Friday, 16 September 2016

सबसे बड़ा गुण ........

सबसे बड़ा गुण ........
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एक ऐसा भी गुण है जिसकी प्राप्ति के बाद अन्य समस्त गुण गौण होकर अपने आप ही उसके पीछे पीछे चलने लगते हैं| जिस भी व्यक्ति में यह गुण प्रकट होता है उसमें अन्य सारे गुण अपने आप ही आ जाते हैं| यह गुण अन्य सब गुणों की खान है|
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जिस भी व्यक्ति में यह गुण होता है वह जहाँ भी जाता है, जहाँ भी उसके पैर पड़ते हैं वह भूमि पवित्र हो जाती है, जिस पर भी उसकी दृष्टी पडती है वह निहाल हो जाता है, देवता और उसके पितृगण भी उसे देखकर आनंदित होते हैं, उसकी सात पीढ़ियाँ तर जाती हैं, और वह परिवार, कुल और वह देश भी धन्य हो जाता है जहाँ उसने जन्म लिया है|
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वह गुण है ----- परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम जिसे देवर्षि नारद ने भक्ति सूत्रों में 'भक्ति' का नाम दिया है|
यहाँ मैं भक्ति सूत्रों के आचार्य भगवान देवर्षि नारद और उनके गुरु ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार को प्रणाम करता हूँ| उनकी कृपा सदा बनी रहे|

ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय | ॐ ॐ ॐ ||

सूक्ष्म जगत में भारत के भविष्य की रूपरेखा ......

सूक्ष्म जगत में भारत के भविष्य की रूपरेखा ......
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सूक्ष्म जगत में भारत के भविष्य की रूपरेखा है जिसका ज्ञान स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, श्री अरविन्द, परमहंस योगानंद आदि युगपुरुषों को था| पिछले सवा सौ वर्षों के इतिहास को देखिये, अनेक चमत्कारी घटनाएँ हुई हैं जिनकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी| दिखने में वे छोटी मोटी घटनाएँ ही थीं पर उन्होंने विश्व की चिंतन धारा को बदल दिया| भारत का पुनरोत्थान एक महानतम घटना होगी जिससे समस्त विश्व को एक नई दिशा मिलेगी और असत्य व अंधकार की आसुरी शक्तियों का पराभव होगा|
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(1) क्या सन १९०५ ई.में किसी ने कल्पना भी की थी कि जापान जैसा एक छोटा सा देश रूस जैसे विशाल देश की सेना को युद्ध में हराकर उससे पोर्ट आर्थर (वर्तमान दायरन, चीन में) व मंचूरिया (वर्त्तमान में चीन का भाग) छीन लेगा और रूस की शक्तिशाली नौसेना को त्शुसीमा जलडमरूमध्य (जापान व कोरिया के मध्य) में डूबा देगा? उस झटके से रूस अभी तक उभर नहीं पाया है|
बोल्शेविक क्रांति जो वोल्गा नदी में खड़े रूसी युद्धपोत औरोरा के नौसैनिकों के विद्रोह से आरम्भ हुई और लेनिन के नेतृत्व में पूरे रूस में फ़ैल गयी के पीछे भी मुख्यतः इसी निराशा का भाव था|
उपरोक्त घटना से प्रेरणा लेकर भारत में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ किया| भारत में अंग्रेजों ने इतने अधिक नर-संहार किये (पाँच-छः करोड़ से अधिक भारर्तीयों की ह्त्या अंग्रेजों ने की) और भारतीयों को आतंकित कर के यह धारणा जमा दी थी कि गोरी चमड़ी वाले फिरंगी अपराजेय हैं| उपरोक्त युद्ध से यह अवधारणा समाप्त हो गयी|

