Thursday, 15 December 2016

मुझे समर्पण करना सिखाओ ....

मुझे समर्पण करना सिखाओ ....
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हे परमात्मा, हे भगवन, मैं वास्तव में स्वयं को आपमें पूर्णतः समर्पित करना चाहता हूँ| मुझे स्वयं को नहीं पता कि मुझे क्या करना चाहिए| अब तक तो जो कुछ भी किया, लगता है कि वह सब एक ढोंग या दिखावा मात्र ही था| वास्तविकता का नहीं पता| अब स्वयं को और धोखा नहीं देना चाहता| मेरे ह्रदय की सारी कुटिलता का नाश करो|
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मैं स्वयं को खाली करना चाहता हूँ| स्वयं पर कई विचार लाद रखे हैं उन सब से मुक्त करो| अपने स्वरुप का बोध कराओ| चैतन्य में सिर्फ आपकी ही स्मृति रहे| आपका ही निरंतर सत्संग सदैव बना रहे|
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ह्रदय में दहकती इस अतृप्त प्यास को बुझाओ| आप ही मेरी गति हैं और आप ही मेरे आश्रय हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||

मानसिक द्वंद्व : ...... आध्यात्म मार्ग की एक बड़ी बाधा ..........

मानसिक द्वंद्व : ...... आध्यात्म मार्ग की एक बड़ी बाधा ..........
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जब चेतन और अवचेतन मन में संघर्ष रहता है या उन में संतुलन नहीं रहता तो प्राण शक्ति अवरुद्ध हो जाती है| ऐसी अवस्था में व्यक्ति का तारतम्य बाहरी जगत से नहीं रहता, खंडित व्यक्तित्व की भूमिका बन जाती है और मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है|
ऐसी स्थिति में व्यक्ति विक्षिप्त यानि पागल भी हो सकता है|
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यह बड़ी दु:खद परिस्थिति होती है जो आध्यात्म मार्ग के अनेक साधकों विशेषतः योग मार्ग के पथिकों के समक्ष आती है| ऐसी परिस्थिति में साधक को सद्गुरु का सहारा चाहिए|
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ऐसी परिस्थिति का निर्माण तब होता है जब निम्न अधोगामी प्रकृति अवचेतन मन में निहित वासनाओं के प्रभाव से साधक को भोग विलास की ओर खींचती है; और उसकी उन्नत आत्मा ऊर्ध्वगामी शुभ कर्मों के प्रभाव से परमात्मा की ओर आकर्षित करती है| एक तरह की रस्साकशी चैतन्य में होने लगती है और द्वन्द्वात्मक स्थिति उत्पन्न हो जाती है|
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एक शक्ति आपको ऊपर यानि ईश्वर की ओर खींचती है और दूसरी शक्ति विषय-वासनाओं व भोग विलास की ओर| ऐसी स्थिति में पागलपन से बचने का एक ही उपाय है कि उस समय जैसी और जिस परिस्थिति में आप हैं उस का तुरंत त्याग कर दें| अपने से अधिक उन्नत साधकों के साथ या किसी संत महापुरुष सद्गुरु के सान्निध्य में रहें| सात्विक भोजन लें और हर तरह के कुसंग का त्याग करें| ऐसे वातावरण में भूल से भी ना जाएँ जो आपको अपने लक्ष्य यानि परमात्मा से दूर ले जाता है|
वातावरण इच्छा शक्ति से अधिक प्रभावशाली होता है| अतः जो आप बनना चाहते हैं वैसे ही वातावरण और परिस्थिति का निर्माण करें और उसी में रहें| नियमित निरंतर साधना और किसी महापुरुष का आश्रय साधक की हर प्रकार के विक्षेप से रक्षा करता है|
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ॐ तत्सत् | ॐ गुरु | ॐ ॐ ॐ ||

16 दिसंबर को विजयदिवस अवश्य मनाएँ .....

