Wednesday 9 June 2021

सीतां नतोहं रामवल्लभाम् ---

 सीतां नतोहं रामवल्लभाम् ---

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जगन्माता एक ही हैं, सभी रूप उन्हीं के हैं। अपने-अपने स्वभाव के अनुसार उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों में से कोई सी एक हमें प्रिय लगती हैं। महात्माओं के मुख से सुना है कि जब परमशिव परमात्मा ने संकल्प किया कि -- "एकोsहं बहुस्याम्", तब ऊर्जा और प्राण की उत्पत्ति हुई। ऊर्जा से जड़ पदार्थों का निर्माण हुआ, और प्राण से उनमें चैतन्यता आई। दोनों के ही पीछे परमशिव का संकल्प है। वे इन दोनों से ही परे हैं।
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प्राण-तत्व ही जगन्माता है। प्राण-तत्व ही माँ का रूप है, और प्राण-तत्व ही शक्ति है। प्राण के बिना सब निर्जीव हैं। तंत्र-मार्ग के बहुत बड़े एक ज्ञानी सिद्ध महात्मा के साथ मैं दो बार कुछ सीखने के उद्देश्य से कई दिनों तक रहा था। उनसे बहुत कुछ सीखा। उन्होने ही मुझे समझाया था कि पंचप्राणों के पाँच सौम्य, और पाँच उग्र रूप ही दस महाविद्यायें हैं; गणेश जी का विग्रह -- ओंकार का प्रतीक है; और गणेश जी स्वयं ओंकार हैं, जिनके गण -- ये पंचप्राण हैं।
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विद्वान लोग "योग" के बारे में कुछ भी कहें, लेकिन योगियों के अनुसार -- महाशक्ति कुंडलिनी का परमशिव के साथ मिलन ही योग है। महाशक्ति कुंडलिनी -- प्राण-तत्व का ही घनीभूत रूप है।
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लौकिक जगत में आराधना के लिए हमें जगन्माता के किसी न किसी विग्रह की आवश्यकता पड़ती ही है। इसकी आवश्यकता मैं स्वयं अनुभूत करता था। एक बार यही गहन चिंतन कर रहा था कि माता का कौन सा स्वरूप मेरे लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। कुछ समझ में नहीं आया तो भगवान से प्रार्थना की। अचानक ही भगवती सीता जी का विग्रह मेरे समक्ष मानस में आया, और रामचरितमानस के आरंभ में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखी उनकी यह वंदना भी याद आई --
"उद्भव स्थिति संहार कारिणीं क्लेश हारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं राम वल्लभाम्॥"
यह एक अति गोपनीय रहस्य की बात है जिसे मैंने आज तक किसी को नहीं बताया है कि भगवती सीता जी का विग्रह ही मेरे मानस में आता है जब भी जगन्माता की याद आती है।
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मैं योगमार्ग का एक निमित्तमात्र साधक हूँ। ध्यान में वेदान्त-वासना रहती है, अतः ध्यान तो कूटस्थ सूर्य-मण्डल में सर्वव्यापी पुरुषोत्तम परम-पुरुष का ही होता है। वे ही ज्योतिर्मय ब्रह्म है, वे ही विष्णु है, वे ही महेश्वर हैं, और वे ही परमशिव हैं। कर्ता तो साकार रूप में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं। मेरे लिए इस में कोई जटिलता नहीं है। किसी भी तरह का कोई संशय या भ्रम मुझे नहीं है।
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जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुणा निधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपा निर्मल मति पावउँ॥
पुनि मन वचन कर्म रघुनायक। चरण कमल बंदऊ सब लायक॥
राजिव नयन धरे धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक॥
सीताराम चरित अति पावन। मधुर सरिस अरू अति मन भावन॥
मंगल भुवन अमंगल हारि। द्रवऊँ सो दशरथ-अजिर बिहारी॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी॥
जय सियाराम जय जय सियाराम !!
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब निजात्मगण को सविनय सादर सप्रेम नमन !! आप सब की कीर्ति और यश अमर रहे। जय जय श्री सीताराम !!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जून २०२१

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