रूस-जापान का युद्ध और भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर उसका प्रभाव ......
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अंग्रेजों ने भारतीयों पर बहुत अधिक अत्याचार किये और भारतीयों को इतना अधिक आतंकित कर दिया था कि भारत के जनमानस में एक सामान्य धारणा बैठ गयी कि गोरी चमड़ी वाले योरोपियन लोग एक श्रेष्ठतर जाति के लोग हैं जिन्हें कभी पराजित नहीं किया जा सकता| पर सन १९०५ ई.में मंचूरिया पर हुए एक युद्ध में जापान ने रूस को पूरी तरह से पराजित कर दिया था, जिससे भारतीयों में यह आत्म-विश्वास जागृत हुआ कि जब जापान जैसा एक एशियाई देश रूस जैसे महा शक्तिशाली देश को हरा सकता है तो हम भारतीय भी ब्रिटेन को पराजित कर सकते हैं| इस से भारतीय क्रांतिकारियों को बल मिला और उन्होंने एक नई ऊर्जा और उत्साह से भारत में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ाकर अंग्रेजों के ह्रदय भय से भर दिए|
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कभी मुझे समय मिलेगा तो भूमध्य सागर में फ़्रांस और ब्रिटेन की नौसेनाओं के बीच हुए एक भयानक युद्ध के बारे में भी लिखूँगा जिसमें अपनी एक ज़रा सी गलत सोच के कारण फ्रांस लगभग जीता हुआ युद्ध हार गया था| उस युद्ध में ब्रिटेन की जीत ने भारत में अंग्रेजी शासन को पक्का कर दिया| उस युद्ध में अगर फ्रांस जीतता तो वह भारत पर से अंग्रेजों के अधिकार को छीनकर अपना राज्य स्थापित कर लेता|
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यहाँ बात जापान रूस के बीच हुए युद्ध के बारे में है| समयाभाव के कारण मैं विस्तार से उसका वर्णन करने में असमर्थ हूँ| पर यह बात मेरे पाठकों को बता देना चाहता हूँ कि रूस में हुई बोल्शेविक क्रान्ति की नीव यहीं से पड़ी| रूसी बोल्शेविक क्रांति कोई सर्वहारा की क्रांति नहीं थी, एक सैनिक विद्रोह था जो वोल्गा नदी में खड़े एक नौसैनिक जहाज "अवरौरा" से आरंभ हुआ| जो विद्रोही सैनिक बहुमत में थे वे बोल्शेविक कहलाए, और जो अल्पमत में वहाँ के रूसी शासक जार के पक्ष में थे वे मेन्शेविक कहलाए| इन दोनों पक्षों में गृहयुद्ध हुआ| बोल्शेविक सिपाहियों का कोई नेता नहीं था| अतः पेरिस में निर्वासित जीवन बिता रहा व्लादीमीर इलिविच लेनिन जर्मनी की मदद से चोरी-छिपे रूस में आया और इस सैनिक विद्रोह का नेता बन गया, और इस विद्रोह को सर्वहारा की क्रांति का रूप देकर मार्क्सवादी साम्यवादी सता स्थापित कर दी| कभी समय मिला तो इस विषय पर भी लिखूंगा|
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अभी तो आध्यामिक लेख ही ठाकुर जी लिखवा रहे हैं| ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः : --- चीन में भी साम्यवादी सत्ता माओ के लॉन्ग मार्च से नहीं, बल्कि स्टालिन की सेना के टैंकों की सहायता से से आई थी जिसे मार्क्सवादी इतिहासकारों ने छिपाया है| सारी साम्यवादी सत्ताएँ धोखे और छल-कपट से आईं और अपने पीछे एक भयानकतम विनाश लीला छोड़ गईं|
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अंग्रेजों ने भारतीयों पर बहुत अधिक अत्याचार किये और भारतीयों को इतना अधिक आतंकित कर दिया था कि भारत के जनमानस में एक सामान्य धारणा बैठ गयी कि गोरी चमड़ी वाले योरोपियन लोग एक श्रेष्ठतर जाति के लोग हैं जिन्हें कभी पराजित नहीं किया जा सकता| पर सन १९०५ ई.में मंचूरिया पर हुए एक युद्ध में जापान ने रूस को पूरी तरह से पराजित कर दिया था, जिससे भारतीयों में यह आत्म-विश्वास जागृत हुआ कि जब जापान जैसा एक एशियाई देश रूस जैसे महा शक्तिशाली देश को हरा सकता है तो हम भारतीय भी ब्रिटेन को पराजित कर सकते हैं| इस से भारतीय क्रांतिकारियों को बल मिला और उन्होंने एक नई ऊर्जा और उत्साह से भारत में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ाकर अंग्रेजों के ह्रदय भय से भर दिए|
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कभी मुझे समय मिलेगा तो भूमध्य सागर में फ़्रांस और ब्रिटेन की नौसेनाओं के बीच हुए एक भयानक युद्ध के बारे में भी लिखूँगा जिसमें अपनी एक ज़रा सी गलत सोच के कारण फ्रांस लगभग जीता हुआ युद्ध हार गया था| उस युद्ध में ब्रिटेन की जीत ने भारत में अंग्रेजी शासन को पक्का कर दिया| उस युद्ध में अगर फ्रांस जीतता तो वह भारत पर से अंग्रेजों के अधिकार को छीनकर अपना राज्य स्थापित कर लेता|
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यहाँ बात जापान रूस के बीच हुए युद्ध के बारे में है| समयाभाव के कारण मैं विस्तार से उसका वर्णन करने में असमर्थ हूँ| पर यह बात मेरे पाठकों को बता देना चाहता हूँ कि रूस में हुई बोल्शेविक क्रान्ति की नीव यहीं से पड़ी| रूसी बोल्शेविक क्रांति कोई सर्वहारा की क्रांति नहीं थी, एक सैनिक विद्रोह था जो वोल्गा नदी में खड़े एक नौसैनिक जहाज "अवरौरा" से आरंभ हुआ| जो विद्रोही सैनिक बहुमत में थे वे बोल्शेविक कहलाए, और जो अल्पमत में वहाँ के रूसी शासक जार के पक्ष में थे वे मेन्शेविक कहलाए| इन दोनों पक्षों में गृहयुद्ध हुआ| बोल्शेविक सिपाहियों का कोई नेता नहीं था| अतः पेरिस में निर्वासित जीवन बिता रहा व्लादीमीर इलिविच लेनिन जर्मनी की मदद से चोरी-छिपे रूस में आया और इस सैनिक विद्रोह का नेता बन गया, और इस विद्रोह को सर्वहारा की क्रांति का रूप देकर मार्क्सवादी साम्यवादी सता स्थापित कर दी| कभी समय मिला तो इस विषय पर भी लिखूंगा|
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अभी तो आध्यामिक लेख ही ठाकुर जी लिखवा रहे हैं| ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः : --- चीन में भी साम्यवादी सत्ता माओ के लॉन्ग मार्च से नहीं, बल्कि स्टालिन की सेना के टैंकों की सहायता से से आई थी जिसे मार्क्सवादी इतिहासकारों ने छिपाया है| सारी साम्यवादी सत्ताएँ धोखे और छल-कपट से आईं और अपने पीछे एक भयानकतम विनाश लीला छोड़ गईं|