Saturday 16 September 2017

चीन और जापान सदा पारंपरिक शत्रु रहे हैं .....

चीन और जापान सदा पारंपरिक शत्रु रहे हैं .....
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चीनी शासकों की सदा जापान विजय की इच्छा रही पर वे कभी सफल नहीं हो पाए| पिछले एक हज़ार वर्षों में अंग्रेज़ी साम्राज्य से पूर्व इस पृथ्वी पर सबसे अधिक शक्तिशाली और पराक्रमी राजा कुबलई ख़ान (Хубилай хаан) (忽必烈) (२३ सितम्बर १२१५ – १८ फ़रवरी १२९४) हुआ है जो मंगोल साम्राज्य का पाँचवा ख़ागान (सबसे बड़ा ख़ान शासक) चीन का शासक था| वह बौद्ध धर्म को मानता था| उसने सन १२६० से १२९४ ई.तक शासन किया| वह युआन वंश का संस्थापक था| उसका राज्य उत्तर में साइबेरिया से लेकर दक्षिण में विएतनाम और अफगानिस्तान तक, और पूर्व में कोरिया से लेकर पश्चिम में कश्यप सागर तक था| महाभारत के समय के बाद से इतने बड़े भूभाग पर राज्य अंग्रेजों से पूर्व किसी ने भी नहीं किया था| वह पृथ्वी के २०% भूभाग का स्वामी था| उसी के समय चीनी लिपि का आविष्कार हुआ था| मार्को पोलो भी उसी के समय चीन गया था| उसके समय से पहले ही बौद्ध धर्म चीन और जापान का राजधर्म हो गया था|
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कुबलई खान की सबसे बड़ी इच्छा थी जापान पर विजय करने की जिसे उसके पूर्वज नहीं कर पाए थे| मंगोल जाति अत्यधिक क्रूर थी| वह जापान के द्वीपों पर आकमण करती और जापानी महिलाओं पर तो बहुत क्रूरता बरतती| सन १२७४ ई में उसने जापान पर पहला आक्रमण किया जो सफल नहीं हुआ| मंगोल सेना के घुड़सवारों के मार्ग में जापानियों ने खूब खाइयाँ खोद दीं जिस से वे आगे न बढ़ सकें, और खूब कुशलता से जापानियों ने युद्ध किया| चीनी मंगोल सेना विफल रही और लौट गयी|
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फिर उसने सन १२८१ ई.में जापान पर सबसे बड़ा आक्रमण किया | हजारों नौकाओं में लाखों सैनिक और हज़ारों घोड़े लाद कर के उसकी सेना दो स्थानों से समुद्री मार्ग से जापान की ओर बढ़ी .... एक तो कोरिया से और दूसरी चीन की मुख्य भूमि से| इस विशाल सेना को कोई भी नहीं रोक सकता था| पर जब तक वो सेना जापान सागर में जापान तट पर पहुँचती उससे पूर्व ही एक भयानक समुद्री तूफ़ान आया और कुबलई खान का सारा बेड़ा लाखों सैनिकों, हज़ारो घोड़ों और हज़ारो नौकाओं के साथ समुद्र में गर्क हो गया| यहाँ से चीन में मंगोल साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया| जापान में समुद्री तूफानों को पवित्र वायु मानते हैं क्योंकि उन्होंने जापान की विदेशी आक्रमणकारियों से सदा रक्षा की है|
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इसके बाद भी चीन के सभी शासकों की इच्छा रही जापान को विजित करने की पर कर नहीं पाए| द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने चीन पर अधिकार कर लिया था| जापानी तो मंगोलों से भी अधिक क्रूर निकले| उन्होंने चीन में बहुत अधिक क्रूर और निर्मम अत्याचार किये| जापानियों ने चीन में ही नहीं, कोरिया, विएतनाम मलय प्रायद्वीप, बर्मा व अंडमान-निकोबार में भी सभी जगह बड़े क्रूर अत्याचार किये| अन्य देशों ने तो जापान को क्षमा कर दिया पर चीन और उत्तरी कोरिया ने नहीं| चीन जापान का हर अवसर पर और हर स्थान पर विरोध करता है| वह कैदियों से मुफ्त में सामान बनवाकर इतना सस्ता बेचता है सिर्फ जापान की अर्थव्यवस्था को हानि पहुँचाने के लिए|
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भारत और जापान का समीप आना भी चीन को बुरा लग रहा है जापान से द्वेष के कारण| अगले पंद्रह-बीस वर्षों तक तो चीन और जापान मित्र नहीं बन सकेंगे| भविष्य की कोई कह नहीं सकता| पर चीन की काट के लिए भारत की जापान के साथ मित्रता बड़ी आवश्यक है|


१५ सितम्बर २०१७

1 comment:

  1. मंगोलिया के महा नायक चंगेज़ खान का वास्तविक नाम मंगोल भाषा में "गंगेश हान" था| यह उसका हिन्दू नाम था और वह किसी देवी का उपासक था| बाद में उसके वंश में कुबलई खान ने बौद्ध मत स्वीकार किया और बौद्ध मत का प्रचार किया| कुबलई खान के समय ही चीनी लिपि का अविष्कार हुआ| कुबलाई खान का राज्य उत्तर में साईबेरिया की बाइकाल झील से दक्षिण में विएतनाम तक, और पूर्व में कोरिया से पश्चिम में कश्यप सागर तक था| पिछले एक हज़ार में हुआ वह इस पृथ्वी के सबसे बड़े भूभाग का शासक था| उसने तिब्बत में प्रथम दलाई लामा की नियुक्ति की| पर उसकी एक भूल से उसके साथ ही मंगोल साम्राज्य का पतन भी हो गया था| (कुबलई शब्द कैवल्य का अपभ्रंस हैै). रूसी भाषा में चीन को "किताई" कहते हैं, और वहाँ के प्राचीन साहित्य में मंगोलों के लिए किरात शब्द का प्रयोग हुआ है|

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