(2) किस तरह बाध्य होकर रूस को अलास्का बेचना पडा था अमेरिका को, यह भी एक ऐसी ही घटना थी|
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(3) क्या प्रथम विश्व युद्ध के समय तक किसी ने कल्पना भी की थी कि ओटोमन साम्राज्य बिखर जाएगा और खिलाफत का अंत हो जाएगा? वे लोग जो स्वयं को अपराजेय मानते थे, पराजित हो गए|
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(4) जर्मनी जैसा एक पराजित राष्ट्र विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली देश बनकर उबरेगा और पराजित होकर खंडित होगा और फिर एक हो जाएगा, यह क्या किसी चमत्कार से कम था ?
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(5) ब्रिटिश साम्राज्य का विखंडन, जापान की हार, भारत की स्वतंत्रता, चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना, सोवियत संघ का विघटन, साम्यवादी विचारधारा का पराभव आदि क्या किसी अप्रत्याशित चमत्कार से कम थे?
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ऐसे ही भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना भी एक चमत्कार से कम नहीं होगा| भारत के आध्यात्मिक राष्ट्रवाद से समस्त सृष्टि का कल्याण होगा क्योंकि इससे सनातन धर्म की पुनर्स्थापना और प्रतिष्ठा होगी| भारत में आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का अभ्युदय नहीं हुआ तो पूरी मानवता ही अन्धकार में चली जायेगी| भगवान कभी भी नहीं चाहेंगे की ऐसा हो अतः वे निश्चित रूप से भारत की रक्षा करेंगे|
आध्यात्मिक राष्ट्रवाद ही भारत का भविष्य है|
ॐ ॐ ॐ !!
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17 सितम्बर 2013

सबसे बड़ा डर .......

सबसे बड़ा डर .......
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सबसे बड़ा डर मुझे अपनी एक मानसिक बीमारी से लगता है | उस बीमारी से अधिकाँश लोग ग्रस्त हैं| वह बीमारी एक महामारी की तरह फ़ैली हुई है| पूरा समाज और राष्ट्र ही उस महामारी से ग्रस्त है| भगवान मेरी उस महामारी से रक्षा करें| वह महामारी है ... "दम्भित्व" |
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दंभ का अर्थ है झूठा दिखावा और कपट | "अमानीत्व" के साथ साथ "अदम्भित्व"
का गुण भी आवश्यक है, प्रभु प्राप्ति के लिए |
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मैं आंशिक रूप से स्वयं को इस बीमारी से ग्रस्त पाता हूँ, और इससे मुक्त होने का प्रयत्न कर रहा हूँ, अतः किसी की आलोचना का अधिकार मुझ में नहीं है | पर शीघ्र ही इस बीमारी से मुक्त हो जाऊंगा |
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बात करते करते बीच बीच में हम अंग्रेजी बोलने लगते हैं, अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं, यह हमारा दंभ ही है|
दिखावे के लिए संस्कृत का कोई श्लोक, कोई शेर-शायरी, कोई दोहा , चुटकला, या कोई असंगत बात करने लगते हैं, यह भी हमारा दंभ ही है|
कुछ भी जानने का झूठा दिखावा एक दंभ है|
विवाह-शादी आदि में दिखावे के लिए अनावश्यक खर्च भी एक दंभ है|
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किसी भी तरह का दिखावा एक दंभ है, चाहे वह अपने ज्ञान का हो, या समृद्धि का| यह दिखावा एक दंभ है जिसे हम माया का आवरण भी कह सकते हैं| यह आवरण हमें परमात्मा से दूर करता है|
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दम्भभाव ही कपटभाव है । जब तक मनसे कपट नहीं जाता तब तक मनुष्य परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ रहता है । कभी कभी हम शिकायत करते हैं कि हमें भगवान की प्राप्ति क्यों नहीं होती | इसके अनेक कारणों में से ये दो मुख्य हैं ..... मानित्व यानि कर्ताभाव, और दम्भित्व यानि झूठा दिखावा | मोहे कपट छल छिद्र न भावा |
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सभी का कल्याण हो | आप सब को नमन ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

जीवन एक शाश्वत जिज्ञासा है सत्य को जानने की .....

