Sunday 8 April 2018

हमारा वास्तविक "स्व" तो परमात्मा है जिसकी चेतना में जीना हमारा स्वभाव है .....

हमारा वास्तविक "स्व" तो परमात्मा है जिसकी चेतना में जीना हमारा स्वभाव है .....
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निरंतर ब्रह्म-चिंतन और भक्ति ही हमारा स्वभाव है, अन्यथा हम अभाव ग्रस्त हैं| अभाव में जीने से हमारा पतन सुनिश्चित है| माया के विक्षेप और आवरण बहुत अधिक शक्तिशाली हैं जो हमें निरंतर अधोगामी बनाते है| सिर्फ भगवान की भक्ति और उनका ध्यान ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| जब हम स्वभाव में जीते हैं तब पूर्णतः सकारात्मक होते हैं, अन्यथा बहुत अधिक नकारात्मक| हमारा वास्तविक "स्व" तो परमात्मा है, जिनकी चेतना में जीना हमारा वास्तविक और सही स्वभाव है| हम अपने स्वभाव में जीएँ और स्वभाव के विरुद्ध जो कुछ भी है उसका परित्याग करें|
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निरंतर अभ्यास करते करते परमात्मा व गुरु की असीम कृपा से निरंतर ब्रह्म-चिंतन और भक्ति ही हमारा स्वभाव बन जाता है| जब भगवान ह्रदय में आकर बैठ जाते हैं तब वे फिर बापस नहीं जाते| यह स्वाभाविक अवस्था कभी न कभी तो सभी को प्राप्त होती है| सरिता प्रवाहित होती है, पर किसी के लिए नहीं| प्रवाहित होना उसका स्वभाव है| व्यक्ति .. स्वयं में जब परमात्मा को व्यक्त करना चाहता है, यह उसका स्वभाव है|
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जो लोग सर्वस्व यानि समष्टि की उपेक्षा करते हुए इस मनुष्य देह के हित की ही सोचते हैं, प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करती| वे सब दंड के भागी होते हैं| समस्त सृष्टि ही अपना परिवार है और समस्त ब्रह्माण्ड ही अपना घर| यह देह रूपी वाहन और यह पृथ्वी भी बहुत छोटी है अपने निवास के लिए| अपना प्रेम सर्वस्व में पूर्णता से व्यक्त हो|
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्ति आप सब को सादर नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ अप्रेल २०१८

अंतरतम भाव कभी व्यक्त नहीं हो सकते .....

अंतरतम भाव कभी व्यक्त नहीं हो सकते .....
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प्रिय निजात्मगण, आज अपनी जिन अनुभूतियों को मैं व्यक्त करना चाहता हूँ उन्हें व्यक्त करने का सामर्थ्य या क्षमता मुझमें नहीं है| उन्हें शब्दों का रूप नहीं दे सकता| भविष्य में भी कभी नहीं दे पाऊँगा| शब्दों की एक सीमा होती है, पर यह अनुभूति और भाव अथाह है| सामने ईश्वर का अनंत साम्राज्य है जहाँ से पीछे मुड़ कर देखना असम्भव है| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०१८

पूजा में नारियल का महत्व .....

जब कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करते हैं तब पूजा में एक पानी वाला नारियल अवश्य रखा जाता है| इसे एक जल से भरे कलश पर रखते हैं| कलश पर रखने से पूर्व इस पर कलावा बाँध कर कुमकुम से अर्चना भी करते हैं| यदि उपलब्ध हो तो अशोक की पत्तियों से कलश को सजाते भी हैं| कलश की भी पूजा होती है| यह परम्परा मैंने पूरे भारत में सभी हिन्दुओं में देखी है| इसके बिना कोई भी विशेष पूजा नहीं होती| ऐसा हम लोग लक्ष्मी जी के आशीर्वाद और कृपा के लिए करते हैं| इस से सारे वास्तु दोष भी दूर हो जाते हैं|

साथ साथ कलश के सामने गणेश पूजन के लिए एक साबुत सुपारी पर कलावा बांधकर कुमकुम से अर्चित कर के रखते हैं| इस से गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पूजा निर्विघ्न संपन्न होती है| इन के पीछे वैज्ञानिक कारण भी अवश्य हैं तभी तो यह परम्परा हजारों वर्षों से चली आ रही है|

७ अप्रेल २०१८

मानवीय चेतना से ऊपर उठें .....

