"पीठं यस्या धरित्री जलधरकलशं लिङ्गमाकाशमूर्तिम् ,
नक्षत्रं पुष्पमाल्यं ग्रहगणकुसुमं चन्द्रवह्न्यर्कनेत्रम्।
कुक्षिः सप्तसमुद्रं भुजगिरिशिखरं सप्तपाताळपादम्,
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अर्थात् - पृथ्वी जिन का आसन है, जल से भरे हुए मेघ जिन के कलश हैं, सारे नक्षत्र जिन की पुष्प माला है, ग्रह गण जिनके कुसुम हैं, चन्द्र, सूर्य एवं अग्नि जिन के नेत्र हैं , सातों समुद्र जिन के पेट हैं , पर्वतों के शिखर जिन के हाथ हैं , सातों पाताल जिन के पैर हैं, वेद और षड़ङ्ग जिन के मुख हैं, तथा दशों दिशायें जिन के वस्त्र हैं -- ऐसे आकाश की तरह मूर्तिमान दिव्य लिङ्ग को में नमस्कार करता हूँ।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
४ जनवरी २०२३
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पुनश्च: --- आजकल नित्य ही निश्चित रूप से भगवान का आशीर्वाद मिल रहा है। हर नये दिन का आरंभ बीते हुए पिछले दिनों से अधिक अच्छा होता है। आज के दिन का आरंभ भी बीते हुये सभी दिनों से अधिक अच्छा था। हरेक नया दिन, बीते हुये दिनों से अधिक अच्छा होगा। आज मेरे उपास्य देव "परमशिव" की अनुभूतियाँ अन्य दिनों से अधिक अच्छी थीं। वे अब नित्य निरंतर बढ़ती ही जायेंगी।
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सारी अनंत विराटता, सारी सृष्टि -- सारी आकाश-गंगाएँ, उनके सभी नक्षत्र अपने ग्रहों-उपग्रहों के साथ, और उन पर निवास कर रहे सभी प्राणियों की देह मैं ही हूँ। मैं ही उनका प्राण हूँ। जो कुछ भी सृष्ट और अनसृष्ट है, वह मैं ही हूँ। सारी सृष्टि, सारा ब्रह्मांड मेरा घर है, और सारे प्राणी मेरा परिवार। मैं सभी को साथ लेकर परमशिव की उपासना कर रहा हूँ। कुछ भी मुझसे पृथक नहीं है। मैं साँस लेता हूँ तो सारा ब्रह्मांड साँस लेता है। मेरा अस्तित्व ही सारी सृष्टि का अस्तित्व है। मैं परमशिव के साथ एक हूँ।
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सारी अनंत विराटता, सारी सृष्टि -- सारी आकाश-गंगाएँ, उनके सभी नक्षत्र अपने ग्रहों-उपग्रहों के साथ, और उन पर निवास कर रहे सभी प्राणियों की देह मैं ही हूँ। मैं ही उनका प्राण हूँ। जो कुछ भी सृष्ट और अनसृष्ट है, वह मैं ही हूँ। सारी सृष्टि, सारा ब्रह्मांड मेरा घर है, और सारे प्राणी मेरा परिवार। मैं सभी को साथ लेकर परमशिव की उपासना कर रहा हूँ। कुछ भी मुझसे पृथक नहीं है। मैं साँस लेता हूँ तो सारा ब्रह्मांड साँस लेता है। मेरा अस्तित्व ही सारी सृष्टि का अस्तित्व है। मैं परमशिव के साथ एक हूँ।
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
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५ जनवरी से मैं अपने जीवन को एक नई दिशा दे रहा हूँ, जिसके बारे में लिखना उचित नहीं है। आज ४ जनवरी को प्रातः जब नींद से उठा, उठा तब स्वयं को एक निर्विकल्प समाधि में पाया जिसका अनुभव एक घंटे से भी अधिक समय तक चलता रहा। यह परमशिव की ओर से एक संकेत था, आर या पार जाने का। या तो इस पार आराम से बैठे रहो, या उस पार निकल जाओ जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है।
