Wednesday, 25 June 2025

जीवन का एक भटकाव समाप्त हुआ ---

 जीवन का एक भटकाव समाप्त हुआ। अब किसी के उपदेश, प्रवचन या मार्गदर्शन की कोई आवश्यकता नहीं रही है। जब गंतव्य समक्ष होता है तब किसी मार्गदर्शिका या मानचित्र की आवश्यकता नहीं पड़ती।

.
मुझ में जितनी कमियाँ हैं, उतनी तो संभवतः किसी में भी नहीं होंगी। लेकिन भगवान ने सबकी उपेक्षा कर दी। उन्होने मेरे हृदय का प्रेम, तड़प और अतृप्त-प्यास ही देखी। इनके अतिरिक्त मुझ अकिंचन के कुछ था भी नहीं।
.
सच्चिदानंद के लिए हृदय में एक प्रचंड अग्नि सदा प्रज्ज्वलित रहे। वे ही गुरु रूप में आते हैं, और कूटस्थ-चैतन्य में स्थित कर अपना बोध करा कर चले जाते हैं। अब कोई अन्य नहीं है। एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है, मेरा भी नहीं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! जय गुरु !!
कृपा शंकर
२६ जून २०२२

ये ढाई अक्षर क्या हैं? ---

 जीवन की भागदौड़ में कुछ भी पाने के लिए बहुत दौड़ना पड़ता है। लेकिन सुख, शांति और परमात्मा ठहराव से ही मिलते हैं। एक दोहा है --

"पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय॥"
ये ढाई अक्षर क्या हैं? ---
-------------------
ढाई अक्षर के ब्रह्मा और, ढाई अक्षर की सृष्टि..!
ढाई अक्षर के विष्णु और, ढाई अक्षर की लक्ष्मी..!!
ढाई अक्षर के कृष्ण और, ढाई अक्षर की कान्ता (राधा रानी का दूसरा नाम)..!
ढाई अक्षर की दुर्गा और, ढाई अक्षर की शक्ति..!!
ढाई अक्षर की श्रद्धा और, ढाई अक्षर की भक्ति..!
ढाई अक्षर का त्याग और, ढाई अक्षर का ध्यान..!!
ढाई अक्षर की इच्छा और, ढाई अक्षर की तुष्टि..!
ढाई अक्षर का धर्म और, ढाई अक्षर का कर्म..!!
ढाई अक्षर का भाग्य और, ढाई अक्षर की व्यथा..!
ढाई अक्षर का ग्रन्थ और, ढाई अक्षर का सन्त..!!
ढाई अक्षर का शब्द और, ढाई अक्षर का अर्थ..!
ढाई अक्षर का सत्य और, ढाई अक्षर की मिथ्या..!!
ढाई अक्षर की श्रुति और, ढाई अक्षर की ध्वनि..!
ढाई अक्षर की अग्नि और, ढाई अक्षर का कुण्ड..!!
ढाई अक्षर का मन्त्र और, ढाई अक्षर का यन्त्र..!
ढाई अक्षर की श्वांस और, ढाई अक्षर के प्राण..!!
ढाई अक्षर का जन्म और, ढाई अक्षर की मृत्यु..!
ढाई अक्षर की अस्थि और, ढाई अक्षर की अर्थी..!!
ढाई अक्षर का प्यार और, ढाई अक्षर का युद्ध..!
ढाई अक्षर का मित्र और, ढाई अक्षर का शत्रु..!!
ढाई अक्षर का प्रेम और, ढाई अक्षर की घृणा..!
जन्म से लेकर मृत्यु तक हम, बंधे हैं ढाई अक्षर में..!!
हैं ढाई अक्षर ही वक़्त में और, ढाई अक्षर ही अन्त में..!
समझ न पाया कोई भी, है रहस्य क्या ढाई अक्षर में..!!
महापुरुषों की गूढ़ रहस्यों से भरी भाषा को शत-शत नमन.🙏
(एक महात्मा का प्रसाद)
२६ जून २०२२

हम परमात्मा के किस रूप का ध्यान करें ?

ध्यान -- उस परम ज्योति का किया जाता है, जिसकी आभा सहस्त्रों सूर्यों के संयुक्त प्रकाश से भी अधिक हो। परमात्मा के अनंत ज्योतिर्मय रूप का ही ध्यान किया जाता है। आकाश में सहस्र सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश होगा, वह उस (विश्वरूप) परमात्मा के प्रकाश के सदृश होगा।

इसकी एक शास्त्रोक्त विधि है, जिसकी चर्चा पहले अनेक बार कर चुका हूँ। समय मिलते ही फिर करूंगा।
.
जो भक्त परमात्मा का ध्यान नहीं कर सकते, वे सिर्फ "जपयोग" का अभ्यास करें। जपयोग का अभ्यास करते करते समय के साथ ध्यान स्वतः ही होने लगेगा। हम कहीं भी रहें, मन भगवान में ही लगा रहे। इसका अभ्यास करना पड़ेगा कि प्रातः उठने से सोने तक पूरे दिन निरंतर भगवान की स्मृति बनी रहे। जब भूल जाएँ तब याद आते ही पुनश्च स्मरण आरंभ कर दें। बिना किसी शर्त और माँग के अपने हृदय का पूर्ण प्रेम भगवान को दें। और कुछ नहीं चाहिए।