मानवीय चेतना से ऊपर उठें .....
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मानवीय चेतना से ऊपर उठ कर देवत्व में स्वयं को स्थापित करने का कोई न कोई मार्ग तो अवश्य ही होगा| हमें अपने जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बनाना ही पड़ेगा| वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की बुद्धि का तो खूब विकास हो रहा है पर अन्य सद् गुणों का अधिक नहीं| मूक और निरीह प्राणियों पर क्रूर अत्याचार और अधर्म का आचरण प्रकृति कब तक सहन करेगी? मनुष्य का लोभ और अहंकार अपने चरम पर है| कभी भी महाविनाश हो सकता है| धर्म का थोड़ा-बहुत आचरण ही इस महाभय से रक्षा कर सकेगा| हम स्वयं को यह शरीर समझ बैठे हैं यही पतन का सबसे बड़ा कारण है| इस विषय पर कुछ मंथन अवश्य करें|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
६ अप्रेल २०१७

भगवान के ध्यान से क्या प्राप्त होता है ? ....

भगवान के ध्यान से क्या प्राप्त होता है ? ....
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मेरा उत्तर स्पष्ट है कि कुछ भी प्राप्त नहीं होता, जो कुछ पास में है वह भी चला जाता है| ध्यान साधना एक समर्पण की साधना है, कुछ प्राप्त करने की नहीं| यह अपना अहंकार और सर्वस्व परमात्मा में समर्पित करने का प्रयास है, बदले में कुछ प्राप्त करने का नहीं| कुछ अभ्यास के पश्चात कर्ताभाव भी समाप्त हो जाता है| कुछ बनने की या कुछ पाने की कामना ही नष्ट हो जाती है| हाँ, एकमात्र फल जो मिलता है वह है .... संतुष्टि, प्रेम और आनंद| अन्य कुछ पाने की कामना भी मत करना, अन्यथा घोर निराशा प्राप्त होगी|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ
६ अप्रेल २०१७

तीज त्योहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .......

तीज त्योहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .......
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होली के दूसरे दिन से ही नित्य अनेक घरों में मंगल गीत गाये जा रहे थे| सभी नवविवाहिताएँ अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए, और कुँआरी कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए गणगौर के रूप में पार्वती-शिव की उपासना कर रही थीं|

आज उस अठारह दिन के उपासना पर्व का अवसान हो गया है| आज नवविवाहिता सौभाग्याकांक्षिणी महिलाओं ने और कन्याओं ने खूब उत्साह से गणगौर की पूजा की, और प्रतीकात्मक मिट्टी की मूर्तियों को तालाबों या बावड़ियों में प्रवाहित कर दिया|

अब भयंकर गर्मी का मौसम आ जाएगा और कई दिनों तक तीज त्यौहार नहीं आयेंगे| उलाहना के रूप में इसीलिए यह कहावत पडी ...."तीज त्योहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर"|


९ अप्रेल २०१६

महान बनने के लिए स्वयं को महत् तत्व यानि सर्वव्यापी परमात्मा से जुड़ना होगा ........

महान बनने के लिए स्वयं को महत् तत्व यानि सर्वव्यापी परमात्मा से जुड़ना होगा ........
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जो महत् तत्व से जुड़ी है वह आत्मा ही महात्मा है, न कि अन्य कोई| महत् तत्व से जुड़ा व्यक्ति ही महान है| महत् तत्व है परमात्मा की अनन्तता और सर्वव्यापकता| हमें परमात्मा से जुड़ कर स्वयं को महान बनना होगा| सिर्फ बातों से हम महान नहीं बन सकते| एक छोटी और एक बड़ी लकीर साथ साथ हैं| छोटी लकीर बड़ी बननी चाहे तो उसे स्वयं को बड़ी बनाना होगा| दूसरी को छोटी बनाकर बड़ी बनने का प्रयास अंतत विफल होगा| बड़ा बनने के प्रयास में कोई पंजों के बल चले तो वह बड़ा नहीं कहलायेगा, ठोकर खाकर शीघ्र ही नीचे गिरेगा| सिर्फ आत्मप्रशंसा से कोई बड़ा नहीं बन सकता| ऐसे ही दुर्भावनावश या मतान्धतावश दूसरों का गला काटकर बड़ा बनने वाले कभी बड़े नहीं बन सकते| जिस अस्त्र-शस्त्र से वे दूसरों को मारते हैं उन्हीं अस्त्र-शस्त्रों से एक दिन वे स्वयं भी मारे जायेंगे| प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगी| कालखंड में स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे|
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वर्षा का जल पर्वतशिखर और तालाब पर समान रूप से ही गिरता है| यदि पर्वतशिखर का जल बहकर तालाब में आता है तो इसमें पर्वतशिखर का कोई दोष नहीं है| जो गिरा हुआ है उसे सब गिराते हैं और जो शिखर पर है उसको सब नमन करते हैं| हमें शिखर बनना होगा तभी हमारा वर्चस्व और सम्मान होगा| हमारा पतन हुआ हमारी सद्गुण विकृतियों से| जिस तरह व्यक्ति के कर्म होते हैं वैसे ही समाज और राष्ट्र के भी सामूहिक कर्म और उनके फल होते हैं जिनका परिणाम अवश्य मिलता है| ये हमारे कर्म ही थे जिनके कारण हमारा पतन हुआ और हम इतनी पीड़ाओं और कष्टों में से गुजरे हैं और हैं| हम उनसे आध्यात्मिकता द्वारा ही मुक्त हो सकते हैं| इसके लिए हमें स्वयं महान बनना होगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०१६

