जिन्होनें कभी जन्म ही न लिया हो, जिन की कभी कोई मृत्यु भी नहीं है, कूटस्थ सूर्यमण्डल में स्वयं प्रकाशित वे परमब्रह्म परमशिव इस देह की चेतना से मुक्त कर हमारा कल्याण करें। वे ही अमर सद्गुरु हैं, वे ही साधक हैं, और वे ही यह समस्त सृष्टि हैं। सारी कामनाएँ, सारे संचित व प्रारब्ध कर्म, और पृथकता का बोध उन में विलीन हो जाये। उन से पृथक अन्य कुछ भी न रहे। किसी भी तरह की कामना का जन्म न हो। ॐ ॐ ॐ॥
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"ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं त्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि॥ "
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गुरु-तत्व एक अनुभूति का विषय है जिसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। उसे समझने के लिए अहंकार से मुक्त होकर समर्पित होना पड़ता है। प्रेमपूर्वक प्रयास करते हुए अपनी चेतना को आज्ञाचक्र से ऊपर रखें। आगे के सारे द्वार अपने आप स्वतः ही खुलेंगे, अंधकार भी दूर होगा, और संतुष्टि व तृप्ति भी मिलेगी। सहस्त्रार में दिखाई देने वाली ज्योति 'गुरु चरण-पादुका' है, जिसमें स्थिति 'गुरु-चरणों' में आश्रय है। सहस्त्रारचक्र में ध्यान श्रीगुरुचरणों का ध्यान है। श्रीगुरुचरणों का ध्यान करें। आगे की यात्रा अनंत है।
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हे परात्पर परमेष्ठि विश्वगुरु, आपको नमन ! आप की जय हो ! मेरे पास आपकी महिमा के लिए शब्द नहीं हैं। मैं आपके प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित हूँ। आप मेरे प्राण और मेरा अस्तित्व हैं --
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥११:३८॥"
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥११:३९॥"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥११:४०॥"
"किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥११:४६॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
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सारी पीड़ाओं का समाधान, सारी अभीप्साओं की तृप्ति, सिर्फ सृष्टि-नियंता परमात्मा के ही पास है। सारी पीड़ाओं का एकमात्र कारण है -- सत्यनिष्ठा और समर्पण का अभाव। उनकी कृपा अपने अनुग्रह की वर्षा कर हम सब की और इस राष्ट्र भारत का भी कल्याण करेंगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ मार्च २०२२
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