जगन्माता .....
-----------
भारत में परमात्मा को पिता के रूप में और माता के रूप में भी माना जाता है| माँ में पिता की अपेक्षा प्रेम अति अधिक होता है| पिता का रूप विवेक प्रधान है तो माँ का रूप भाव प्रधान है| माँ की आराधना मुख्यतः राधा, सीता, उमा, दुर्गा, व दश महाविद्याओं के रूप में की जाती हैं|
यहाँ इस लेख में मैं दश महाविद्याओं में प्रथम महाविद्या काली के बारे में अति अति अति लघु चर्चा करूँगा|
.
जिसको सूर्य, चन्द्र और तारागण भी प्रकाशित नहीं कर सकते, अति भयंकर रूप से कड़कड़ाती हुई तीब्र चमकती हुई बिजली की रोशनी भी नहीं, फिर अग्नि की तो बात ही क्या है? ये सब तो उसी के तेज से ही प्रकाशमान हैं| जिस माँ के प्रकाश से समस्त नक्षत्रमंडल और ब्रह्मांड प्रकाशित हैं, उस माँ की महिमा के बारे में मुझ जैसे किसी अकिंचन का कुछ भी लिखना, सूर्य को दीपक दिखाने का प्रयास मात्र सा है, जिसके लिए यह अकिंचन क्षमा याचना करता है| पता नहीं जिनकी देह से समस्त सृष्टि प्रकाशित है, उनका नाम "काली" क्यों रख दिया?
.
सृष्टि की रचना के पीछे जो आद्यशक्ति है, जो स्वयं अदृश्य रहकर अपने लीला विलास से समस्त सृष्टि का संचालन करती हैं, समस्त अस्तित्व जो कभी था, है, और आगे भी होगा वह शक्ति माँ काली ही है| सृष्टि, स्थिति और संहार उनकी अभिव्यक्ति मात्र है| यह संहार नकारात्मक नहीं है, यह वैसे ही है जैसे एक बीज स्वयं अपना अस्तित्व खोकर एक वृक्ष को जन्म देता है| सृष्टि में कुछ भी नष्ट नहीं होता है, मात्र रूपांतरित होता है| यह रूपांतरण ही माँ का विवेक, सौन्दर्य और करुणा है| माँ प्रेम और करुणामयी है|
.
माँ के वास्तविक सौन्दर्य को तो गहन ध्यान में तुरीय चेतना में ही अनुभूत किया जा सकता है| उसकी साधना जिस साकार विग्रह रूप में की जाती है वह प्रतीकात्मक ही है|
.
माँ के विग्रह में चार हाथ है| अपने दो दायें हाथों में से एक से माँ सृष्टि का निर्माण कर रही है और एक से अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रही है| माँ के दो बाएँ हाथों में से एक में कटार है, और एक में कटा हुआ नरमुंड है जो संहार और स्थिति के प्रतीक है| ये प्रकृति के द्वंद्व और द्वैत का बोध कराते हैं|
.
माँ के गले में पचास नरमुंडों कि माला है जो वर्णमाला के पचास अक्षर हैं| यह उनके ज्ञान और विवेक के प्रतीक हैं|
.
माँ के लहराते हुए काले बाल माया के प्रतीक हैं| माँ के विग्रह में उनकी देह का रंग काला है क्योंकि यह प्रकाशहीन प्रकाश और अन्धकारविहीन अन्धकार का प्रतीक हैं, जो उनका स्वाभाविक काला रंग है| किसी भी रंग का ना होना काला होना है जिसमें कोई विविधता नहीं है|
.
माँ की दिगंबरता दशों दिशाओं और अनंतता की प्रतीक है|
.
उनकी कमर में मनुष्य के हाथ बंधे हुए हैं वे मनुष्य कि अंतहीन वासनाओं और अंतहीन जन्मों के प्रतीक हैं|
.
माँ के तीन आँखें हैं जो सूर्य चन्द्र और अग्नि यानि भूत भविष्य और वर्तमान की प्रतीक हैं|
.
माँ के नग्न स्तन समस्त सृष्टि का पालन करते हैं|
.
उनकी लाल जिह्वा रजोगुण की प्रतीक है जो सफ़ेद दाँतों यानि सतोगुण से नियंत्रित हैं|
.
उनकी लीला में एक पैर लेटे हुए भगवान शिव के वक्षस्थल को छू रहा है जो दिखाता है कि माँ अपने प्रकृति रूप में स्वतंत्र है पर शिव यानि पुरुष को छूते ही नियंत्रित हो जाती है|
.
माँ का रूप डरावना है क्योंकि वह किसी भी बुराई से समझौता नहीं करती, पर उसकी हँसी करुणा की प्रतीक है|
.
माँ इतनी करुणामयी है कि उनके प्रेमसिन्धु में हमारी हिमालय जैसी भूलें भी कंकड़ पत्थर से अधिक नहीं हो सकतीं| माँ से जब हम उनके चरणों में आश्रय माँगते हैं वे अपने हृदय में ही स्थान दे देती हैं| माँ कि यह करुणा और अनुकम्पा सब भक्तों पर सदा बनी रहती है|
.
जब तक हम उनके आश्रय में हैं तब तक जीवित हैं, उनके आश्रय से परे जो कुछ भी है वह मृत्यु है| उनके प्रेम के अतिरिक्त हमें अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
-----------
भारत में परमात्मा को पिता के रूप में और माता के रूप में भी माना जाता है| माँ में पिता की अपेक्षा प्रेम अति अधिक होता है| पिता का रूप विवेक प्रधान है तो माँ का रूप भाव प्रधान है| माँ की आराधना मुख्यतः राधा, सीता, उमा, दुर्गा, व दश महाविद्याओं के रूप में की जाती हैं|
यहाँ इस लेख में मैं दश महाविद्याओं में प्रथम महाविद्या काली के बारे में अति अति अति लघु चर्चा करूँगा|
.
जिसको सूर्य, चन्द्र और तारागण भी प्रकाशित नहीं कर सकते, अति भयंकर रूप से कड़कड़ाती हुई तीब्र चमकती हुई बिजली की रोशनी भी नहीं, फिर अग्नि की तो बात ही क्या है? ये सब तो उसी के तेज से ही प्रकाशमान हैं| जिस माँ के प्रकाश से समस्त नक्षत्रमंडल और ब्रह्मांड प्रकाशित हैं, उस माँ की महिमा के बारे में मुझ जैसे किसी अकिंचन का कुछ भी लिखना, सूर्य को दीपक दिखाने का प्रयास मात्र सा है, जिसके लिए यह अकिंचन क्षमा याचना करता है| पता नहीं जिनकी देह से समस्त सृष्टि प्रकाशित है, उनका नाम "काली" क्यों रख दिया?
.
सृष्टि की रचना के पीछे जो आद्यशक्ति है, जो स्वयं अदृश्य रहकर अपने लीला विलास से समस्त सृष्टि का संचालन करती हैं, समस्त अस्तित्व जो कभी था, है, और आगे भी होगा वह शक्ति माँ काली ही है| सृष्टि, स्थिति और संहार उनकी अभिव्यक्ति मात्र है| यह संहार नकारात्मक नहीं है, यह वैसे ही है जैसे एक बीज स्वयं अपना अस्तित्व खोकर एक वृक्ष को जन्म देता है| सृष्टि में कुछ भी नष्ट नहीं होता है, मात्र रूपांतरित होता है| यह रूपांतरण ही माँ का विवेक, सौन्दर्य और करुणा है| माँ प्रेम और करुणामयी है|
.
माँ के वास्तविक सौन्दर्य को तो गहन ध्यान में तुरीय चेतना में ही अनुभूत किया जा सकता है| उसकी साधना जिस साकार विग्रह रूप में की जाती है वह प्रतीकात्मक ही है|
.
माँ के विग्रह में चार हाथ है| अपने दो दायें हाथों में से एक से माँ सृष्टि का निर्माण कर रही है और एक से अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रही है| माँ के दो बाएँ हाथों में से एक में कटार है, और एक में कटा हुआ नरमुंड है जो संहार और स्थिति के प्रतीक है| ये प्रकृति के द्वंद्व और द्वैत का बोध कराते हैं|
.
माँ के गले में पचास नरमुंडों कि माला है जो वर्णमाला के पचास अक्षर हैं| यह उनके ज्ञान और विवेक के प्रतीक हैं|
.
माँ के लहराते हुए काले बाल माया के प्रतीक हैं| माँ के विग्रह में उनकी देह का रंग काला है क्योंकि यह प्रकाशहीन प्रकाश और अन्धकारविहीन अन्धकार का प्रतीक हैं, जो उनका स्वाभाविक काला रंग है| किसी भी रंग का ना होना काला होना है जिसमें कोई विविधता नहीं है|
.
माँ की दिगंबरता दशों दिशाओं और अनंतता की प्रतीक है|
.
उनकी कमर में मनुष्य के हाथ बंधे हुए हैं वे मनुष्य कि अंतहीन वासनाओं और अंतहीन जन्मों के प्रतीक हैं|
.
माँ के तीन आँखें हैं जो सूर्य चन्द्र और अग्नि यानि भूत भविष्य और वर्तमान की प्रतीक हैं|
.
माँ के नग्न स्तन समस्त सृष्टि का पालन करते हैं|
.
उनकी लाल जिह्वा रजोगुण की प्रतीक है जो सफ़ेद दाँतों यानि सतोगुण से नियंत्रित हैं|
.
उनकी लीला में एक पैर लेटे हुए भगवान शिव के वक्षस्थल को छू रहा है जो दिखाता है कि माँ अपने प्रकृति रूप में स्वतंत्र है पर शिव यानि पुरुष को छूते ही नियंत्रित हो जाती है|
.
माँ का रूप डरावना है क्योंकि वह किसी भी बुराई से समझौता नहीं करती, पर उसकी हँसी करुणा की प्रतीक है|
.
माँ इतनी करुणामयी है कि उनके प्रेमसिन्धु में हमारी हिमालय जैसी भूलें भी कंकड़ पत्थर से अधिक नहीं हो सकतीं| माँ से जब हम उनके चरणों में आश्रय माँगते हैं वे अपने हृदय में ही स्थान दे देती हैं| माँ कि यह करुणा और अनुकम्पा सब भक्तों पर सदा बनी रहती है|
.
जब तक हम उनके आश्रय में हैं तब तक जीवित हैं, उनके आश्रय से परे जो कुछ भी है वह मृत्यु है| उनके प्रेम के अतिरिक्त हमें अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||