Wednesday, 25 June 2025

हम परमात्मा के किस रूप का ध्यान करें ?

ध्यान -- उस परम ज्योति का किया जाता है, जिसकी आभा सहस्त्रों सूर्यों के संयुक्त प्रकाश से भी अधिक हो। परमात्मा के अनंत ज्योतिर्मय रूप का ही ध्यान किया जाता है। आकाश में सहस्र सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश होगा, वह उस (विश्वरूप) परमात्मा के प्रकाश के सदृश होगा।

इसकी एक शास्त्रोक्त विधि है, जिसकी चर्चा पहले अनेक बार कर चुका हूँ। समय मिलते ही फिर करूंगा।
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जो भक्त परमात्मा का ध्यान नहीं कर सकते, वे सिर्फ "जपयोग" का अभ्यास करें। जपयोग का अभ्यास करते करते समय के साथ ध्यान स्वतः ही होने लगेगा। हम कहीं भी रहें, मन भगवान में ही लगा रहे। इसका अभ्यास करना पड़ेगा कि प्रातः उठने से सोने तक पूरे दिन निरंतर भगवान की स्मृति बनी रहे। जब भूल जाएँ तब याद आते ही पुनश्च स्मरण आरंभ कर दें। बिना किसी शर्त और माँग के अपने हृदय का पूर्ण प्रेम भगवान को दें। और कुछ नहीं चाहिए।

हमें वास्तविक सफलता तभी मिलेगी जब हमारे हृदय में भगवान के प्रति परमप्रेम और समर्पण होगा। हम कोई मंगते भिखारी नहीं है, हम परमात्मा के अमृतपुत्र हैं। भगवान के प्रेम पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। हम भगवान से कुछ मांग नहीं रहे, हम उन्हें अपना सर्वस्व और स्वयं को भी उन्हें पूर्णतः सप्रेम समर्पित कर रहे हैं।

ॐ तत्सत् !!
२६ जून २०२४

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