Friday, 16 September 2016

जब तक पाशों से बँधे हैं तब तक हम पशु ही हैं | पाशों से कैसे मुक्त हों ? अमानित्व को कैसे प्राप्त हों ?

बात "पाशों" की चल रही थी | बहुत सारे "पाश" हैं जिन से बंध कर हम "पशु" बने हुए हैं |
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(1) पहला सबसे बड़ा पाश जिसने हमें पशु बना रखा है वह है ..... "काम वासना"|
"काम" और "राम" दोनों विपरीत बिंदु हैं |
"जहाँ राम तहँ काम नहीं, जहाँ काम नहीं राम |
तुलसी कबहूँ होत है, रवि रजनी एक धाम ||"
जिस प्रकार सूर्य और रात्री एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही काम और राम एक साथ नहीं रह सकते | यह जीवन भी काम से राम के बीच की यात्रा है |
मनुष्य के सूक्ष्म शरीर में वासनाएँ नीचे के तीन चक्रों में रहती हैं | गुरु का स्थान आज्ञाचक्र ओर सहस्त्रार के मध्य है | परमात्मा की अनुभूति सहस्त्रार से भी ऊपर होती है |
परमात्मा के मार्ग में काम-वासना सबसे बड़ी बाधा है| कामजयी ही राम को पा सकता है | जिसने काम जीता, उसने जगत को जीता | ब्रह्मचर्य सबसे बड़ा तप है, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं |
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(2) दूसरा पाश है .... राग-द्वेष | इसे समझना थोड़ा कठिन है | फिर भी शांत मन से चिंतन किया जाए तो यह समझ में आ जाता है |
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(3) तीसरा पाश है ... अहंकार | क्रोध इसी का भाई है | और भी छोटे-मोटे इसके कई साथी हैं |
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इन सब पाशों में जो बंधा है वह पशु है |
इन सब पाशों से मुक्त होकर अपने सच्चिदानंद स्वरुप में स्थित होना ही "मुक्ति" है, और उपरोक्त पाशों से से मुक्त होना ही "ज्ञान" है |
जो इन पाशों से मुक्त है वही वास्तविक "ज्ञानी" है |
जो विद्या हमें इस मार्ग पर ले चलती है वही "पराविद्या" है और जो उसका उपदेश देकर हमें साथ ले चलता है वही "सद्गगुरु" है |
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ॐ तत्सत् ! बहुत बड़ी बात कर गया जो नहीं करनी चाहिए थी | छोटे मुंह बड़ी बात हो गयी | कुछ अधिक ही कह गया जिसके लिए क्षमा चाहता हूँ |
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आप सब मेरी निजात्मा हो, परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हो, सच्चिदानंद स्वरुप हो | आप सब को नमन ! भगवान "पशुपति" सदाशिव हम सबका कल्याण करें |
ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

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