आनंद हमारा स्वभाव है। हम हर समय आनंद में रहें ---
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आनंद का स्त्रोत भगवत्-प्रेम है। जिस भी क्षण भगवान से प्रेम होता है, हम आनंद से भर जाते हैं। कृष्ण यजुर्वेद शाखा के तैतिरीयोपनिषद में ब्रह्मानन्दवल्ली नामक एक खंड है जिसमें आनंद की मीमांसा प्रस्तुत की गई है जो पठनीय है। ब्रह्मानन्दवल्ली में बताया गया है कि ईश्वर हृदय में विराजमान है। हमारे सूक्ष्म देह में स्थित -- 'अन्नमय,' 'प्राणमय,' 'मनोमय,' 'विज्ञानमय' और 'आनन्दमय' कोशों का महत्त्व दर्शाया गया है। आनन्द की मीमांसा लौकिक आनन्द से लेकर ब्रह्मानन्द तक की की गयी है। यह भी बताया गया है कि सच्चिदानन्द-स्वरूप परब्रह्म का सान्निध्य कौन साधक प्राप्त कर सकते हैं।
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आनंद तो शाश्वत, अनंत और नित्य-निरंतर है। इसे किसी दिन-विशेष या किसी परिप्रेक्ष्य से जोड़ कर न देखें। मेरा निज-स्वरूप तो स्वयं सच्चिदानंद भगवान वासुदेव हैं, जिनसे खंडित होना एक अक्षम्य अपराध होगा। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० दिसंबर २०२३
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