Wednesday 21 September 2016

चरैवेति चरैवेति चरैवेति .....

चरैवेति चरैवेति चरैवेति .....
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कमलिनीकुलवल्लभ, मार्तंड, अंशुमाली, भगवान् भुवनभास्कर आदित्य जब अपने पथ पर निरंतर अग्रसर होते हैं तब मार्ग में क्या कहीं भी उन्हें तिमिर का कोई अवशेष मिलता है? उन्हें क्या इस बात की चिंता होती है कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है? वैसे ही अपनी चेतना में क्या घटित हो रहा है, कोई क्या सोचता है, कोई क्या कहता है इसकी परवाह ना करते हुए निरंतर अग्रसर चलते रहो, चलते रहो, चलते रहो| सामने अपना लक्ष्य ही रहे, अन्य कुछ नहीं|
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महत्व इस बात का नहीं है कि अपने साथ क्या हो रहा है या कोई क्या सोच रहा है, या कह रहा है| महत्व इस बात का है कि वे अनुभव हमें क्या बना रहे हैं| हर परिस्थिति कुछ ना कुछ सीखने का अवसर है| सूर्य की तरह चमकते हुए अपने लक्ष्य की आभा को निरंतर अपने सामने रखो, इधर उधर कुछ भी मत देखो, रुको मत और चलते रहो|
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दें| या तो यह देह ही रहेगी या लक्ष्य की प्राप्ति ही होगी| हमारे आदर्श भगवान भुवन भास्कर हैं जो निरतर प्रकाशमान और गतिशील हैं| उनकी तरह कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य की ज्योति को सतत् प्रज्ज्वलित रखो और उस दिशा में उसका अनुसरण करते हुए निरंतर अग्रसर रहो| हमारे महापुरुषों के अनुसार एक ना एक दिन हम पाएँगे कि वह ज्योतिषांज्योति हम स्वयं ही हैं |
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ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
22/09/2014

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