मुझे भगवान की प्राप्ति हो या नहीं? यह मेरी नहीं, सृष्टिकर्ता भगवान की निजी समस्या है। उनकी मर्जी हो तो दर्शन दें, अन्यथा नहीं; मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
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उनके तेज को यह शरीर सहन नहीं कर सकता। यह तो वैसे ही होगा जैसे किसी २४ volt के बल्व में करोड़ों volt की बिजली छोड़ दी जाये। अगर वे मेरे समक्ष आ जाएँ तो यह शरीर तो उसी समय जल कर भस्म हो जाएगा।
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कल प्रातः एक ऐसा ही अनुभव हुआ। प्रातः उठ कर बैठते ही मैं समाधिस्थ हो गया। सारी चेतना प्रेममय हो गई। ऐसे लगा कि भगवान बिलकुल मेरे समक्ष हैं। उनकी प्रत्यक्ष उपस्थिती का आभास निरंतर बढ़ने लगा। लेकिन अचानक ही सारा शरीर तड़प उठा। ऐसे लगा कि आधा मिनट भी और ऐसे ही रहा तो यह शरीर मेरा साथ छोड़ देगा। अंत समय में किसी को क्या अनुभूतियाँ हो सकती हैं, वे सब मुझे हुईं।
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अंततः मैंने उन से बापस जाने की प्रार्थना की, वे तुरंत बापस चले गए। मैंने उनसे जो प्रार्थना की उन्होने तुरंत स्वीकार कर ली। वैसे भी वे स्थायी रूप से मेरे हृदय में बिराजमान हैं। अब और कुछ भी नहीं चाहिए।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ मार्च २०२२
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