| देश की जनसंख्या उतनी ही बढ़ाने की अनुमति हो जितने लोगों की आवश्यकता हो|

मैनें चीन की व्यवस्था देखी है| वहाँ कोई गैर कानूनी तरीके से प्रवेश करने का साहस भी नहीं कर सकता क्योंकि घुसपैठियों को शीघ्र ही बिना कोई दया दिखाये गोली मार दी जाती है| चीन की सीमा १४ देशों से लगती है| किसी भी पड़ोसी देश से कोई भी व्यक्ति चीन में अवैध रूप से घुसने की कोशिश तक नहीं करता|
चीन सरकार के पास हर नागरिक का डाटा मौजूद है| वहाँ कोई अपराधी अपराध कर के बच नहीं सकता| वहाँ पूरे देश में सभी सार्वजनिक स्थानों पर बड़े संवेदनशील और शक्तिशाली कैमरे लगे हैं जिनसे हर आने-जाने वालों के चेहरे स्कैन होते हैं| देश के किसी भी भाग में किसी भी भाग के किसी अपराधी का चेहरा दिख जाए तो उसकी सूचना तुरंत पुलिस को लग जाती है|
आतंकवाद पर नियंत्रण बड़ी कठोरता से कर लिया है| वहाँ की सरकार मुसलमानों के लिए कुरान शरीफ और बाइबिल दुबारा लिखवा रही है| सारे पुराने संस्करण जब्त कर लिए गए हैं| चीन के लाखों मुसलमानों को बाड़ों में पशुओं की तरह बंद कर उनके विचार बदले जा रहे हैं| किसी भी मुस्लिम देश में विरोध करने का साहस नहीं है|
जनसंख्या पर नियंत्रण पा लिया गया है| बंदूक की नोक पर एक दम्पत्ति के एक ही संतान की अनुमति थी| अब दो की है| वहाँ कोई विरोधी दल नहीं है|
कृपा शंकर
३० दिसंबर २०१९

यहाँ कोई देश के गौरव की बात करता है तो उसे साम्प्रदायिक क्यों घोषित कर दिया जाता है? हम अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर आत्महीनता के बोध और हीनभावना से ग्रस्त क्यों हैं?

यहाँ कोई देश के गौरव की बात करता है तो उसे साम्प्रदायिक क्यों घोषित कर दिया जाता है? हम अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर आत्महीनता के बोध और हीनभावना से ग्रस्त क्यों हैं?

राष्ट्र में एकता के लिए हमें सब तरह के जातिगत व धार्मिक आरक्षणों को हटाकर एक समान नागरिक संहिता लागू कर, व्यवहार में हो रहे सब तरह के भेदभावों को दूर करना ही होगा| हमारे संविधान ने समानता का अधिकार दिया है पर व्यवहारिक रूप से हमारी संवैधानिक व्यवस्था में कहीं भी समानता नहीं है| कुछ लोग दूसरों से अधिक समान है| आरक्षण व्यवस्था अनारक्षित वर्ग के साथ घोर अन्याय है| समान नागरिक संहिता का न होना पूरे समाज के साथ अन्याय है| सरकारी कागजों में जाति का उल्लेख करना अनिवार्य क्यों है? क्या यह जाति प्रथा को बढ़ावा देना नहीं है?
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संविधान में हिन्दुओं के प्रति दुर्भावना क्यों है? अपनी मान्यता प्राप्त संस्थाओं में हिन्दू अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते, यदि देते हैं तो उसे मान्यता प्राप्त नहीं है| जब कि कोंवेंट और मदरसों की शिक्षा को मान्यता प्राप्त है| सभी बड़े हिन्दू मंदिरों पर सरकार का कब्जा है, पर एक भी मस्जिद या चर्च पर नहीं| मंदिरों का जो धन धर्मशिक्षा और धर्मप्रचार पर खर्च होना चाहिए वह अन्यत्र अधार्मिक कार्यों में हो रहा है| क्या यह हिन्दू मंदिरों की लूट नहीं है? धर्मशिक्षा के अभाव में हिन्दू अधार्मिक होते जा रहे हैं|
कृपा शंकर ३० दिसंबर २०१८