Sunday 6 May 2018

अपेक्षा और आशा पिशाचिनी से मुक्ति कैसे मिले ? .....

अपेक्षा और आशा पिशाचिनी से मुक्ति कैसे मिले ? .....
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संसार में सबसे अधिक कष्ट तब होता है जब हमारी अपेक्षा और आशा पूरी नहीं होती| इनसे मुक्त होकर ही हम सुख-शांति और सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं| पर यह कैसे संभव है? संभव है परमात्मा के सौंदर्य और परमप्रेम से अभिभूत होकर उन्हीं में रम जाने से| परमात्मा के सर्वव्यापी परमप्रेम और सौन्दर्य में समर्पण ही तो ध्यान साधना है|
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हे प्रभु, आप सचेतन निरंतर हमारे ह्रदय में रहो, और कुछ नहीं चाहिए| आप ही तो सब कुछ हैं| जब आप मिल गए तो सब कुछ मिल गया| जैसे कर्मफलों का त्याग वैसे ही कुसंग का त्याग| जब भगवान निरंतर साथ हैं तो और किस का साथ चाहिए?
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एक बात बड़ी सूक्ष्म है जो बुद्धि से समझ में नहीं आ सकती, सिर्फ हरि-कृपा से ही समझ में आती है, वह है कर्म के प्रति आसक्ति का त्याग| यह तभी समझ में आती है जब कर्मफलों के प्रति ही आसक्ति छूट जाए| इसे बुद्धि द्वारा समझने की चेष्टा न करें क्योंकि बुद्धि भी कुबुद्धि होकर धोखा दे सकती है| अभी तो आशा और अपेक्षा से ही मुक्त होना है| तभी राग-द्वेष से मुक्ति मिलेगी|
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चाहे किसी का भी साथ छुट जाए पर परमात्मा का साथ कभी ना छोड़ें| यही सब बातों का सार है| निरंतर उनका स्मरण, उनका ध्यान, उनका प्रेम, बस और कुछ नहीं चाहिए| धीरे धीरे कर्ताभाव से भी मुक्ति मिल जाती है| हे प्रभु सुन्दर, हे प्रभु सुन्दर, यह तुम्हारा सौन्दर्य हमारे हृदय में निरंतर बना रहे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ मई २०१८

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