Sunday, 6 May 2018

जिन्ना विवाद .....

जिन्ना विवाद .....
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पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लगाए गए एक चित्र पर विवाद चल रहा है| इसके ऊपर मैं निष्पक्ष रूप से अपने विचार रख रहा हूँ| मेरा किसी से भी कोई विवाद नहीं है| मेरे मन में किसी के भी प्रति कोई दुराग्रह नहीं है|
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इस्लाम में किसी की मूर्ती या फोटो लगाना हराम है| यह तो बुत-परस्ती है, अतः किसी की फोटो होनी ही नहीं चाहिए|
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मोहम्मद अली जिन्ना के जन्म का नाम "महमदअली झीणाभाई" (મહમદઅલી ઝીણાભાઇ) था| वे मिठीबाई और जिन्नाभाई पुँजा की सात सन्तानों में सबसे बड़े थे| उनके पिता जिन्नाभाई एक सम्पन्न गुजराती व्यापारी थे, लेकिन जिन्ना के जन्म के पूर्व वे काठियावाड़ छोड़ सिन्ध में जाकर बस गये थे| मोहम्मद अली जिन्ना मूलतः गुजराती खोजा इस्माइली मुसलमान व आगा खां के अनुयायी थे| बाद में वे शिया बन गए थे| उनके पूर्वज गुजराती हिन्दू राजपूत थे, उनकी पत्नी पारसी थीं| मज़हब का दखल उनके जीवन में नहीं के बराबर था| वे लोकमान्य पं.बाल गंगाधर तिलक के वकील थे और उन को प्रसिद्धि मिलना भी तभी से शुरू हुई| इस्माइली ६ इमामों को मानते हैं जबकि शिया १२ इमामों को मानते हैं| इस्माइली आग़ा खां को फॉलो करते हैं लेकिन जिन्ना उन्हें इमाम के तौर पर फॉलो नहीं करना चाहते थे, ऐसे में उन्होंने ख़ुद को शिया बना लिया|
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जिन्ना के निजी जीवन में मजहब था ही नहीं| उन्होंने भारत को स्थायी रूप से छोड़ दिया था और ब्रिटेन में जाकर बस गए थे| जिन्ना ने कभी क़ुरान नहीं पढ़ा, कभी नमाज़ नहीं पढ़ी, कभी हज यात्रा नहीं की, वे शराब पीते थे, सिगार पीते थे और सूअर का मांस खाते थे, जिसे इस्लाम में हराम माना जाता है| रहन-सहन व आस्था से वे मुस्लिम नहीं थे| मुस्लिम लीग वाले बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाकर ब्रिटेन से बापस भारत लाये थे| जिस समय मुस्लिम लीग वाले उन्हें मनाने गए उस समय वे स्कॉच (स्कॉटलैंड में बनी मंहगी शराब) पी रहे थे और पोर्क (सूअर का मांस) सैंडविच खा रहे थे, जिसे उन्होंने तुरंत छिपा लिया|
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मुस्लिम लीग के आग्रह पर वे भारत बापस आये और आने के बाद भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि यदि स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधानमंत्री उन्हें बनाया जाए तो वे पकिस्तान नहीं बनने देंगे| यह मांग नहीं मानी गयी तो उन्होंने पाकिस्तान की घोषणा कर दी जिस से लाखों निरपराधों की हत्याएँ हुईं, लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और लाखों परिवार विस्थापित हुए|
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उन्हें "कायदे आज़म" जिसका अर्थ होता है "महान नेता", की उपाधि स्वयं महात्मा गाँधी ने दी थी| १४ अगस्त १९४७ को जिस दिन पाकिस्तान बना था तब रमज़ान का महीना चल रहा था| जिन्ना ने कहा कि ग्रैंड लंच यानी शाही भोज होना चाहिए| उन्हें यह भी नहीं पता था कि रमजान का महीना चल रहा है|
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अतः ऐसे "कायदे आज़म" की फोटो वहाँ नहीं होनी चाहिए| मेरे विचार स्वतंत्र हैं| आगे आप सब के अपने अपने स्वतंत्र विचार हैं| सबको बहुत बहुत धन्यवाद|

६ मई २०१८

सारे प्रश्न सीमित और अशांत मन की देन हैं .....