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अब सोचना छोड़ दिया है क्योंकि जिस विमान में मैं यात्रा कर रहा हूँ, उस विमान का चालक मैं नहीं हूँ। यह विमान भी वे हैं, और इसके चालक भी वे ही हैं। जैसी उनकी इच्छा, वे किसी भी दिशा में कहीं भी जाएँ। मैं निश्चिंत हूँ। मेरी दिशा तो उन्हीं की ओर है। अब दायें-बायें, ऊपर-नीचे, इधर-उधर कुछ भी अन्य नहीं दिखाई दे रहा है। किसी भी ओर मेरी दृष्टि नहीं है। मेरी दृष्टि सिर्फ उन्हीं की ओर है और सदा सिर्फ उन्हीं की ओर रहेगी।
कृपा शंकर
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५ जनवरी से मैं अपने जीवन को एक नई दिशा दे रहा हूँ, जिसके बारे में लिखना उचित नहीं है। आज ४ जनवरी को प्रातः जब नींद से उठा, उठा तब स्वयं को एक निर्विकल्प समाधि में पाया जिसका अनुभव एक घंटे से भी अधिक समय तक चलता रहा। यह परमशिव की ओर से एक संकेत था, आर या पार जाने का। या तो इस पार आराम से बैठे रहो, या उस पार निकल जाओ जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है।
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अब सोचना छोड़ दिया है क्योंकि जिस विमान में मैं यात्रा कर रहा हूँ, उस विमान का चालक मैं नहीं हूँ। यह विमान भी वे हैं, और इसके चालक भी वे ही हैं। जैसी उनकी इच्छा, वे किसी भी दिशा में कहीं भी जाएँ। मैं निश्चिंत हूँ। मेरी दिशा तो उन्हीं की ओर है। अब दायें-बायें, ऊपर-नीचे, इधर-उधर कुछ भी अन्य नहीं दिखाई दे रहा है। किसी भी ओर मेरी दृष्टि नहीं है। मेरी दृष्टि सिर्फ उन्हीं की ओर है और सदा सिर्फ उन्हीं की ओर रहेगी।
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मैं इसी क्षण स्वयं को सब तरह के संकल्पों-विकल्पों, धारणाओं-विचारधाराओं, दायित्वों, पाप-पुण्य, और धर्म-अधर्म से सदा के लिए मुक्त करता हूँ। मेरी चेतना में मैं इस समय ईश्वर की सर्वव्यापक विराट अनंतता व उससे भी परे हूँ। किसी के साथ मेरा कोई विशिष्ट संबंध नहीं है। मुझे न तो किसी से कुछ पूछना है, और न किसी को कुछ बताना। किसी से कुछ लेना-देना भी नहीं है। परमशिव सदा मेरे समक्ष ही नहीं, मेरे साथ एक हैं। उनके सिवाय कोई अन्य विचार मेरे मानस में इस समय नहीं है, और भविष्य में कभी न आये तो ही अच्छा है। ॐ स्वस्ति !! शिव शिव शिव शिव शिव ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ !! हरिः ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
मैं इसी क्षण स्वयं को सब तरह के संकल्पों-विकल्पों, धारणाओं-विचारधाराओं, दायित्वों, पाप-पुण्य, और धर्म-अधर्म से सदा के लिए मुक्त करता हूँ। मेरी चेतना में मैं इस समय ईश्वर की सर्वव्यापक विराट अनंतता व उससे भी परे हूँ। किसी के साथ मेरा कोई विशिष्ट संबंध नहीं है। मुझे न तो किसी से कुछ पूछना है, और न किसी को कुछ बताना। किसी से कुछ लेना-देना भी नहीं है। परमशिव सदा मेरे समक्ष ही नहीं, मेरे साथ एक हैं। उनके सिवाय कोई अन्य विचार मेरे मानस में इस समय नहीं है, और भविष्य में कभी न आये तो ही अच्छा है। ॐ स्वस्ति !! शिव शिव शिव शिव शिव ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ !! हरिः ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर