Sunday 8 April 2018

पूजा में नारियल का महत्व .....

जब कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करते हैं तब पूजा में एक पानी वाला नारियल अवश्य रखा जाता है| इसे एक जल से भरे कलश पर रखते हैं| कलश पर रखने से पूर्व इस पर कलावा बाँध कर कुमकुम से अर्चना भी करते हैं| यदि उपलब्ध हो तो अशोक की पत्तियों से कलश को सजाते भी हैं| कलश की भी पूजा होती है| यह परम्परा मैंने पूरे भारत में सभी हिन्दुओं में देखी है| इसके बिना कोई भी विशेष पूजा नहीं होती| ऐसा हम लोग लक्ष्मी जी के आशीर्वाद और कृपा के लिए करते हैं| इस से सारे वास्तु दोष भी दूर हो जाते हैं|

साथ साथ कलश के सामने गणेश पूजन के लिए एक साबुत सुपारी पर कलावा बांधकर कुमकुम से अर्चित कर के रखते हैं| इस से गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पूजा निर्विघ्न संपन्न होती है| इन के पीछे वैज्ञानिक कारण भी अवश्य हैं तभी तो यह परम्परा हजारों वर्षों से चली आ रही है|

७ अप्रेल २०१८

1 comment:

  1. पूजा में कलश स्थापना की वैज्ञानिकता :: लेखक :पं.अभिषेक जोशी.

    वैज्ञानिक ज्ञान को प्रतीकों में बांधकर धार्मिक आस्था में ओत प्रोत कर देना हिंदू धर्म की विशेषता है। हिंदू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है बड़े यज्ञ अनुष्ठान में पुत्रवती सधवा महिलाएं बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती है उसे समय सृजन एवं मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है ।

    समुद्र मंथन की कथा बहुत प्रसिद्ध है समुद्र, जीवन और तमाम दिव्य रत्न और उपलब्धियों का स्तोत्र है । दैवीय अर्थात रचनात्मक और दानवीय अर्थात् ध्वंसात्मक शक्तियां इस समुद्र का मंथन मंदराचल शिखर पर्वत की मथानी और वासुकी नाग की रस्सी बनाकर करती है पहली दृष्टि में यह कपोल कल्पना या गल्प कथा लगती है क्योंकि पुराणों में अधिकांश कथाएं ऐसी ही है किंतु उनका मर्म बहुत गहरा है जीवन का अमृत तभी प्राप्त होता है जब हम विषपान की शक्ति और सूझबूझ रखते हैं यह श्रेष्ठ विचार इस कथा में समाहित है जिसे हम मंगल कलश द्वारा बार-बार पढ़ते हैं कलश पात्र जल से परिपूर्ण होता है जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव नागवल्ली द्वारा दिखाई देता है - जटाओं से युक्त ऊंचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा में बांधा रक्षा सूत्र वासुकी है यजमान और ऋत्विज दोनों ही मंथन करता है।

    पूजन के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है -
    कलशस्य मुखे विष्णु कण्ठे रुद्र समाश्रिताः,
    मुलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता।
    कुक्षोतु सागरा सर्वे सप्त द्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामवेदो अथर्वणा: अंगेशच सहिता सर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।।
    अर्थात सृष्टि के नियामक विष्णु रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्मांड रूपी कलश में व्याप्त हैं समस्त समुद्र द्वीप वसुंधरा ब्रह्मांड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहां इस कटका ब्रह्मांड दर्शन हो जाता है जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है वही तांबे के पात्र में जल विद्युत चुंबकीय उर्जावान बनता है । ऊंचा नारियल का फल ब्रह्मांड ऊर्जा (कॉस्मिक एनर्जी ) का संवाहक बनता है जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए बैटरी या कोषा होता है वैसे ही मंगल कलश ब्रह्मांडीय उर्जा संकेंद्रित करके उसे बहुगुणित कर आसपास विकिरित करने वाली एकीकृत कोषा है जो वातावरण को दिव्य बनाती है कच्चे सूत्रों का दक्षिणावर्ती वाला ऊर्जा वाले को धीरे-धीरे चारों ओर वर्तुलाकार संचालित करता है संभवत सूत्र अर्थात जो मौली या कलावा बांधा गया है वह विद्युत कुचालक होने के कारण ब्रह्मांड धाराओं का रोकता है ।

    इसीलिए मंगल कलश को सर्व प्रथम स्थान प्रदान किया गया है

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