सारे प्रश्न सीमित और अशांत मन की देन हैं .....
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> संसार में सुख और दुःख दोनों हैं| क्या यह संभव है कि सुख तो बना रहे पर दुःख छुट जाए?
< सुख है परमात्मा से समीपता, और दुःख है परमात्मा से दूरी| सुख का अभाव ही दुःख है, और कुछ नहीं|
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> अब प्रश्न उठता है कि क्या आत्मा और परमात्मा, मन की कल्पना मात्र ही तो नहीं हैं?
< अभी तो चाहे उन्हें कल्पना ही मान लो| कुछ न कुछ तो मानना ही पड़ता है, वैसे ही इन्हें भी मान लो| कई बार गणित में भी प्रश्न का हल करने के लिए कुछ मानना पड़ता है|
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> प्रश्न यह भी उठता है यदि परमात्मा सत्य है तो वे विस्मृत क्यों हो जाते हैं?
< विस्मृति हमारा दोष है, न कि परमात्मा का|
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> ये सब प्रश्न किस के दिमाग में उठते हैं?
< मेरे|
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***** तो यह मैं और मेरा कौन है, इस का उत्तर ही सब प्रश्नों का उत्तर दे देगा| सारे प्रश्न अंतहीन हैं, इनका कोई अंत नहीं है| सारे प्रश्न सीमित और अशांत मन की देन हैं| एक बार मन शांत हो जाए तो ये सब प्रश्न भी तिरोहित हो जायेंगे| *****
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ मई २०१८

अपेक्षा और आशा पिशाचिनी से मुक्ति कैसे मिले ? .....

अपेक्षा और आशा पिशाचिनी से मुक्ति कैसे मिले ? .....
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संसार में सबसे अधिक कष्ट तब होता है जब हमारी अपेक्षा और आशा पूरी नहीं होती| इनसे मुक्त होकर ही हम सुख-शांति और सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं| पर यह कैसे संभव है? संभव है परमात्मा के सौंदर्य और परमप्रेम से अभिभूत होकर उन्हीं में रम जाने से| परमात्मा के सर्वव्यापी परमप्रेम और सौन्दर्य में समर्पण ही तो ध्यान साधना है|
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हे प्रभु, आप सचेतन निरंतर हमारे ह्रदय में रहो, और कुछ नहीं चाहिए| आप ही तो सब कुछ हैं| जब आप मिल गए तो सब कुछ मिल गया| जैसे कर्मफलों का त्याग वैसे ही कुसंग का त्याग| जब भगवान निरंतर साथ हैं तो और किस का साथ चाहिए?
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एक बात बड़ी सूक्ष्म है जो बुद्धि से समझ में नहीं आ सकती, सिर्फ हरि-कृपा से ही समझ में आती है, वह है कर्म के प्रति आसक्ति का त्याग| यह तभी समझ में आती है जब कर्मफलों के प्रति ही आसक्ति छूट जाए| इसे बुद्धि द्वारा समझने की चेष्टा न करें क्योंकि बुद्धि भी कुबुद्धि होकर धोखा दे सकती है| अभी तो आशा और अपेक्षा से ही मुक्त होना है| तभी राग-द्वेष से मुक्ति मिलेगी|
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चाहे किसी का भी साथ छुट जाए पर परमात्मा का साथ कभी ना छोड़ें| यही सब बातों का सार है| निरंतर उनका स्मरण, उनका ध्यान, उनका प्रेम, बस और कुछ नहीं चाहिए| धीरे धीरे कर्ताभाव से भी मुक्ति मिल जाती है| हे प्रभु सुन्दर, हे प्रभु सुन्दर, यह तुम्हारा सौन्दर्य हमारे हृदय में निरंतर बना रहे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ मई २०१८

ज्ञान रूपी योगाग्नि में राग-द्वेष को भस्म कैसे करें ?.....

ज्ञान रूपी योगाग्नि में राग-द्वेष को भस्म कैसे करें ?.....
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भगवान ने मनुष्य को लोभ-लालच क्यों दिया? लोभी क्यों बनाया? फिर लोभ की सजा भी तय कर दी| यह तो ऐसे है जैसे किसी को लालच देकर किसी कोने में ले जाओ और वहाँ उसकी खूब पिटाई कर दो| क्या यह पागलपन नहीं है?
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खैर ! गहराई से देखें तो जूते मारने वाला भी वह (भगवान) ही है और जूते खाने वाला भी| इसका कोई न कोई उद्देश्य तो है जो स्वयं को ही समझना होगा| अन्य कोई नहीं समझा सकता| इस मायावी संसार में आसक्ति रहित होकर कैसे जीएँ ? शायद यही समझाने की यह कठोर विधि है!
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ब्रह्म सत्य है, सदा सत्य है, प्रकृति हमें इसी का पाठ पढ़ा रही होगी? यहाँ न कोई आदि है, न मध्य, और न अंत| सब कुछ वही है, जो मैं अनुभूत कर रहा हूँ, और जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ| सार की बात यह है कि ईश्वर से पृथकता ही हमारे सब कष्टों का कारण है| राग-द्वेष हमें ईश्वर से निरंतर दूर कर रहे हैं| ज्ञान रूपी योगाग्नि में इसे कैसे भस्म करें? तत्वज्ञानी महापुरुषों का सत्संग ही हमारी रक्षा कर सकता है| भौतिक विश्व में वे यदि नहीं मिलते तो सूक्ष्म जगत तो उनसे भरा हुआ ही है| याद करते ही वे आ जाते हैं|
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यह संसार किसी के लिए दुःखों का सागर है तो किसी के लिए सच्चिदानंद ब्रह्म| यह वाणी का विषय नहीं है| उठो और सच्चिदानंद ब्रह्म परमशिव का ध्यान करो|
ॐ गुरु ! ॐ गुरु ! ॐ गुरु ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ मई २०१८

भारत में १५ अगस्त १९४७ से आज तक हिन्दुओं को दूसरे दर्जे के नागरिक से भी बुरी स्थिति में रखा गया है .....

भारत में १५ अगस्त १९४७ से आज तक हिन्दुओं को दूसरे दर्जे के नागरिक से भी बुरी स्थिति में रखा गया है .....
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(१) हिन्दू अपने विद्यालयों में हिन्दू धर्म की शिक्षा अपने बच्चों को नहीं दे सकते| अपने विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार सिर्फ तथाकथित अल्पसंख्यकों को ही है| गुरुकुलों की पढाई को मान्यता प्राप्त नहीं है जब कि मदरसों व कॉन्वेंट की पढाई को है| सारी विकास की योजनाएँ भी अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए ही बनती हैं| आज तक हिन्दुओं के कल्याण के लिए एक भी योजना नहीं बनी है|
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(२) सिर्फ हिन्दुओं के ही मंदिरों पर सरकार का अधिकार है| वहाँ आने वाले चढ़ावे का उपयोग जो सिर्फ हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार व धर्मस्थलों की देखरेख के लिए ही होना चाहिए, पता नहीं किस हिन्दू विरोधी मद में किया जाता है|
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(३) देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता होनी चाहिए| हर धर्म के अनुयायियों के लिए अलग अलग क़ानून क्यों हैं? अल्पसंख्यक कौन है ? यह परिभाषित हो|
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(४) जाति के आधार पर हिन्दू समाज को बाँटना .... हिन्दुओं को नष्ट करना ही है|