जिसको प्यास लगी है, वही पानी पीयेगा ---
Monday, 18 April 2022
जिसको प्यास लगी है, वही पानी पीयेगा ----
दरिद्रता एक बहुत बड़ा अभिशाप है, लेकिन अधर्म से पैसा बनाना तो सब से बड़ा "पापों का पाप" है ---
दरिद्रता एक बहुत बड़ा अभिशाप है, लेकिन अधर्म से पैसा बनाना तो सब से बड़ा "पापों का पाप" है ---
पूर्वजन्म की एक हल्की सी स्मृति है ---
पूर्वजन्म की एक हल्की सी स्मृति है जब मैंने श्री श्री परमहंस योगानन्द जी से अमेरिका में दीक्षा ली थी। फिर पता नहीं कैसे और कब उस पूर्व जीवन का अंत हुआ, और भारत के एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में मेरा पुनर्जन्म हुआ। पूर्व जन्म में मेरी अंतिम कामना भारत के एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने की थी।
"मैं हूँ", -- यही मेरी सबसे बड़ी और एकमात्र समस्या है, समाधान भी यही हो ---
"मैं हूँ", -- यही मेरी सबसे बड़ी और एकमात्र समस्या है, समाधान भी यही हो ---
मुझे भगवान की प्राप्ति हो या नहीं? यह मेरी नहीं, सृष्टिकर्ता भगवान की निजी समस्या है ----
मुझे भगवान की प्राप्ति हो या नहीं? यह मेरी नहीं, सृष्टिकर्ता भगवान की निजी समस्या है। उनकी मर्जी हो तो दर्शन दें, अन्यथा नहीं; मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्राथमिकता ---
प्राथमिकता ---
मैं उनके साथ एक हूँ, नमन करूँ तो किसको करूँ? कोई अन्य है ही नहीं ---
मैं उनके साथ एक हूँ, नमन करूँ तो किसको करूँ? कोई अन्य है ही नहीं --
जिन्होनें कभी जन्म ही न लिया हो, जिन की कभी कोई मृत्यु भी नहीं है ---
जिन्होनें कभी जन्म ही न लिया हो, जिन की कभी कोई मृत्यु भी नहीं है, कूटस्थ सूर्यमण्डल में स्वयं प्रकाशित वे परमब्रह्म परमशिव इस देह की चेतना से मुक्त कर हमारा कल्याण करें। वे ही अमर सद्गुरु हैं, वे ही साधक हैं, और वे ही यह समस्त सृष्टि हैं। सारी कामनाएँ, सारे संचित व प्रारब्ध कर्म, और पृथकता का बोध उन में विलीन हो जाये। उन से पृथक अन्य कुछ भी न रहे। किसी भी तरह की कामना का जन्म न हो। ॐ ॐ ॐ॥
वर्तमान यूक्रेन-रूस विवाद पर मैं अपने विचारों पर दृढ़ हूँ ---
वर्तमान यूक्रेन-रूस विवाद पर मैं अपने विचारों पर दृढ़ हूँ ---
काम, क्रोध और लोभ ये आत्मनाश के त्रिविध द्वार हैं, इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए ---
नर्क के दरवाजे के तीन बड़े आकर्षक, मनोहर और विशाल रूप तो ऐसे हैं, जिनका ज्ञान होते हुए भी हम अनायास ही उस में प्रवेश कर के नर्कगामी हो जाते हैं। इस द्वार की बात मैं नहीं, भगवान स्वयं कह रहे है --
माया के आवरण को भेद कर हरिः चरणों को भजो ----
महात्माओं के सत्संग में बार बार कहा जाता है कि -- "माया के आवरण को भेद कर हरिः चरणों को भजो"।
दुर्गति किस की होती है? और बार बार कष्टमय असुर योनियों में कौन जाते हैं? ---
दुर्गति किस की होती है? और बार बार कष्टमय असुर योनियों में कौन जाते हैं? --
जब से सृष्टि का आरंभ हुआ है तभी से सत्य-सनातन-धर्म हमारा स्वधर्म है, जिस पर दृढ़ रहें, और राष्ट्र की रक्षा करें ---
जब से सृष्टि का आरंभ हुआ है तभी से सत्य-सनातन-धर्म हमारा स्वधर्म है, जिस पर दृढ़ रहें, और राष्ट्र की रक्षा करें। निज जीवन में परम सत्य की अभिव्यक्ति और आत्म-साक्षात्कार -- सनातन धर्म का सार है। प्रकृति के नियमों के अनुसार संसार ऐसे ही चलता रहेगा। परमात्मा ही परम सत्य है।
अपनी साधना/उपासना स्वयं करो, किसी से कोई अपेक्षा मत रखो ---
अपनी साधना/उपासना स्वयं करो, किसी से कोई अपेक्षा मत रखो। दूसरों के पीछे-पीछे भागने से कुछ नहीं मिलेगा। जो मिलेगा वह स्वयं में अंतस्थ परमात्मा से ही मिलेगा। किसी पर कटाक्ष, व्यंग्य या निंदा आदि करने से स्वयं की ही हानि होती है।
भगवान श्रीराम के हाथ में हर समय धनुष-बाण क्यों रहता है? उनके हाथ घुटनों तक लंबे क्यों हैं? ---
स्वांतः सुखाय ऐसे ही एक बात सत्संग हेतु पूछ रहा हूँ। भगवान श्रीराम के हाथ में हर समय धनुष-बाण क्यों रहता है? उनके हाथ घुटनों तक लंबे क्यों हैं?