Thursday 14 September 2017

वर्तमान परिस्थितियों में सनातन धर्म के लिए हम क्या कर सकते हैं ?


प्रश्न : वर्तमान परिस्थितियों में सनातन धर्म के लिए हम क्या कर सकते हैं ?

उत्तर : वर्तमान परिस्थितियों में एकमात्र कार्य जो हम सनातन धर्म के लिए कर सकते हैं वह है .... "निज जीवन में धर्म का पालन" | अन्य लोग क्या कर रहे हैं और क्या नहीं कर रहे हैं इसकी चिंता छोड़कर निज जीवन को धर्ममय बनाओ | इसे हम सब अच्छी तरह समझते हैं | स्वयं को धोखा न दें | दुर्भाग्य से वर्तमान में भारत की शिक्षा व्यवस्था और भारत के समाचार माध्यम सनातन धर्म के विरुद्ध हैं, उन पर धर्म विरोधियों का अधिकार है, इस कारण हमारे दिमाग में गलत बातें भरी हुई हैं |
आज़ादी के पश्चात् पहली बार देश में एक राष्ट्रवादी सरकार आई है, जिसका निकट भविष्य तक कोई विकल्प नहीं है | व्यवस्था में अति शीघ्र परिवर्तन नहीं लाया जा सकता, धीरे धीरे सब सुधरेगा | शीघ्र परिवर्तन लाने वाली क्रांतियों ने सर्वत्र विनाश ही विनाश किया है | माली चाहे वृक्ष में सौ घड़े जल नित्य दे पर फल तो ऋतू आने पर ही होंगे |

हर साँस परमात्मा को समर्पित हो | हम अकेले भी होंगे तो भी परमात्मा सदा हमारे साथ रहेंगे |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

ह्रदय में परम प्रेम, काम पर विजय, सत्यपरायणता और समभाव ... ये आध्यात्मिकता के लक्षण हैं ....

ह्रदय में परम प्रेम, काम पर विजय, सत्यपरायणता और समभाव ... ये आध्यात्मिकता के लक्षण हैं ....
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यह बात बिना किसी संदेह के भगवान ने स्पष्ट कर दी है कि जब तक मन में कामनाएँ हैं तब तक हम माया के आवरण में हैं, और कामवासना तो सबसे बड़ी बाधा है| माया के दो अस्त्र है .... आवरण और विक्षेप .... जिनसे मुक्ति हरिकृपा से ही मिलती है| इनसे मुक्त हुए बिना परमात्मा का आभास नहीं हो सकता|
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भगवान सत्यनारायण हैं| सत्य ही परमात्मा है .... यह अनुभूति का विषय है, बौद्धिक नहीं| परमात्मा ही एकमात्र सत्य हैं| यह बात ध्यान में ही समझ में आती है, अतः इस पर बौद्धिक चर्चा करना व्यर्थ है|
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समभाव में स्थिति ही ज्ञानी होने का लक्षण है| ज्ञान का स्त्रोत परमात्मा है, पुस्तकें नहीं| पुस्तकों का काम प्रेरणा देना और एक आधार तैयार करना है| ज्ञान की प्राप्ति परमात्मा की कृपा से ही होती है, बाकी सब तो उसकी भूमिका मात्र है| चाहे स्वयं यमराज ही प्राण लेने सामने आ जाये तो भी किसी तरह के शोक, भय, दुःख और मलाल का न होना, ज्ञानी होने का लक्षण है|
विश्व की सारी धन-संपदा मिल जाए तो भी कोई हर्ष न हो, किसी भी तरह का लोभ न हो, यह ज्ञानी होने का लक्षण है|
सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु आदि किसी भी तरह की परिस्थिति में विचलित न होना, यह ज्ञानी होने का लक्षण है|
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अभी अभी हमारे मोहल्ले की माताएँ पास के ही एक मंदिर से नित्य की तरह नियमित प्रभात-फेरी "श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा" भजन गाते गाते निकाल रही हैं| उनकी मधुर वाणी सुनकर भाव विह्वल हो गया हूँ, और हृदय का परम प्रेम जाग उठा है| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|
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ॐ तत्सत् | श्रीहरि | ॐ ॐ ॐ ||

१२ सितम्बर २०१७