किसी ने मुझ से कहा कि भगवान तुम्हारे से कभी प्रसन्न नहीं हो सकते। मैंने कहा कि यह उनकी समस्या है, मेरी नहीं। मेरे हृदय में बिराजित होकर तो वे बड़े प्रसन्न हैं। मुझे भी अपने स्वयं के हृदय में स्थायी स्थान दे रखा है। मेरे बिना वे नहीं रह सकते।
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यदि भगवान मेरे से प्रसन्न नहीं हैं तो कोई दूसरा भक्त ढूँढ़ लें। इस से अधिक समर्पण मेरे लिए संभव नहीं है। मुझे निमित्त बनाकर वे स्वयं ही सब कुछ कर रहे हैं। अपनी साधना भी वे स्वयं ही करते हैं। मैं तो एक उपकरण मात्र हूँ। मेरी किसी भी कमी के लिए वे ही जिम्मेदार हैं, मैं नहीं। मेरी हर कमी उन की ही कमी है, मेरा हर गुण उनका ही गुण है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०२४
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