Tuesday, 17 August 2021

शरणागत तो होना ही पड़ेगा ---

भगवान की माया के आवरण को भेदना और उस के विक्षेपों से बचना किसी भी संसारी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है| थक-हार कर उसे शरण लेनी ही पड़ती है| भगवान कहते हैं ...

"दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया| मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते||७:१४||"
अर्थात यह दैवी त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है| परन्तु जो मेरी शरण में आते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं||
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धर्म और अधर्म की समझ स्वयं भगवान ही अच्छी तरह जानते हैं| अपना मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार ... सब कुछ उन को समर्पित करना ही होगा| भगवान कहते हैं ...
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
अर्थात सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो||
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और कोई विकल्प नहीं है| जितना शीघ्र उनकी शरण में चले जाओ उतना ही अच्छा है| यह जीवन एक वेगवती नदी के समान है जो बहुत तीब्र गति से बह रही है| उसका प्रवाह कभी बापस नहीं लौटता|
ॐ ॐ ॐ !!
"अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान |
जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन ||"
१७ अगस्त २०२०

जैसे नदी का लक्ष्य महासागर है, वैसे ही हमारा लक्ष्य परमात्मा है ---

 

नदी की धारा की तरह प्रवाहित जीवन कभी पीछे नहीं लौटता। जैसे नदी का लक्ष्य महासागर है, वैसे ही हमारा लक्ष्य परमात्मा है। दृष्टि अपने लक्ष्य पर ही टिकी रहे तो शीघ्रातिशीघ्र हमारा वहाँ पहुँचना सुनिश्चित है। इधर-उधर झाँकना समय की बर्बादी है।

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चारों ओर छाए असत्य के अंधकार को परमात्मा की ज्योति जलाकर ही दूर किया जा सकता है। भीतर का अंधकार दूर होगा तो बाहर का भी होगा। जहाँ परमात्मा का प्रकाश है, वहाँ अंधकार नहीं टिक सकता। मायाजाल से बचने के लिए भगवान की शरण लेनी ही पड़ेगी।
भगवान कहते हैं --
"दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥७:१४॥"
अर्थात् - यह दैवी त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है। परन्तु जो मेरी शरण में आते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं॥
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सब कुछ समर्पित करना ही पड़ेगा।
भगवान कहते हैं --
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
अर्थात् - सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो॥
(इस श्लोक का एक बहुत ही गहन अर्थ कुछ दिन पूर्व बता चुका हूँ)
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और कोई विकल्प नहीं है। जितना शीघ्र शरणागत होकर उनको समर्पित हो जाओ, उतना ही अच्छा है। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१७ अगस्त २०२१