भगवान की माया के आवरण को भेदना और उस के विक्षेपों से बचना किसी भी संसारी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है| थक-हार कर उसे शरण लेनी ही पड़ती है| भगवान कहते हैं ...
"दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया| मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते||७:१४||"
अर्थात यह दैवी त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है| परन्तु जो मेरी शरण में आते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं||
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धर्म और अधर्म की समझ स्वयं भगवान ही अच्छी तरह जानते हैं| अपना मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार ... सब कुछ उन को समर्पित करना ही होगा| भगवान कहते हैं ...
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
अर्थात सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो||
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और कोई विकल्प नहीं है| जितना शीघ्र उनकी शरण में चले जाओ उतना ही अच्छा है| यह जीवन एक वेगवती नदी के समान है जो बहुत तीब्र गति से बह रही है| उसका प्रवाह कभी बापस नहीं लौटता|
ॐ ॐ ॐ !!
"अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान |
जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन ||"
१७ अगस्त २०२०