Sunday 4 February 2018

आचारहीन को वेद भी नहीं पवित्र कर सकते .....

"आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः" अर्थात् आचारहीन को वेद भी नहीं पवित्र कर सकते| श्रुति भगवती कहती है कि दुश्चरित्र कभी भी आत्मज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकता। सदाचार होने पर ही धर्म उत्पन्न होता है| किसी भी आध्यात्मिक साधना में सिद्धि उसी को मिलती है जिसका आचार विचार सही होता है| इसलिए ऋषि पातंजलि ने यम नियमों की आवश्यकता पर बल दिया है| योग मार्ग में जो उच्चतर साधनाएँ हैं उन्हें गुरुमुखी यानि गुरुगम्य रखा गया है| वे प्रत्यक्ष गुरु द्वारा शिष्य की पात्रता देखकर ही दी जाती है| उनके बारे में सार्वजनिक चर्चा का भी निषेध है| सूक्ष्म प्राणायाम की क्रियाओं व ध्यान साधना के साधना काल में यदि साधक का आचरण सही नहीं होता तो उसे या तो मस्तिष्क की गंभीर विकृति हो जाती है या वह असुर बन जाता है| जिनके आचार विचार सही थे वे देवता बने, जिनके गलत थे वे असुर बने|
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हमें मंत्रसिद्धि असत्यवादन के कारण नहीं होती| असत्य बोलने के कारण हमारी वाणी दग्ध हो जाती है| जैसे जला हुआ पदार्थ यज्ञ के काम का नहीँ होता है, वैसे ही जिसकी वाणी झूठ बोलती है, उससे कोई जप तप नहीं हो सकता| वह चाहे जितने मन्त्रों का जाप करे, कितना भी ध्यान करे, उसे फल कभी नहीं मिलेगा| दूसरों की निन्दा या चुगली करना भी वाणी का दोष है। जो व्यक्ति अपनी वाणी से किसी दूसरे की निन्दा या चुगली करता है वह कोई जप तप नहीं कर सकता| इसलिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की आवश्यकता है|
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शिष्यत्व की भी पात्रता होती है जिसके होने पर भगवन स्वयं गुरु रूप में साधक का मार्गदर्शन करते हैं| सभी को शुभ मंगल कामनाएँ| आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन! वे सब का कल्याण करें|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०४ फरवरी २०१८

सृष्टि का सब से बड़ा वरदान .....

सृष्टि का सब से बड़ा वरदान .....
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रात्रि में गहरा ध्यान कर के निश्चिन्त और निर्भय होकर अपने हृदय के पूर्ण प्रेम के साथ इस भाव के साथ सोना चाहिए जैसे हम एक छोटे बालक की तरह अपनी माता की गोद में सो रहे हैं| अपने सिर के नीचे तकिया नहीं, माँ भगवती का बायाँ हाथ है, और दायें हाथ से वे वे थपथपाकर हमें सुला रही हैं| अपनी सारी चिंताएँ, सारे भय और जीवन का सारा भार उन्हें सौंप दो|
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प्रातःकाल उठते ही हम पाएँगे कि माँ भगवती जो सारी सृष्टि का संचालन कर रही हैं, वे स्वयं ही हम से प्यार कर रही हैं| उन्हें प्रणाम करो और सीधे बैठकर कुछ समय के लिए ध्यानस्थ हो जाओ|
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जगन्माता के चेहरे की जो मोहक मधुर मुस्कान है, उस से अधिक सुन्दर इस सृष्टि में अन्य कुछ भी नहीं है| यदि माँ सारे वरदान भी देना चाहे तब भी हम माँ की उस मोहक मुस्कान के समक्ष उन से कुछ भी नहीं माँग पाएँगे| माँ की वह मधुर मुस्कान इस सृष्टि का सब से बड़ा वरदान है जो किसी को मिल सकता है| एक बार भगवती की उस मुस्कान को देख लोगे तो जीवन तृप्त और निहाल हो जाएगा, सारी कामनाएँ नष्ट हो जायेंगी, और सारा जीवन ही परमात्मा को समर्पित हो जाएगा| जगन्माता से हमें अन्य कुछ भी नहीं चाहिए, हम निरंतर उनके हृदय में रहें, और उनका सौम्यतम रूप सदा हमारे समक्ष रहे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०३ फरवरी २०१८