Friday, 3 January 2025

यह विमान और उस का चालक मैं नहीं हूँ ---

 यह विमान और उस का चालक मैं नहीं हूँ ---

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"तपस्वी, क्यों हो इतने क्लांत ? वेदना का यह कैसा वेग ?
आह ! तुम कितने अधिक हताश, बताओ यह कैसा उद्वेग ?
जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल।
ईश का वह रहस्य वरदान, कभी मत इसको जाओ भूल।
विषमता की पीडा से व्यक्त, हो रहा स्पंदित विश्व महान।
यही दुख-सुख विकास का सत्य, यही "भूमा" का मधुमय दान। (कामायनी)
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इस विमान का चालक बने रहने की अभिलाषा ने ही इस जगत की ज्वालाओं से मुझे दग्ध किया। उस दग्धता से बचाने की प्रार्थना से द्रवित होकर भगवान ने मुझे "भूमा" का बोध कराया। "भूमा" की अनुभूति ने ही समझाया कि यह विमान और उसका चालक मैं नहीं , स्वयं भगवान हैं। भूमा की सिद्धि जीवन की पूर्णता है। श्रुति भगवती कहती है --
"यो वै भूमा तत्सुखं नाल्पे सुखमस्ति भूमैव सुखं भूमा त्वेव विजिज्ञासितव्य इति भूमानं भगवो विजिज्ञास इति॥ (छान्दोग्योपनिषद (७/२३/१)
उपरोक्त वाक्य ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य भगवान सनतकुमार का है जिन्होंने अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद के प्रश्न -- "सुखं भगवो विजिज्ञास इति" ​का उत्तर दिया था। भूमा में यानि व्यापकता, विराटता में सुख है, अल्पता में नहीं। जो भूमा है, व्यापक है, वह सुख है। कम में सुख नहीं है। भूमा का अर्थ है -- सर्व, विराट, विशाल, अनंत, विभु, और सनातन।
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भूमा का ध्यान ही जीवन में परमात्मा की अनुभूति का मार्ग है, जो सब तरह के भेदों और सीमाओं से परे है। भूमा का बोध हमारे जीवन की पूर्णता है। जो भूमा है, वह सनातन, बृहत्तम, विभु, सर्वसमर्थ, नित्यतृप्त ब्रह्म है। जो भूमा है, वही सुख है, वही अमृत और सत्य है। भूमा में ही सुख है, अल्पता में नहीं। पूर्ण भक्ति से समर्पित होकर परमात्मा की अनंतता और विराटता पर ध्यान करते करते भूमा की अनुभूति होती है।
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भगवान श्रीहरिः ही कृपा कर के किसी न किसी माध्यम से अपने कुछ रहस्य अनावृत कर देते हैं। कुछ भी जानने की इच्छा हो तो भगवान से प्रेम करो और निरंतर भगवान का ध्यान करो। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ जनवरी २०२४

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