पूर्वजन्म की एक हल्की सी स्मृति है जब मैंने श्री श्री परमहंस योगानन्द जी से अमेरिका में दीक्षा ली थी। फिर पता नहीं कैसे और कब उस पूर्व जीवन का अंत हुआ, और भारत के एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में मेरा पुनर्जन्म हुआ। पूर्व जन्म में मेरी अंतिम कामना भारत के एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने की थी।
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इस जन्म में योगानन्द जी से कभी भेंट नहीं हुई क्योंकि जब मेरी इस देह की आयु तीन-चार वर्ष की थी, तभी उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया था। इस जन्म में ३१ वर्ष की आयु में उन्होंने एक अवर्णनीय चमत्कार और शक्तिपात द्वारा जो कुछ भी पूर्वजन्म में उन से सीखा था, वह सब कुछ याद दिला दिया। ३४ वर्ष की आयु में उन्होंने फिर एक अवर्णनीय चमत्कार द्वारा मुझे समाधि की अवस्था में ले जा कर सूक्ष्म देह में दीक्षा दी। ये सारे के सारे अविश्वसनीय चमत्कार थे, जिन पर कोई आज के युग में विश्वास नहीं करेगा।
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मुझ में पूर्वजन्म के अधर्मी और धर्मी सब तरह के मिश्रित संस्कार थे, जिन में इस जन्म के संस्कार भी जुड़ गए। बड़ी कठिनाई से पूर्व जन्मों के बहुत ही गलत संस्कारों से मुक्त हुआ हूँ। भगवान ने खूब कृपा की है।
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मुझे किसी से भी कोई शिकायत नहीं है। अब कोई अभिलाषा नहीं है, जीवन भगवान को समर्पित है। उनका उपकरण हूँ, वे जहाँ चाहें, वहाँ रखे, और कैसे भी काम में लें। भगवान की सबसे बड़ी कृपा यही है कि बौद्धिक धरातल पर अब कोई किसी भी तरह का संशय मुझे नहीं है।
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अंतिम बात यह कहना चाहता हूँ कि आप भारतीय हिन्दू हैं, लेकिन आपका अगला जन्म कहाँ, किस लोक में, किस देश में, किस वर्ण में, किस जाति में, किस योनि में, किस परिस्थिति में, किस मत में होगा, इसकी कोई सुनिश्चितता नहीं है। अंत समय में जैसी मति होगी, वैसी ही गति होगी। कर्मफलों का सिद्धान्त भी सत्य है, पुनर्जन्म भी सत्य है, और आत्मा की शाश्वतता भी सत्य है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ अप्रेल २०२१
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