Wednesday 21 September 2016

एक सरल सी बात ....

एक सरल सी बात ....
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एक सीधी-सादी और सरलतम बात है जिसे कोई भी समझ सकता है| इसको समझने के लिए न तो किसी से कुछ पूछने की आवश्यकता है और न कहीं जाने की|
भारत का गरीब से गरीब और अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति भी इस बात को सदा से जानता आया है| यह बात दूसरी है कि आज हम जानते हुए भी इसे नकारने का प्रयास कर रहे हैं|
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हर क्रिया की प्रतिक्रया होती है| जब हम किसी की आँखों में झाँक कर देखते हैं तब वह भी हमारी आँखों में झाँक कर देखने को बाध्य हो जाता है| जब हम किसी पर्वत शिखर से किसी गहरी खाई में झाँकते हैं तब वह गहरी खाई भी हमारे में झाँकती है| पर्वत शिखरों को हम घूरते हैं तो वे भी हमें घूरने लगते हैं|
किसी से हम प्रेम या घृणा करते हैं तो वह भी स्वतः ही हम से वैसे ही करने लगता है| यह प्रकृति का स्वाभाविक नियम है| इसके लिए किसी प्रार्थना या अनुरोध की आवश्यकता नहीं है|
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इसी तरह जब हम परमात्मा से प्रेम करते हैं तो परमात्मा भी हम से प्रेम करने लगते हैं| हम उनकी सृष्टि को प्रेम करेंगे तो उनकी सृष्टि भी हमारे से प्रेम करेगी| हम उनको सर्वव्यापकता में अनुभूत करेंगे तो उनकी सर्वव्यापकता भी हमें अपने साथ एक कर लेगी|
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हम प्रेममय बन जाएँ, हम स्वयं ही परमात्मा का प्रेम बन जाएँ| इससे ऊँची और इससे बड़ी अन्य कोई उपलब्धी नहीं है| जब स्वयं परमात्मा ही हमसे प्रेम करने लगें तब हमें और क्या चाहिए ?????
एक बार प्रयास तो करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

चरैवेति चरैवेति चरैवेति .....

चरैवेति चरैवेति चरैवेति .....
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कमलिनीकुलवल्लभ, मार्तंड, अंशुमाली, भगवान् भुवनभास्कर आदित्य जब अपने पथ पर निरंतर अग्रसर होते हैं तब मार्ग में क्या कहीं भी उन्हें तिमिर का कोई अवशेष मिलता है? उन्हें क्या इस बात की चिंता होती है कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है? वैसे ही अपनी चेतना में क्या घटित हो रहा है, कोई क्या सोचता है, कोई क्या कहता है इसकी परवाह ना करते हुए निरंतर अग्रसर चलते रहो, चलते रहो, चलते रहो| सामने अपना लक्ष्य ही रहे, अन्य कुछ नहीं|
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महत्व इस बात का नहीं है कि अपने साथ क्या हो रहा है या कोई क्या सोच रहा है, या कह रहा है| महत्व इस बात का है कि वे अनुभव हमें क्या बना रहे हैं| हर परिस्थिति कुछ ना कुछ सीखने का अवसर है| सूर्य की तरह चमकते हुए अपने लक्ष्य की आभा को निरंतर अपने सामने रखो, इधर उधर कुछ भी मत देखो, रुको मत और चलते रहो|
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दें| या तो यह देह ही रहेगी या लक्ष्य की प्राप्ति ही होगी| हमारे आदर्श भगवान भुवन भास्कर हैं जो निरतर प्रकाशमान और गतिशील हैं| उनकी तरह कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य की ज्योति को सतत् प्रज्ज्वलित रखो और उस दिशा में उसका अनुसरण करते हुए निरंतर अग्रसर रहो| हमारे महापुरुषों के अनुसार एक ना एक दिन हम पाएँगे कि वह ज्योतिषांज्योति हम स्वयं ही हैं |
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ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
22/09/2014

अंग्रेजी शासन से पूर्व भारत एक बार तो हिन्दू राष्ट्र हो गया था ......

अंग्रेजी शासन से पूर्व भारत एक बार तो हिन्दू राष्ट्र हो गया था ......
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एक बहुत बड़ा झूठ जो हमें पढ़ाया जाता है वह है कि अंग्रेजों से पूर्व भारत एक हज़ार वर्ष तक विदेशी आक्रान्ताओं यानि मुगलों का दास था| यह बिलकुल झूठ है|
मराठों और सिक्खों ने मुगलों की सत्ता को लाल किले की चारदिवारी के भीतर तक ही सीमित कर दिया था| लाल किले के बाहर कोई मुग़ल सत्ता नहीं थी|
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महाराजा रणजीत सिंह जी ने उस सारी भूमि जिस पर यह (ना)पाकिस्तान बना है, पूरा अफगानिस्तान, पूरा कश्मीर व तिब्बत तक का शासन अपने आधीन कर लिया था| मराठों ने सन १७२० ई. में ही अटक (अफगानिस्तान) पर एक बार तो भगवा फहरा दिया था| फिर एक अल्प काल के लिए पठानों का राज्य हुआ जिसे महाराजा रणजीतसिंह ने समाप्त कर अपने आधीन कर लिया था|
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पूरे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्षिण में खूब गहराई तक सत्ता मराठों के हाथ में आ गयी थी| दिल्ली के आसपास का क्षेत्र भी मराठों ने अपने आधीन कर लिया था|
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कर्णाटक में हरिहर राय (प्रथम) और बुक्का ने विजयनगर राज्य की स्थापना की जो विश्व का समृद्धतम राज्य था|
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(ना)पाकिस्तान तो एक नाजायज मुल्क है जिसे अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह जी की भूमि पर खडा कर दिया था|
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छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, बालाजी बाजीराव और महाराजा रणजीत सिंह जी जैसे महान योद्धा विश्व में अन्यत्र नहीं हुए| क्या बादल और फत्ता जैसे वीर किसी अन्य राष्ट्र में हुए हैं?
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हमारा इतिहास गौरव का है| भारत ने दासता कभी भी स्वीकार नहीं की, अपितु निरंतर पराधीनता के विरुद्ध संघर्ष किया|
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एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब हम सत्य इतिहास को जान सकेंगे| भारत का वर्त्तमान इतिहास तो भारत के शत्रुओं ने लिखा है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!