जीवन एक शाश्वत जिज्ञासा है सत्य को जानने की .....
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वर्तमान में तो चारों और असत्य ही असत्य दिखाई दे रहा है| पर यह अन्धकार अधिक समय तक नहीं रहेगा| असत्य, अंधकार और अज्ञान की शक्तियों का पराभव निश्चित रूप से होगा| मनुष्य जीवन की सार्थकता भेड़ बकरी की तरह अंधानुक़रण करने में नहीं है, अपितु सत्य का अनुसंधान करने और उसके साथ डटे रहने में है|
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मुझे गर्व है मेरे धर्म और संस्कृति पर| मुझे गर्व है भारत के ऋषियों पर जिन्होंने सत्य को जानने के प्रयास में परमात्मा के साथ साक्षात्कार किया और ज्ञान का एक अथाह भण्डार छोड़ गए| हमारे प्राणों में जो तड़प है और जो प्रचंड अग्नि हमारे ह्रदय में जल रही है वह ही इसका बोध करा सकती है कि सत्य क्या है| उसे निरंतर प्रज्ज्वलित रखो|
वह तड़प और वह प्रचंड अग्नि ही वास्तविक शाश्वत जिज्ञासा है जो सत्य का बोध करा सकती है| जीवन एक ऊर्ध्वगामी और सतत विस्तृत प्रवाह है कोई जड़ बंधन नहीं| स्वयं को किसी भी प्रकार के बंधन में न बाँधें| इसे प्रवाहित ही होते रहने दें| अपने व्यवहार, आचरण और सोच में कोई जड़ता न लायें| अपने अहंकार को किनारे पर छोड़ दें और प्रभु चैतन्य के आनंद में स्वयं को प्रवाहित होने दें| सारी अनन्तता और प्रचूरता हमारी ही है|
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हम न तो स्त्री हैं और न पुरुष|, हम एक शाश्वत आत्मा हैं| भौतिक जगत में हम यह देह नहीं बल्कि परमात्मा के एक अंश और उसके उपकरण हैं| मानवीय चेतना में बंधना ही हमारे दुःखों का कारण है| सुख और दुःख की अनुभूतियों से हमें ऊपर उठना ही होगा| हम कर्ता नहीं हैं| कर्ता तो परमात्मा है| हम तो उसके एक उपकरण मात्र हैं| हम न तो पापी हैं और न पुण्यात्मा| हम परमात्मा की छवि मात्र हैं| हमारी यह मनुष्य देह हमारा वाहन मात्र है| हम यह देह नहीं हैं| हमारा स्तर तो देवताओं से भी ऊपर है| अपने देवत्व से भी उपर उठो|
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किसी भी विचारधारा या मत-मतान्तर में स्वयं को सीमित ना करें| हम सबसे ऊपर हैं| हैं| हम सिर्फ और सिर्फ भगवान के हैं, अन्य किसी के नहीं| उनकी सारी सृष्टि हमारी है| हम किसी अन्य के नहीं हैं और कोई अन्य हमारा नहीं है| हमारा एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से है | अपने समस्त बंधन और सीमितताएँ उन्हें समर्पित कर उनके साथ ही जुड़ जाओ| हम शिव है, जीव नहीं| अपने शिवत्व को व्यक्त करो|
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प्राचीन काल में असुरों, राक्षसों और पिशाचों की शक्ल-सूरत पृथक हुआ करती होगी पर अब इस युग में तो ये सब मनुष्य देह धारण कर हमारे मध्य ही घूम रहे हैं|
कौन नर-पिशाच है और कौन मनुष्य इसका निर्णय करना असम्भव है| दोनों एक से लगते हैं| वर्तमान में तो इन्ही का वर्चस्व है| पता नहीं क्या कर्म किये होंगे कि इनकी शक्ल देखनी पड़ती है| अतः अपनी संगती के बारे में सचेत रहो|
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भारत का भविष्य सनातन धर्म पर निर्भर है, पूरी पृथ्वी का भविष्य भारत के भविष्य पर निर्भर है, और पूरी सृष्टि का भविष्य पृथ्वी के भविष्य पर निर्भर है|
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सत्य ही परमात्मा है| सत्यनिष्ठ होकर ही हम परमात्मा से जुड़ सकते हैं| ह्रदय में कोई कुटिलता और अहंकार न हो| असत्य वादन करने यानि झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से किया कोई भी जप, प्रार्थना और साधना फलीभूत नहीं होती|
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ॐ तत्सत ! अयमात्मा ब्रह्म ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !

विचित्र लीला ........

विचित्र लीला ........
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यह संसार एक ऐसी विचित्र लीला है जिसे समझना बुद्धि की क्षमता से परे है|
सभी प्राणी परमात्मा के ही अंश हैं, और परमात्मा ही कर्ता है| हमारा भी एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से ही है|
हम एक-दूसरे के रूप में स्वयं से ही विभिन्न रूपों में मिलते रहते हैं|
एकमात्र "मैं" ही हूँ, दूसरा अन्य कोई नहीं है| अन्य सब प्राणी मेरे ही प्रतिविम्ब हैं|
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परमात्मा प्रदत्त विवेक हमें प्राप्त है| उस विवेक के प्रकाश में ही उचित निर्णय लेकर सारे कार्य करने चाहिएँ|| वह विवेक ही हमें एक-दुसरे की पहिचान कराएगा और यह विवेक ही बताएगा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं|
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परमात्मा के संकल्प से सृष्टि बनी है अतः वे सब कर्मफलों से परे हैं| पर अपनी संतानों के माध्यम से वे ही उनके फलों को भी भुगत रहे हैं|
हम कर्म फलों को भोगने के लिए अपने अहंकार और ममत्व के कारण बाध्य हैं|
माया के बंधन शाश्वत नहीं हैं, उनकी कृपा से एक न एक दिन वे भी टूट जायेंगे| वे आशुतोष हैं, प्रेम और कृपा करना उनका स्वभाव है| वे अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते|
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परमात्मा के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है, जिसके लिए वे भी तरसते हैं, और वह है ..... हमारा प्रेम|
कभी न कभी तो हमारे प्रेम में भी पूर्णता आएगी, और कृपा कर के हमसे वे हमारा समर्पण भी करवा लेंगे|
कोई भी पिता अपने पुत्र के बिना सुखी नहीं रह सकता| जितनी पीड़ा हमें उनसे वियोग की है, उससे अधिक पीड़ा उनको भी है| वे भी हमारे बिना नहीं रह सकते| एक न एक दिन तो वे आयेंगे ही| अवश्य आयेंगे|
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हे परम प्रिय प्रभु, हमारे प्रेम में पूर्णता दो, हमारी कमियों को दूर करो| अज्ञानता में किये गए कर्मों के फलों से मुक्त करो| ॐ ॐ ॐ ||

जब तक पाशों से बँधे हैं तब तक हम पशु ही हैं | पाशों से कैसे मुक्त हों ? अमानित्व को कैसे प्राप्त हों ?

बात "पाशों" की चल रही थी | बहुत सारे "पाश" हैं जिन से बंध कर हम "पशु" बने हुए हैं |
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(1) पहला सबसे बड़ा पाश जिसने हमें पशु बना रखा है वह है ..... "काम वासना"|
"काम" और "राम" दोनों विपरीत बिंदु हैं |
"जहाँ राम तहँ काम नहीं, जहाँ काम नहीं राम |
तुलसी कबहूँ होत है, रवि रजनी एक धाम ||"
जिस प्रकार सूर्य और रात्री एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही काम और राम एक साथ नहीं रह सकते | यह जीवन भी काम से राम के बीच की यात्रा है |
मनुष्य के सूक्ष्म शरीर में वासनाएँ नीचे के तीन चक्रों में रहती हैं | गुरु का स्थान आज्ञाचक्र ओर सहस्त्रार के मध्य है | परमात्मा की अनुभूति सहस्त्रार से भी ऊपर होती है |
परमात्मा के मार्ग में काम-वासना सबसे बड़ी बाधा है| कामजयी ही राम को पा सकता है | जिसने काम जीता, उसने जगत को जीता | ब्रह्मचर्य सबसे बड़ा तप है, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं |
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(2) दूसरा पाश है .... राग-द्वेष | इसे समझना थोड़ा कठिन है | फिर भी शांत मन से चिंतन किया जाए तो यह समझ में आ जाता है |
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(3) तीसरा पाश है ... अहंकार | क्रोध इसी का भाई है | और भी छोटे-मोटे इसके कई साथी हैं |
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इन सब पाशों में जो बंधा है वह पशु है |
इन सब पाशों से मुक्त होकर अपने सच्चिदानंद स्वरुप में स्थित होना ही "मुक्ति" है, और उपरोक्त पाशों से से मुक्त होना ही "ज्ञान" है |
जो इन पाशों से मुक्त है वही वास्तविक "ज्ञानी" है |
जो विद्या हमें इस मार्ग पर ले चलती है वही "पराविद्या" है और जो उसका उपदेश देकर हमें साथ ले चलता है वही "सद्गगुरु" है |
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ॐ तत्सत् ! बहुत बड़ी बात कर गया जो नहीं करनी चाहिए थी | छोटे मुंह बड़ी बात हो गयी | कुछ अधिक ही कह गया जिसके लिए क्षमा चाहता हूँ |
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आप सब मेरी निजात्मा हो, परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हो, सच्चिदानंद स्वरुप हो | आप सब को नमन ! भगवान "पशुपति" सदाशिव हम सबका कल्याण करें |
ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

भिखारियों को दुत्कारें नहीं ............

भिखारियों को दुत्कारें नहीं ............
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कभी कोई आपसे भीख माँगता है तो भिखारी को दुत्कारें नहीं, उसका तिरस्कार और उससे घृणा भी न करें| आप भीख न देना चाहें तो प्रेम से मना कर दीजिये|
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ये भिखारी अपने पूर्व जन्म में बहुत बड़े बड़े हर विभाग के अधिकारी, कर्मचारी और राजनेता थे, जिनकी माँगने की आदत नहीं गयी तो भगवान ने इस जन्म में उनकी ड्यूटी यहाँ लगा दी| इनसे भी कभी दुनियाँ डरती थी| आज भी जो लोग जनता को दुखी और विवश कर घूस लेते हैं उनकी भी यहीं ड्यूटी लगने वाली है|
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जो दूसरों को पीड़ा देते हैं और दूसरों पर अत्याचार करते हैं उनकी ड्यूटी तो अति कष्टप्रद पशुयोनी में लगनी निश्चित है| पराये धन को हड़पने वाले भी सब निश्चित रूप से पशु योनी में जाते हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
September 14, 2015

ढाका (बांग्लादेश) में बही खून की नदी ......

September 13 at 9:58pm ·2016
ढाका (बांग्लादेश) में बही खून की नदी ......
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अभी नेट पर समाचार देख रहा था कि बांग्लादेश की एक फोटो और समाचार देख कर स्तब्ध रह गया| आज बक़रीद पर कुर्बानी दिए हुए गायों और बकरों का रक्त वर्षा के जल से मिलकर ढाका की सडकों पर बह निकला| पूरी सड़कें खून से लाल हो गईं और कटे हुए जानवरों के अंग सारे नगर में बिखर गए| खून की नदी का बहना इतिहास में तो पढ़ा था पर समाचारों में पहली बार देखा|
नीचे उस समाचार की लिंक दे रहा हूँ| निम्न लिंक को दबाइए| सारी फोटो और समाचार आ जायेंगे|
http://tinyurl.com/hsarpck
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अरबी भाषा में "बकरा" का अर्थ "गाय" (Cow) होता है .....
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उत्सुकतावश गूगल पर अरबी के "बकरा" शब्द का अर्थ देख रहा था| गूगल पर टंकण किया .... Al Baqarah तो स्तब्ध रह गया देखकर कि अरबी में "बकरा" शब्द का अर्थ "गाय" (Cow) होता है| सामने बहुत सारी वेब साइट्स आईं| कई अरबी में थीं और कोई अंग्रेजी में| वहाँ पर देखकर यह पक्का हो गया कि जिस त्योहार को मैं बकरे की कुर्बानी देने की बजह से "बकरा-ईद" समझता था, वह वास्तविकता में "गाय" की कुर्बानी का त्योहार है|
नीचे अंग्रेजी की एक वेब साईट की लिंक भी दे रहा हूँ| जिसे दबाकर आप देख सकते हैं|
http://www.noblequran.com/translation/surah2.html
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हमें सभी का सम्मान करना चाहिए| आप सब से प्रार्थना है कि कोई नकारात्मक टिप्पणी ना करे|
सभी का कल्याण हो | ॐ ॐ ॐ !!