एक सरल सी बात ....
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एक सीधी-सादी और सरलतम बात है जिसे कोई भी समझ सकता है| इसको समझने के लिए न तो किसी से कुछ पूछने की आवश्यकता है और न कहीं जाने की|
भारत का गरीब से गरीब और अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति भी इस बात को सदा से जानता आया है| यह बात दूसरी है कि आज हम जानते हुए भी इसे नकारने का प्रयास कर रहे हैं|
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हर क्रिया की प्रतिक्रया होती है| जब हम किसी की आँखों में झाँक कर देखते हैं तब वह भी हमारी आँखों में झाँक कर देखने को बाध्य हो जाता है| जब हम किसी पर्वत शिखर से किसी गहरी खाई में झाँकते हैं तब वह गहरी खाई भी हमारे में झाँकती है| पर्वत शिखरों को हम घूरते हैं तो वे भी हमें घूरने लगते हैं|
किसी से हम प्रेम या घृणा करते हैं तो वह भी स्वतः ही हम से वैसे ही करने लगता है| यह प्रकृति का स्वाभाविक नियम है| इसके लिए किसी प्रार्थना या अनुरोध की आवश्यकता नहीं है|
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इसी तरह जब हम परमात्मा से प्रेम करते हैं तो परमात्मा भी हम से प्रेम करने लगते हैं| हम उनकी सृष्टि को प्रेम करेंगे तो उनकी सृष्टि भी हमारे से प्रेम करेगी| हम उनको सर्वव्यापकता में अनुभूत करेंगे तो उनकी सर्वव्यापकता भी हमें अपने साथ एक कर लेगी|
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हम प्रेममय बन जाएँ, हम स्वयं ही परमात्मा का प्रेम बन जाएँ| इससे ऊँची और इससे बड़ी अन्य कोई उपलब्धी नहीं है| जब स्वयं परमात्मा ही हमसे प्रेम करने लगें तब हमें और क्या चाहिए ?????
एक बार प्रयास तो करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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एक सीधी-सादी और सरलतम बात है जिसे कोई भी समझ सकता है| इसको समझने के लिए न तो किसी से कुछ पूछने की आवश्यकता है और न कहीं जाने की|
भारत का गरीब से गरीब और अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति भी इस बात को सदा से जानता आया है| यह बात दूसरी है कि आज हम जानते हुए भी इसे नकारने का प्रयास कर रहे हैं|
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हर क्रिया की प्रतिक्रया होती है| जब हम किसी की आँखों में झाँक कर देखते हैं तब वह भी हमारी आँखों में झाँक कर देखने को बाध्य हो जाता है| जब हम किसी पर्वत शिखर से किसी गहरी खाई में झाँकते हैं तब वह गहरी खाई भी हमारे में झाँकती है| पर्वत शिखरों को हम घूरते हैं तो वे भी हमें घूरने लगते हैं|
किसी से हम प्रेम या घृणा करते हैं तो वह भी स्वतः ही हम से वैसे ही करने लगता है| यह प्रकृति का स्वाभाविक नियम है| इसके लिए किसी प्रार्थना या अनुरोध की आवश्यकता नहीं है|
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इसी तरह जब हम परमात्मा से प्रेम करते हैं तो परमात्मा भी हम से प्रेम करने लगते हैं| हम उनकी सृष्टि को प्रेम करेंगे तो उनकी सृष्टि भी हमारे से प्रेम करेगी| हम उनको सर्वव्यापकता में अनुभूत करेंगे तो उनकी सर्वव्यापकता भी हमें अपने साथ एक कर लेगी|
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हम प्रेममय बन जाएँ, हम स्वयं ही परमात्मा का प्रेम बन जाएँ| इससे ऊँची और इससे बड़ी अन्य कोई उपलब्धी नहीं है| जब स्वयं परमात्मा ही हमसे प्रेम करने लगें तब हमें और क्या चाहिए ?????
एक बार प्रयास तो करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!