कल 16 दिसंबर को विजयदिवस अवश्य मनाएँ .....
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(एक दिन पहिले से ही शुभ कामनाएँ)
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यह राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रश्न है| एक समय ऐसा था जब कई वर्षों तक देश में १६ दिसंबर के दिन प्रभात फेरियाँ निकलती थीं| उत्सव का वातावरण रहता था| आज लगता है लोग उस गौरवशाली दिवस को भूल गए हैं, और कोई उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है|
(मुझे अभिमान है कि कुछ समय के लिए मैंने भी सेना में सेवा की है, और पूर्वी क्षेत्र में इस युद्ध में सक्रीय भाग लिया था, अतः मेरी स्मृति में वह पूरा युद्ध है| इससे पूर्व १९६५ के युद्ध में भी मैंने सक्रीय भाग लिया था|)
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आज से ४५ वर्ष पूर्व भारत ने पकिस्तान को निर्णायक पराजय दी और एक नए राष्ट्र बांग्लादेश को जन्म दिया| इस युद्ध की भूमिका बनी थी जब संयुक्त पाकिस्तान के आम चुनाब में आवामी लीग के शेख मुजीबुर्रहमान पूर्ण बहुमत से चुनाव जीते, पर ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमन्त्री सिर्फ इसीलिए नहीं बनने दिया कि वे बांग्लाभाषी थे और उर्दू नहीं बोलते थे|
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पूर्व पाकिस्तान ने पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था| पाकिस्तानी सेना ने लाखों बांग्लाभाषियों का विशेषकर बंगाली हिन्दुओं का नरसंहार करना आरम्भ कर दिया| बंगाली हिन्दुओं के तो घरों के बाहर पाकिस्तान समर्थकों द्वारा निशान लगा दिए जाते, और अगले दिन पाकिस्तानी सेना द्वारा उन सब घरों में आग लगा दी जाती, पुरुषों को मार दिया जाता और स्त्रियों का अपहरण कर लिया जाता| हालत यह थी कि पाकिस्तानी फौज खुलेआम बीच सड़क पर वहाँ के हर पुरुष की लुंगी खुलवाकर देखती थी कि वह खतना किया हुआ मुसलमान है या नहीं| मुसलमान ना होने पर उसे वहीँ गोली मार दी जाती|
इतना ही नहीं लाखों बंगलाभाषी मुसलमानों की भी ह्त्या कर दी गयी और उनकी महिलाओं के साथ भी बलात्कार किया गया|
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भारत में शरणार्थियों की बाढ़ सी आ गयी और एक करोड़ से अधिक शरणार्थी भारत में आ गए| शरणार्थियों को भोजन, वस्त्र और आवास देना एक राष्ट्रीय समस्या हो गयी थी| 
पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल याहया खान ने तत्कालीन पूर्वी पकिस्तान की जन भावनाओं को सैन्य बल से कुचलने का आदेश दे दिया था| जनरल टिक्का खान के नेतृत्व में पाकिस्तानी फौज ने तीस-चालीस लाख अपने ही नागरिकों की ह्त्या की और लाखों महिलाओं के साथ दुराचार किया| वहाँ के बंगाली सेवारत और सेवानिवृत सिपाहियों ने विद्रोह कर के मुक्ति वाहिनी नामक संगठन बनाया और पाकिस्तानी फौज के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध आरम्भ कर दिया| युद्ध आरम्भ होने पर ये मुक्ति वाहिनी के सिपाही ही भारत की सेना को गुप्त सूचनाएं देते थे|
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अमेरिका पूरी तरह से पकिस्तान के साथ था| अमेरिका नहीं चाहता था कि युद्ध में पाकिस्तान हारे| भारत ने रूस के साथ एक सैनिक संधि कर ली थी जिसके तहत अमेरिका यदि भारत पर आक्रमण करता तो रूस भारत की खुल कर सहायता करता| अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ में पूरा प्रयास किया कि युद्ध विराम हो जाए और पकिस्तान की पराजय न हो| पर रूस के निषेधाधिकार के कारण यह संभव नहीं हुआ| अमेरिका ने चीन पर भी दबाव डाला कि वह भारत पर आकमण करे पर चीन इसके लिए तैयार नहीं था| अतंतः अमेरिका ने भारत को डराने के लिए अपना सातवाँ नौसैनिक बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेज दिया| पर तब तक पाकिस्तान की सेना वर्तमान बांग्लादेश में आत्मसमर्पण कर चुकी थी, और उसके 93000 सैनिक गिरफ्तार कर लिए गए थे|
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युद्ध के समय ढाका में पाकिस्तानी सेना आश्वस्त थी कि भारत की सेना मेघना नदी को कभी पार नहीं कर पाएगी| पर बड़ी अदम्य वीरता से भारतीय सेना ने मेघना नदी पार की और ढाका को दूर से घेर लिया| इससे पाकिस्तानी सेना बहुत अधिक भयभीत हो गयी|
14 दिसंबर को भारतीय वायुसेना ने पूर्वी पकिस्तान के गवर्नर भवन पर बम गिरा कर मुख्य हॉल की छत उड़ा दी जब वहाँ एक अति मत्वपूर्ण मीटिंग हो रही थी| वहां गवर्नर मलिक ने डरते हुए कांपते हाथों से वहीँ अपना इस्तीफ़ा लिख दिया|
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16 दिसंबर की सुबह पाकिस्तानी जनरल नियाज़ी के पास ढाका में 26400 सैनिक थे, जबकि भारत के पास सिर्फ़ 3000 सैनिक और वे भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर| पर पाकिस्तानी फौज बहुत बुरी तरह डर गयी थी और उसने हार मान ली व आत्मसमर्पण का निर्णय ले लिया| भारतीय सेना के जनरल जैकब जब नियाज़ी के कमरे में घुसे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था और आत्म-समर्पण का दस्तावेज़ मेज़ पर रखा हुआ था|
शाम के साढ़े चार बजे जनरल अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर उतरे| अरोडा़ और नियाज़ी एक मेज़ के सामने बैठे और दोनों ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज़ पर हस्ताक्षर किए| नियाज़ी ने अपने बिल्ले उतारे और अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया| नियाज़ी की आंखों में एक बार फिर आंसू आ गए|
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स्‍थानीय लोग नियाज़ी की हत्‍या पर उतारू नजर आ रहे थे| भारतीय सेना के वरिष्ठ अफ़सरों ने नियाज़ी के चारों तरफ़ एक सुरक्षा घेरा बना दिया और नियाजी को बाहर निकाला|
दिल्ली में प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी ने देश को जीत की खबर दी और पूरा देश उत्साह से भर गया|
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पश्चिमी क्षेत्र में भी बड़ी वीरता से युद्ध लड़ा गया था| भारतीय नौसेना ने भी बड़ा पराक्रम दिखाया जिसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है| सभी को धन्यवाद|
विजय दिवस की अनेकानेक शुभ कामनाएँ |
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जय जननी जय भारत | ॐ ॐ ॐ ||