जो कुछ भी हमें प्राप्त होता है, यहाँ तक कि परमात्मा की प्राप्ति भी "श्रद्धा और विश्वास" से ही होती है| रामचरितमानस के आरंभ में मंगलाचरण में ही बताया गया है .....
Wednesday, 9 June 2021
भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण हमारे सब दुःख दूर करें ---
भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण हमारे सब दुःख दूर करें .....
साधु, सावधान !! सामने नर्क-कुंड की अग्नि है ---
साधु, सावधान !! सामने नर्क-कुंड की अग्नि है ---
बिना भक्ति के भगवान नहीं मिल सकते ---
बिना भक्ति के भगवान नहीं मिल सकते। अन्य साधन भी तभी सफल होते हैं, जब ह्रदय में भक्ति होती है। "मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा, किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।" जीवन का हर अभाव एक रिक्त स्थान है, जिसकी पूर्ति भगवान की भक्ति से ही हो सकती है। भक्ति-सूत्रों में भक्ति को परमप्रेम कहा गया है। प्रेम हमारा स्वभाव है। अतः भक्ति हमारा स्वभाव है।
एक अनुभवजन्य पुरानी स्मृति --- (हनुमान का अर्थ)
हनुमान का अर्थ -- अपने मान को नष्ट करना है। जिस ने अपने अहं यानि अभिमान को नष्ट कर दिया है, वही हनुमान है। भक्ति और सेवा के क्षेत्र में हनुमान जी हम सब के आदर्श हैं। भक्ति और सेवाभाव हो तो हनुमान जी जैसा हो। एक बार ध्यान करते-करते बड़ा आनंददायक अनुभव हुआ जिसमें लगा कि मेरा सारा शरीर जल कर भस्म हो गया है, सिर्फ मेरुदंड ही बचा है, और कुछ भी नहीं है। मेरुदंड में भी सिर्फ सुषुम्ना नाड़ी ही बची थी। अचानक हनुमान जी का स्मरण हुआ और वे मूलाधार चक्र में प्रकट हुये और बड़ी शान से सभी चक्रों को पार करते-करते सहस्त्रार तक पहुँच गए। वहाँ कुछ देर रुक कर भगवान को प्रणाम कर के सुषुम्ना मार्ग से बापस नीचे आये और बिना रुके फिर बापस ऊपर चले गए। पाँच-छः बार उन्होने इस तरह की परिक्रमा की और अचानक ही बचा-खुचा सब कुछ जलाकर भस्म कर दिया, और चले गए। अब न तो मेरा शरीर था, न मेरुदंड, सहस्त्रार भी नहीं। कुछ भी नहीं बचा था। सब कुछ जलकर भस्म हो गया था।
सीतां नतोहं रामवल्लभाम् ---
सीतां नतोहं रामवल्लभाम् ---
हमारा एकमात्र शाश्वत सम्बन्ध भगवान से है, अन्य किसी से भी नहीं ---
हमारा एकमात्र शाश्वत सम्बन्ध भगवान से है, अन्य किसी से भी नहीं ---
साधना स्वयं को ही करनी होगी. दूसरा अन्य कोई भी नहीं है ---
किसी भी आचार्य, साधू, संत, महात्मा का स्वयं का आचरण कैसा है, और उन के अनुयायी आध्यात्मिक रूप से कितने उन्नत हैं? -- यही मापदंड है उनकी महत्ता का। किसी के पास जाते ही स्वतः ही भक्ति जागृत हो जाये, शांति मिले, व सुषुम्ना नाड़ी चैतन्य हो जाये, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से एक महात्मा है। जिसमें लोभ और अहंकार भरा हुआ है, वह साधु नहीं हो सकता।
यह न्यू वर्ल्ड ऑर्डर क्या है? ---
यह "New World Order" क्या है? ये बड़े ही भ्रामक शब्द हैं। हो सकता है यह भविष्य की किसी संभावित नई राजनीतिक व्यवस्था का सूचक हो, लेकिन अब तक तो अमेरिका व यूरोप के दानव सेठों, सरकारों और अन्य साम्राज्यवादियों ने अपने छल-कपट व षड़यंत्रों से इन शब्दों का प्रयोग दुनियाँ को ठगने के लिए ही किया है। भारत इसका बहुत अधिक व बुरी तरह शिकार रहा है।
.दवा पहले बन जाती है, बीमारी बाद में फैलाई जाती है। दुनिया को कूटनीति, भय व प्रलोभन से मजबूर किया जाता है कि उसी दवा को लें। जब पूंजीपति दानव सेठों की तिजोरियाँ भर जाती हैं, तब उस दवा को बेकार बता कर कुछ और नई चीज ले आई जाती हैं। दुनियाँ मरे तो मरे।
मेरी उपासना, और मेरा स्वधर्म ---
मेरी उपासना, और मेरा स्वधर्म ---
श्रीमद्भगवद्गीता मेरा ही नहीं, सारे भारत का और हम सबका प्राण है ---
श्रीमद्भगवद्गीता मेरा ही नहीं, सारे भारत का और हम सबका प्राण है ---
यज्ञानां जपयज्ञोsस्मि ---
भक्ति का स्थान सर्वोपरि है, अन्य सब गौण हैं ---
भक्ति का स्थान सर्वोपरि है, अन्य सब गौण हैं ---
कर्मफलों से कोई बच नहीं सकता ---
११ अगस्त १९७९ को मोछू बांध के अचानक टूटने से गुजरात के मोरवी नगर में भयानक बाढ़ आई थी। हजारों लोग मरे। लाशों की सड़न इतनी भयंकर थी कि प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिये| पूरे देश से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सैंकड़ों स्वयंसेवक वहाँ पहुंचे और लाशों के अंतिक संस्कार किए।
किसी भी परिस्थिति में "सत्य" और "धर्म" पर सदा अडिग रहें ---
किसी भी परिस्थिति में "सत्य" और "धर्म" पर सदा अडिग रहें। जीवन में कैसी भी दुःख और कष्टों से भरी परिस्थिति हो, उसमें सत्य का त्याग न करें, और धर्म पर अडिग रहें। रामायण में भगवान श्रीराम और भगवती सीताजी; महाभारत ग्रंथ में वर्णित -- पांडवों-द्रोपदी, नल-दमयंती, व सावित्री-सत्यवान को प्राप्त हुए कष्ट यही सत्य सिखाते हैं कि जीवन के उद्देश्य "पूर्णता" को प्राप्त करने के लिए कष्ट उठाने ही पड़ते हैं।