हमें वास्तविक सफलता तभी मिलेगी जब हमारे हृदय में भगवान के प्रति परमप्रेम और समर्पण होगा। हम कोई मंगते भिखारी नहीं है, हम परमात्मा के अमृतपुत्र हैं। भगवान के प्रेम पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। हम भगवान से कुछ मांग नहीं रहे, हम उन्हें अपना सर्वस्व और स्वयं को भी उन्हें पूर्णतः सप्रेम समर्पित कर रहे हैं।

ॐ तत्सत् !!
२६ जून २०२४

जब सब कुछ परमात्मा ही है तो अब उनके अतिरिक्त अन्य किसी से कोई अपेक्षा भी नहीं रही है ---

"यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्॥१०:३९॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् - हे अर्जुन ! जो समस्त भूतों की उत्पत्ति का बीज (कारण) है, वह भी में ही हूँ, क्योंकि ऐसा कोई चर और अचर भूत नहीं है, जो मुझसे रहित है॥
.
जब सब कुछ परमात्मा ही है तो अब उनके अतिरिक्त अन्य किसी से कोई अपेक्षा भी नहीं रही है। अब किसी भी तरह के परिवाद, निंदा और आलोचना (Complain, Condemn, Criticize) का समय नहीं है। जो भी समय शेष है, उसमें सिर्फ हरिःचिंतन, अन्य कुछ भी नहीं।
.
सारी कामनाएँ, सारी अपेक्षाएँ, और सारे विचार -- परमात्मा को समर्पित हैं। हृदय में जब परमात्मा स्वयं बिराजमान हैं, तो उन्हें छोड़कर अन्यत्र कहाँ जाएँ? जो भी बात कहनी है, प्रत्यक्ष परमात्मा से ही कहेंगे। अधिक समय हमारे पास नहीं है।
संसार को, और परमात्मा की समस्त रचना को धन्यवाद और नमस्ते !!
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर

२६ जून २०२४ 

मेरे बिना वे नहीं रह सकते

 किसी ने मुझ से कहा कि भगवान तुम्हारे से कभी प्रसन्न नहीं हो सकते। मैंने कहा कि यह उनकी समस्या है, मेरी नहीं। मेरे हृदय में बिराजित होकर तो वे बड़े प्रसन्न हैं। मुझे भी अपने स्वयं के हृदय में स्थायी स्थान दे रखा है। मेरे बिना वे नहीं रह सकते।

.
यदि भगवान मेरे से प्रसन्न नहीं हैं तो कोई दूसरा भक्त ढूँढ़ लें। इस से अधिक समर्पण मेरे लिए संभव नहीं है। मुझे निमित्त बनाकर वे स्वयं ही सब कुछ कर रहे हैं। अपनी साधना भी वे स्वयं ही करते हैं। मैं तो एक उपकरण मात्र हूँ। मेरी किसी भी कमी के लिए वे ही जिम्मेदार हैं, मैं नहीं। मेरी हर कमी उन की ही कमी है, मेरा हर गुण उनका ही गुण है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०२४

तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु। सारे शिव संकल्प प्रत्यक्ष शिव ही हैं ---

 तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु। सारे शिव संकल्प प्रत्यक्ष शिव ही हैं ---

.
जब भी भगवान कि गहरी स्मृति आये और भगवान पर ध्यान करने कि प्रेरणा मिले तब समझ लेना कि प्रत्यक्ष भगवान वासुदेव वहीँ खड़े होकर आदेश दे रहे हैं| उनके आदेश का पालन करना हमारा परम धर्म है|
.
जब भी भगवान से किसी भी समय कोई भी शुभ कार्य करने की प्रेरणा मिले तो वह शुभ कार्य तुरंत आरम्भ कर देना चाहिए| सारी शुभ प्रेरणाएँ भगवान के द्वारा ही मिलती हैं|

जब भी मन में उत्साह जागृत हो उसी समय शुभ कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिये| भगवान ने जो आदेश दे दिया उसका पालन करने में किसी भी तरह के देश-काल शौच-अशौच का विचार करने की आवश्यकता नहीं है|
.
सबसे बड़ा और सबसे बड़ा महत्वपूर्ण शुभ कार्य है ---- भगवान का ध्यान|
शुभ कार्य करने का उत्साह भगवान् की विभूति ही है| निरंतर भगवान का ध्यान करो| कौन क्या कहता है और क्या नहीं कहता है इसका कोई महत्व नहीं है|
हम भगवान कि दृष्टी में क्या हैं ---- महत्व सिर्फ इसी का है|
.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |
ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
२५ जून २०१५

भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे समाप्त हो गये ?

 भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे समाप्त हो गये ? .

कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद। सन १८५८ ई. में Indian Education Act बनाया गया। इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उससे पहले उसने यहाँ (भारत) की शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था। उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग क्षेत्रों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। १८२३ के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, लिखा कि यहाँ ९७% साक्षरता है, और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है। उस समय भारत में इतनी साक्षरता थी। मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी। तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे। वे जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे। मैकोले का कहना था कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी। इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया। जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की ओर से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी। संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया गया, और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी गई। उनमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा पीटा और जेल में डाला।
.
१८५० तक इस देश में 7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे। उस समय इस देश में ७ लाख पचास हज़ार गाँव थे। हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल था। ये गुरुकुल -- आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे, उन सब में १८ विषय पढ़ाये जाते थे। ये गुरुकुल समाज के लोग मिल कर चलाते थे, न कि राजा, महाराजा। इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।
इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया, फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया। उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था। , इसी कानू न के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि -- “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा।
.
लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।
कृपा शंकर २५ जून २०१५