Tuesday, 19 September 2017

भारत में सामान्यतः प्रचलित भोजन विधि :-----

भारत में सामान्यतः प्रचलित भोजन विधि :-----
---------------------------------------------
भोजन एक यज्ञ है जिसमें साक्षात पर ब्रह्म परमात्मा को ही भोजन अर्पित किया जाता है जिस से पूरी समष्टि का भरण पोषण होता है| जो हम खाते हैं वह वास्तव में हम नहीं खाते हैं, स्वयं भगवान ही उसे वैश्वानर जठराग्नि के रूप में ग्रहण करते हैं| अतः परमात्मा को निवेदित कर के ही भोजन करना चाहिए| बिना परमात्मा को निवेदित किये हुए किया हुआ भोजन पाप का भक्षण है| भोजन भी वही करना चाहिए जो भगवान को प्रिय है| तुलसीदल उपलब्ध हो तो उसे भोजन पर अवश्य रखें| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|
(१) भोजन से पूर्व शुद्ध स्थान पर बैठकर निम्न मन्त्रों का मानसिक या वाचिक पाठ करें ......

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे | ज्ञान वैराग्य सिध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ||
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: | प्राणापानसमायुक्त:पचाम्यन्नंचतुर्विधम् ||
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् | ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ||
ॐ सहनाववतु | सह नौ भुनक्तु | सह वीर्यं करवावहै | तेजस्वि नावधीतमस्तु | मा विद्विषावहै || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||
(२) भोजन से पूर्व इस मन्त्र से आचमन करें :-- "ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा" |
(३) फिर छोटे छोटे प्रथम पाँच हर ग्रास के साथ क्रमशः निम्न मन्त्र मानसिक रूप से कहें....
ॐ प्राणाय स्वाहा ||१|| ॐ व्यानाय स्वाहा ||२|| ॐ अपानाय स्वाहा ||३|| ॐ समानाय स्वाहा ||४|| ॐ उदानाय स्वाहा ||५||
>>>>> फिर धीरे धीरे भोजन इस भाव से करें कि जैसे साक्षात भगवान नारायण स्वयं भोजन कर रहे हैं, जिस से समस्त सृष्टि का भरण-पोषण हो रहा है| <<<<<
(४) भोजन के पश्चात् इस मन्त्र से आचमन करें :--
"ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा" |
.
रसोई घर में भोजन बनाकर गृहिणी द्वारा इन तीन मन्त्रों से, नमक रहित तीन छोटे छोटे ग्रासों से अग्नि को जिमाना चाहिए .....
ॐ भूपतये स्वाहा ||१|| ॐ भुवनपतये स्वाहा ||२|| ॐ भूतानां पतये स्वाहा ||३||
.
और भी थोड़ा बहुत परिवर्तन स्थान स्थान पर है, पर मूलभूत बात यही है कि जो भी हम खाते हैं वह हम नहीं खाते हैं, बल्कि साक्षात् परमात्मा को ही अर्पित करते हैं|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

सीमित और अल्प बुद्धि द्वारा मैं शास्त्रों को नहीं समझ सकता ....

अपनी अति अल्प और अति सीमित बुद्धि द्वारा शास्त्रों को समझने का प्रयास मेरे लिए ऐसे ही है जैसे एक छोटी सी कटोरी में अथाह महासागर को भरने का प्रयास | बुद्धि में क्षमता नहीं है कुछ भी समझने की | अब तो वह कटोरी ही महासागर में फेंक दी है | और करता भी क्या ? अन्य कुछ संभव ही नहीं था |
जब परमात्मा समक्ष ही हैं, कोई दूरी ही नहीं है, साक्षात ह्रदय में बैठे हैं तो बस उनके बारे में क्या जानना ? उन में खो जाने यानि उन में रमण करने में ही सार्थकता है | सारी बुद्धि को तिलांजलि दे दी है | कोई बौद्धिक ही नहीं किसी भी तरह की आध्यात्मिक चर्चा अब नहीं करना चाहूँगा | हमारा अस्तित्व ही परमात्मा है, वही उस परम तत्व को व्यक्त करेगा |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

हृदय की गहन पीड़ा .....

