सबसे बड़ा गुण ........
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एक ऐसा भी गुण है जिसकी प्राप्ति के बाद अन्य समस्त गुण गौण होकर अपने आप ही उसके पीछे पीछे चलने लगते हैं| जिस भी व्यक्ति में यह गुण प्रकट होता है उसमें अन्य सारे गुण अपने आप ही आ जाते हैं| यह गुण अन्य सब गुणों की खान है|
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जिस भी व्यक्ति में यह गुण होता है वह जहाँ भी जाता है, जहाँ भी उसके पैर पड़ते हैं वह भूमि पवित्र हो जाती है, जिस पर भी उसकी दृष्टी पडती है वह निहाल हो जाता है, देवता और उसके पितृगण भी उसे देखकर आनंदित होते हैं, उसकी सात पीढ़ियाँ तर जाती हैं, और वह परिवार, कुल और वह देश भी धन्य हो जाता है जहाँ उसने जन्म लिया है|
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वह गुण है ----- परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम जिसे देवर्षि नारद ने भक्ति सूत्रों में 'भक्ति' का नाम दिया है|
यहाँ मैं भक्ति सूत्रों के आचार्य भगवान देवर्षि नारद और उनके गुरु ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार को प्रणाम करता हूँ| उनकी कृपा सदा बनी रहे|
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एक ऐसा भी गुण है जिसकी प्राप्ति के बाद अन्य समस्त गुण गौण होकर अपने आप ही उसके पीछे पीछे चलने लगते हैं| जिस भी व्यक्ति में यह गुण प्रकट होता है उसमें अन्य सारे गुण अपने आप ही आ जाते हैं| यह गुण अन्य सब गुणों की खान है|
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जिस भी व्यक्ति में यह गुण होता है वह जहाँ भी जाता है, जहाँ भी उसके पैर पड़ते हैं वह भूमि पवित्र हो जाती है, जिस पर भी उसकी दृष्टी पडती है वह निहाल हो जाता है, देवता और उसके पितृगण भी उसे देखकर आनंदित होते हैं, उसकी सात पीढ़ियाँ तर जाती हैं, और वह परिवार, कुल और वह देश भी धन्य हो जाता है जहाँ उसने जन्म लिया है|
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वह गुण है ----- परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम जिसे देवर्षि नारद ने भक्ति सूत्रों में 'भक्ति' का नाम दिया है|
यहाँ मैं भक्ति सूत्रों के आचार्य भगवान देवर्षि नारद और उनके गुरु ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार को प्रणाम करता हूँ| उनकी कृपा सदा बनी रहे|
ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय | ॐ ॐ ॐ ||