हमारा निश्चयपूर्वक किया हुआ दृढ़ संकल्प राष्ट्र की रक्षा कर सकता है .....

हमारा निश्चयपूर्वक किया हुआ दृढ़ संकल्प राष्ट्र की रक्षा कर सकता है .....
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जो साधना एक व्यक्ति अपने मोक्ष के लिए करता है वो ही साधना यदि वह धर्म और राष्ट्र के अभ्युदय के लिए करे तो निश्चित रूप से उसका भी कल्याण होगा| धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है| हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है धर्म और राष्ट्र की रक्षा जिसे हम परमात्मा को समर्पित होकर ही कर सकते हैं| हमें अपनी साधना में ''राष्ट्र और धर्म के कल्याण के लिए'' भी संकल्प जोड़ना चाहिए| इससे हमारी साधना से एक दैवीय शक्ति का प्रादुर्भाव होगा, जो हमें ''राष्ट्रहित'' में कार्य करने के लिए हमारे ''बल और बुध्दि'' को प्रखर करेगी| आज हमें आवश्यकता है एक ब्रह्म तेज की| जो इस बात को समझते हैं वे समझते हैं, जो नहीं समझते हैं उन्हें समझाया भी नहीं जा सकता| यह कार्य हम स्वयं के लिए नहीं अपितु भगवान के लिए कर रहे हैं| मोक्ष की हमें व्यक्तिगत रूप से कोई आवश्यकता नहीं है| आत्मा तो नित्य मुक्त है, बंधन केवल भ्रम मात्र हैं| ज्ञान की गति के साथ साथ हमें भारत की आत्मा का भी विस्तार करना होगा| यह परिवर्तन बाहर से नहीं भीतर से करना होगा|
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वर्तमान में जब धर्म और राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे है तब व्यक्तिगत कामना और व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु साधना उचित नहीं है| भारत की सभी समस्याओं का निदान हमारे भीतर है| एक बात ना भूलें कि भारत की आत्मा सनातन हिन्दू धर्म है| सनातन हिन्दू धर्म ही भारत की अस्मिता है| भारत का अस्तित्व ही सनातन धर्म के कारण है| सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो भारत भी नहीं बचेगा और यह सृष्टि भी नष्ट हो जाएगी| सनातन धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन धर्म है| निरंतर यह भाव रखें की आप स्वयं ही अखंड भारतवर्ष हैं और आप स्वयं ही सनातन धर्म हैं| पूरा भारत आपकी देह है जो विस्तृत होकर समस्त सृष्टि में फ़ैल गया है| आपकी हर साँस के साथ भारत का विस्तार हो रहा है, असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो रहा है, व भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हो रही है| आप का संकल्प परमात्मा का संकल्प है|
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एक व्यक्ति का दृढ़ संकल्प भी पूरी सृष्टि की दिशा बदल सकता है, फिर आप का संकल्प तो परमात्मा का संकल्प है| आप के शिव संकल्प के सम्मुख असत्य व अन्धकार की शक्तियों का नाश हो जाएगा| भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है| भारत एक ऐसे लोगों का समूह है जिनकी अभीप्सा और ह्रदय की तड़फ ऐसे लोगों की हैं जो जीवन में पूर्णता चाहते हैं, जो अपने नित्य जीवन में परमात्मा को व्यक्त करना चाहते हैं| भारत की आत्मा आध्यात्मिक है और एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति भारत का पुनरोत्थान करेगी|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ||
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०१२