हृदय की गहन पीड़ा .....
.
आत्मा और हृदय में सदा एक घनीभूत अभीप्सा थी कि सारा जीवन परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत किया जाए, व एक अनुकूल वातावरण में, ऐसे ही लोगों के साथ रहा जाए जो सदा परमात्मा का ध्यान करते हों| पर इस जीवन के प्रारब्ध में ऐसा होना नहीं लिखा था| निम्न प्रकृति और अवचेतन में छिपे सूक्ष्मतम नकारात्मक संस्कारों ने इस मायावी संसार से परे कभी नहीं होने दिया| पर इसकी पीड़ा सदा बनी रही|
.
जीवन एक अनंत सतत प्रक्रिया है| हर संकल्प और हर अभीप्सा अवश्य पूर्ण होती है| आत्मा की अभीप्सा सिर्फ परमात्मा के लिए ही होती है, वह निश्चित ही कभी न कभी तो पूर्ण होगी ही| अभी तो किसी भी तरह की कोई अपेक्षा व कोई कामना नहीं है, और न ही भगवान से कोई प्रार्थना है| जैसी हरि इच्छा वही मेरी इच्छा| पूर्वजन्मों की कुछ वासनाएँ अवशिष्ट थीं इसलिए यह जन्म लेना पड़ा| अब और कोई वासना न रहे|
.
हमारा जन्म इसीलिये होता है कि पूर्वजन्मों में हमने मुक्ति का कोई उपाय नहीं किया| इसमें दोष हमारा ही है, किसी अन्य का नहीं| इस जन्म में भी यह बात जब तक समझ में आती है तब तक बहुत देर हो जाती है|
.
परमात्मा के साकार रूप आप सभी निजात्माओं को नमन ! आप सब के ह्रदय में परमात्मा का अहैतुकी परम प्रेम जागृत हो| सभी का कल्याण हो|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
आश्विन कृ.१२, वि.सं.२०७४
१७ सितम्बर २०१७

इस अनंतता में मेरा कोई भविष्य नहीं है, क्या मैं इन काल-खण्डों में ही बँधा रहूँगा? ........

इस अनंतता में मेरा कोई भविष्य नहीं है, क्या मैं इन काल-खण्डों में ही बँधा रहूँगा? ........
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
इस अनंतता में मेरा कोई भविष्य नहीं है| अब तक का यह जीवन एक स्वप्न था, भविष्य भी मात्र एक कल्पना है| पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है जिससे दिन रात बनते हैं, और काल-खंडों का निर्माण होता है| इस जीवन से पूर्व भी पता नहीं मैनें कितने अज्ञात जन्म लिए, कितने जीवन जीये, वह सब अज्ञात है| भविष्य भी एक कोरी कल्पना है|
.
क्या मैं इन काल-खण्डों में ही बँधा रहूँगा? नहीं नहीं बिलकुल नहीं| इस काल-खंड से परे मैं सूर्य हूँ, मैं प्रकाश हूँ, मैं बार बार इस जीवन का आनंद लेने आता हूँ| मैं स्वयं ही आनंद हूँ| मैं स्वयं ही अनंतता हूँ| मेरी कोई आयु नहीं है, मैं अनंत हूँ| मैं परमात्मा की अनंतता हूँ, मैं परमात्मा का आनंद हूँ| मैं ही परम ब्रह्म और मैं ही परम शिव हूँ| किसी भी तरह की लघुता और सीमितता मुझे स्वीकार नहीं है| मेरा न कोई आदि है और न कोई अंत| यह प्रकृति जगन्माता है जो निरंतर अपना कार्य कर रही है| मैं ही जगन्माता का समस्त सौन्दर्य हूँ|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
आश्विन कृष्ण १२, वि.सं. २०७४
१७ सितम्बर २०१७

परमात्मा ही एकमात्र सत्य है .....

परमात्मा ही एकमात्र सत्य है .....

कुछ छोटे-मोटे कंकर भी नदी का प्रवाह परिवर्तित कर देते हैं| कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो मनुष्य की चिंतनधारा और विश्व के घटनाक्रम को बदल देती हैं| कभी भी कुछ भी हो सकता है जो हमारी कल्पना के बाहर होता है| भूतकाल में घटित हुई कई घटनाओं के बारे हम सोचते हैं तो हम उन्हें अविश्वसनीय पाते हैं|
मैनें भी जीवन में बहुत कुछ देखा है जो उस समय सत्य था पर अब विश्वास नहीं होता कि ऐसा भी कभी हुआ था| कुछ काल पश्चात यह संसार एक स्वप्न सा लगने लगता है| भूतकाल एक स्वप्न है| हमारा वर्त्तमान भी कल को एक स्वप्न हो जाएगा| क्या यह संसार भी परमात्मा के मन का एक स्वप्न मात्र है? सत्य क्या है इसकी तो हमें खोज करनी होगी| मेरे निज अनुभव से मेरे लिए तो परमात्मा ही एकमात्र सत्य है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


कृपा शंकर
आश्विन कृष्ण १२, वि.सं. २०७४
१७ सितम्बर २०१७