सार की बात एक ही है कि भगवान को अपना पूर्ण प्रेम दो, इतना प्रेम कि स्वयं में भी भगवान ही प्रतीत हों। भगवान में और स्वयं में कोई भेद न रहे। हमारा अस्तित्व ही भगवान का अस्तित्व हो जाए। हम निमित्त मात्र ही नहीं, स्वयं भगवान के साथ एक हो जाएँ।
यही भगवान की प्राप्ति है। यही आत्म-साक्षात्कार है। भगवान कोई ऊपर से उतर कर आने वाले नहीं, हमें स्वयं को ही भगवान बनना पड़ेगा। सदा शिवभाव में रहो। हम परमशिव हैं, यह नश्वर मनुष्य देह नहीं।
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जिस भी रूप में संभव हो, भगवान को अपना पूर्ण प्रेम दें। आगे का मार्ग भगवान स्वयं दिखायेंगे। भगवान हमारी सत्यनिष्ठा और परमप्रेम को ही देखते हैं। सत्यनिष्ठा से भगवान को किया गया प्रेम कभी व्यर्थ नहीं जाता। सदा वर्तमान में रहें। भगवान हमारे हैं, और हम भगवान के हैं।
"मिलें न रघुपति बिन अनुरागा, किएँ जोग तप ग्यान बिरागा॥" रां रामाय नमः॥ श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥ श्रीमते रामचंद्राय नमः॥ जय जय श्रीसीताराम॥
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं !! अहं ब्रह्मास्मि !!
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ जनवरी २०२३
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