Friday 16 September 2016

विचित्र लीला ........

विचित्र लीला ........
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यह संसार एक ऐसी विचित्र लीला है जिसे समझना बुद्धि की क्षमता से परे है|
सभी प्राणी परमात्मा के ही अंश हैं, और परमात्मा ही कर्ता है| हमारा भी एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से ही है|
हम एक-दूसरे के रूप में स्वयं से ही विभिन्न रूपों में मिलते रहते हैं|
एकमात्र "मैं" ही हूँ, दूसरा अन्य कोई नहीं है| अन्य सब प्राणी मेरे ही प्रतिविम्ब हैं|
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परमात्मा प्रदत्त विवेक हमें प्राप्त है| उस विवेक के प्रकाश में ही उचित निर्णय लेकर सारे कार्य करने चाहिएँ|| वह विवेक ही हमें एक-दुसरे की पहिचान कराएगा और यह विवेक ही बताएगा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं|
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परमात्मा के संकल्प से सृष्टि बनी है अतः वे सब कर्मफलों से परे हैं| पर अपनी संतानों के माध्यम से वे ही उनके फलों को भी भुगत रहे हैं|
हम कर्म फलों को भोगने के लिए अपने अहंकार और ममत्व के कारण बाध्य हैं|
माया के बंधन शाश्वत नहीं हैं, उनकी कृपा से एक न एक दिन वे भी टूट जायेंगे| वे आशुतोष हैं, प्रेम और कृपा करना उनका स्वभाव है| वे अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते|
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परमात्मा के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है, जिसके लिए वे भी तरसते हैं, और वह है ..... हमारा प्रेम|
कभी न कभी तो हमारे प्रेम में भी पूर्णता आएगी, और कृपा कर के हमसे वे हमारा समर्पण भी करवा लेंगे|
कोई भी पिता अपने पुत्र के बिना सुखी नहीं रह सकता| जितनी पीड़ा हमें उनसे वियोग की है, उससे अधिक पीड़ा उनको भी है| वे भी हमारे बिना नहीं रह सकते| एक न एक दिन तो वे आयेंगे ही| अवश्य आयेंगे|
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हे परम प्रिय प्रभु, हमारे प्रेम में पूर्णता दो, हमारी कमियों को दूर करो| अज्ञानता में किये गए कर्मों के फलों से मुक्त करो| ॐ ॐ ॐ ||

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